- परिचर्चा में एक्सप‌र्ट्स ने कहा 12वीं तक स्कूल की पढ़ाई जरूरी

- स्कूल को अटेंडेंस के लिए होना पड़ेगा सख्त

PATNA (4 Oct): कोचिंग वाले स्कूल आवर में क्क्वीं और बारहवीं के स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं। बच्चों के भविष्य के साथ इस खिलवाड़ में कई सीबीएसई स्कूल भी उनका साथ देते हैं। आई नेक्स्ट ने 'कोचिंग का सच' सीरीज के जरिए खुलासा किया कि किस तरह कोचिंग सेंटर नियमों का उल्लंघन कर अपनी रोटी सेंक रहे हैं। आखिर इस समस्या का समाधान कैसे हो? इस मुद्दे पर बुधवार को आई नेक्स्ट ऑफिस में कोचिंग सेंटर संचालक, स्कूल संचालक, पैरेंट्स और शिक्षा से जुड़े लोगों के बीच परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें कई बातें सामने आई। परिचर्चा के दौरान कई एक्सप‌र्ट्स ने कहा कि स्कूल के समय कोंिचंग जाना स्टूडेंट्स के लिए सही नहीं होता। ओवरऑल डेवलपमेंट के लिए कोचिंग नहीं स्कूल जरूरी है।

..तो ऐसे होगा समाधान

- स्कूल अपना अटेंडेंस अनलाइन करे

- कोचिंग सेंटर की होड़ और गलत प्रचार को रोकने के लिए एग्जाम से पहले वे अपीयर होने वाले स्टूडेंट्स की लिस्ट जारी की जाए

- फीस के लिए कोई नियंत्रण हो, कोचिंग सेंटर मंथली फीस लेने की व्यवस्था करें।

मेरे मुताबिक कोचिंग सेंटर पढ़ाई के लिए कैंसर है.स्कूल को इग्नोर नहीं कर सकते। अगर तैयारी करनी है तो बारहवीं के बाद करें। मैंने कई लोगों को देखा है जो स्कूल की पढ़ाई कर ही बड़े एग्जाम्स क्लियर कर लेते हैं।

- एसएन ठाकुर, पि्रंसिपल, मेय फ्लॉवर स्कूल

सेल्फ स्टडी और रेगुलर क्लास से किसी भी लेवल का एग्जाम पास किया जा सकता है। मैंने अपने बेटे को भी देखा है। दिल्ली में स्कूल के साथ कोंिचग जाता था, मा‌र्क्स कम आए तो खुद से पढ़ाई की। कोंिचंग और स्कूल एकसाथ हो तो पढ़ाई के दौरान बच्चे कंफ्यूज रहते हैं।

डॉ। राजीव रंजन सिन्हा, सिटी कॉर्डिनेटर, सीबीएसई

हमें देखना होगा कि स्कूल और कोंिचंग दोनों ही बच्चों के हित में काम करने वाले हों। अगर बच्चे को कोंिचग की जरूरत है तो जरूर दें, लेकिन स्कूल से दूर करके उसका ओवरअल डेवलपमेंट भी रुकेगा।

विनोद सिंह, स्टूडेंट ऑक्सीजन मूवमेंट

कोंिचग की जरूरत है क्योंकि हम बिना बढ़ी हुई आबादी की वजह से मिल रहे टफ कॉम्पिटीशन में आगे नहीं आ पाएंगे। इस चैलेंज को समझकर स्कूल को भी कुछ बदलना होगा, ताकि स्टूडेंट्स पर कोचिंग का अतिरिक्त बोझ न आए।

- डॉ। शाहिना खान, डायरेक्टर, एसटी रजा इंटरनेशनल स्कूल

स्कूल में क्वालिटी एजुकेशन मिले को कोंिचंग की क्या जरूरत थी। सरकारी स्कूल तो ऐसे हैं कि वहां पढ़ाई ही नहीं होती। स्टूडेंट क्या करेगा। स्टूडेंट्स को परेशानी से बचाना है तो क्ख्वीं के बाद बड़े एग्जाम्स के लिए समय मिलना चाहिए।

- सूरज कुमार, डायरेक्टर, ज्ञान गंगोत्री निकेतन

कंपीटिटिव एग्जाम के जरिए एडमिशन का ऐसा प्रोसेस है कि कुछ जवाब रट लो और रैंक ले आए। स्थिति ऐसी है कि आईआईटी में ऐसे स्टूडेंट पहुंच जाते हैं जो रट्टू होते हैं। प्रैक्टिकल से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। ऐसे में कि्रएटिविटी खत्म हो रही है। मा‌र्क्स सिस्टम बदलना होगा, क्योंकि हमारे जीवन की सफलता सिर्फ मा‌र्क्स से नहीं है।

- मनोज कुमार सिन्हा, वाइस प्रेसिडेंट, एचआरडी नेटवर्क

ख्0 साल के अनुभव से देखा है कि ओवर पॉपुलेशन हमारी समस्या है। प्राइवेट संस्थान की जरूरत है क्योंकि सरकारी सिस्टम फेल है। फिर भी स्कूल की पढ़ाई जरूरी है, बशर्ते वहां पढ़ाई हो। कोचिंग कंपीटीशन में आगे बढ़ने के लिए जरूरत बन गई है।

- बिपिन कुमार सिंह, मैनेजिंग डायरेक्टर, गोल इंस्टीट्यूट

सारी समस्याएं स्कूल से शुरू होती है। स्कूल अटेंडेंस को ऑनलाइन करे तो पारदर्शिता आएगी। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप एक उपाय हो सकता है जिससे समस्या कुछ सुलझे। न पूरी तरह सरकारी पर यकीन कर सकते न प्राइवेट पर।

अभिजीत कुमार, डायरेक्टर, साइवोटेक कैंपस

कोचिंग की पढ़ाई ऑब्जेक्टिव सवालों के हल के लिए होती है। स्टूडेंट स्कूल की परीक्षा में भी वहीं तरीका अपनाते हैं और मा‌र्क्स कम पाते हैं। इस तरह तो एजुकेशन का लेवल डाउन ही होगा।

- जयराम प्रसाद, रिटायर्ड टीचर