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PATNA : आज भले ही कुश्ती में हरियाणा आगे निकल गया हो, लेकिन बिहार में कुश्ती का स्वर्णिम इतिहास रहा है.क्योंकि पहले बिहार का ही दबदबा था। सिर्फ पुलिस में ही नहीं गांव-गांव में कुश्ती खेली जाती थी। बल्कि यूं कहें कि घर-घर में पहलवान हुआ करते थे। बिहार कुश्ती संघ के सचिव कामेश्वर सिंह बताते हैं कि तब की बात ही कुछ और थी। माता- पिता भी चाहते थे कि उनके घर से एक पहलवान जरूर हो। गांव-टोलों में हर माह दंगल हुआ करती थी। इनाम की रािश बड़ी होती थी, जिससे अभ्यास चलता रहता था। पहले बिहार में उपाधि कुश्ती होती थी। बिहार कुमार, बिहार भीम या बिहार केशरी जैसी उपाधि से नवाजा जाता था। बिहार के प्रसिद्ध खिलाडि़यों में कैमूर जिले के बालदत्त यादव का नाम सम्मान से लिया जाता है।

बजट नहीं, खस्ता हाल

कुश्ती बिहार नहीं दुनिया के बेहद सम्मानित खेलों में शुमार है। लेकिन बिहार में इस खेल को सरकार ने ही नजरअंदाज कर रखा है। कामेश्वर सिंह ने बताया कि ख्0क्ब्-क्भ् के वित्तीय वर्ष में करीब ख्.भ् लाख राशि दी गई थी। इसके बाद कोई राशि नहीं मिली। उन्होंने बताया कि इस खेल में भले ही बहुत अधिक संसाधनों की जरूरत नहीं हो, लेकिन बात अगर खिलाडि़यों को पेशेवर बनाने की हो, तो इसमें बहुत अधिक खर्च करने की जरूरत है। भोजन और ऊपरी आहार, मैट, विशेषज्ञों से प्रशिक्षण आदि के खर्चे हैं।

संघ की है महत्वपूर्ण भूमिका

बिहार में कुश्ती को गांव से बाहर निकालकर सामुदायिक स्तर पर प्रचार- प्रसार करने में संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। म्0 के दशक के प्रथम ओलंपियन एआर भार्गव थे। उनके साथ बीएमपी के बीएन प्रसाद ने मिलकर क्9म्ख् में बिहार कुश्ती संघ की स्थापना की। तब घर-घर में यह खेला जाता था। लेकिन बाद में परिस्थितियां बिगड़ी और बिगड़ते चली गई।

कामेश्वर सिंह ने बताया कि 80 के दशक में जब हमलोग कुश्ती खेलते थे तब पुलिस विभाग में भर्ती होने के बाद पता चला कि यहां भी कुश्ती होती है.क्997 में कुश्ती संघ के महासचिव एआर भार्गव ने कुश्ती के स्तर को उपर उठाने का आह्वान किया। लिहाजा, संघ की ओर से कुश्ती प्रतियोगिता जिला स्तर पर होने लगी। फिर ख्007 में बिहार केशरी दशरथ यादव ने बिहार में कुश्ती प्रतियोगिता कराई थी तब से संघ लगातार कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है।