2 नवंबर को करवा चौथ
दूर्गा पूजा और दीवाली के बीच कार्तिक चौथ के दिन करवा चौथ व्रत होता है। इस बार यह 2 नवंबर को है। इस दिन पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। शाम में चांद की पूजा की जाती है। फिर पत्नियां चांद को चलनी से देखने के बाद पति को देखती हैं। पति के द्वारा पानी पिलाने के बाद ही इस व्रत का तोड़ा जाता है.

11 नवंबर को धनतेरस
दीवाली से दो दिन पहले धनतेरस का दिन होता है, जिसके लिए मार्केट स्पेशल प्रीपरेशन करता है। क्योंकि यह दिन खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। धनतेरस पर बर्तन के साथ सोने और कई दूसरी चीजों को भी खरीदने की परंपरा है। इस बार 11 नवंबर को यह मनाया जायेगा.

12 नवंबर को छोटी दीपावली
धनतेरस के दूसरे दिन 12 नवंबर को छोटी दीवाली मनाई जाती है। इस दिन गोबर का दीया कूड़ा फेंकने की जगह पर जलाया जाता है। इसके साथ दीवाली की भी की शुरुआत हो जाती है। घरों को सजाने के साथ लोग पूजा की तैयारी में लग जाते है.

13 नवंबर को है दीवाली
इस बार 13 नवंबर को दीवाली है। कृष्ण पक्ष कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाले इस फेस्टिवल में लक्ष्मी और गणेश भगवान की पूजा की जाती है। इस फेस्टिवल में दीये जलाने का प्रथा है। तमाम मंदिरों, घरों, दुकानों आदि में लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है.

14 नवंबर को गोवर्धन पूजा
दीवाली के दूसरे दिन मनाया जाने वाले इस पूजा पर गाय की पूजा की जाती है। राजस्थान में विशेष रूप से मनाया जाने वाले इस पर्व में गाय को नए वस्त्र देकर उसकी पूजा होती है.

15 नवंबर को चित्रगुप्त पूजा के साथ भैया दूज
दीवाली के तीसरे दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा होती है। इसके साथ इसी दिन भैया दूज भी मनाया जाता है। भाई के लंबी उम्र के  लिए बहनें गोधन कूट कर भाई के लिए प्रार्थना करती है। वहीं चित्रगुप्त पूजा पर कलम-दवात की पूजा होती है.

छठ 17 से 20 नवंबर
बिहार का महापर्व आज पूरे देश में मनाया जाता है। छठ की जितनी महत्ता है, यह उतना ही बड़ा अनुष्ठान है। चार दिनों के छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर को हो रही है। इसमें व्रती चार दिनों तक सूर्य की उपासना करती है।

पहला दिन नहाय खाय
छठ पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है। इस दिन नहाने के बाद कदद्ू की सब्जी और चावल खाने की परंपरा है। इस दिन व्रती दो टाइम खाती है।

दूसरे दिन खरना
व्रत के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन पूरे दिन व्रती बिना पानी के रहते हैं। शाम में गोधुली बेला में व्रती खुद प्रसाद बनाकर उसका भोग लगाती है। भगवान का भोग लगाने के बाद व्रती पहले खुद खाती है, फिर प्रसाद दूसरे को मिलता है। प्रसाद के रूप में गुड़-चावल का खीर, रोटी, केला की प्रधानता है। खरना के साथ दो दिनों के निर्जला व्रत की शुरूआत हो जाती है.

तीसरा दिन शाम का अध्र्य
छठ पर्व के तीसरे दिन शाम का अध्र्य होता है। इस दिन व्रती सुबह में नहा धोकर अध्र्य का प्रसाद बनाती है। दिन भर प्रसाद बनाने के बाद नदी किनारे डूबते सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। सूर्य के डूबने से पहले तमाम व्रती पानी में खड़ी होकर और डूब रहे सूर्य की पूजा करती है और उसके बाद अध्र्य देती है।

चौथे दिन उगते सूर्य को अध्र्य
छठ के चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। सूर्योदय के बाद पूजा और दूध से सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, केला, नारियल आदि की प्रधानता है.