एक ओर कॉलेजों में सीट्स लिमिटेड हैं, तो दूसरी ओर स्टूडेंट्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मार्किंग सिस्टम भी इंप्रूव हुआ है और सीबीएसई की तरह बिहार बोर्ड में भी हाई माक्र्स लाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ गयी है। ऐसे में कॉलेजों की कट ऑफ लिस्ट में जगह ना बना सकने वालों के लिए डिस्टेंस एजुकेशन सिस्टम, किसी फरिश्ते से कम नहीं।

अब डिस्टिंक्शन भी नहीं है गारंटी

अब जब अच्छे माक्र्स वाले ही इतने स्टूडेंट्स शामिल हों तो सेकेंड डिविजन या जस्ट 60 परसेंट वाले स्टूडेंट्स के लिए एडमिशन एक मुसीबत बनता दिख रहा है। एक वक्त था जब बिहार बोर्ड के इंटरमीडिएट में फस्र्ट डिविजन आना मतलब अच्छे कॉलेज में एंट्री की गारंटी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह ट्रेंड बदल चुका है। अब डिस्टिंक्शन माक्र्स मायने नहीं रखते और इस लेवल तक पहुंचने वाले स्टूडेंट्स का नाम भी रेप्यूटेड कॉलेजेज की फस्र्ट कट ऑफ लिस्ट में नहीं आ पाता।

डोंट बी होप लेस

एडमिशन की भागमभाग राजधानी के कॉलेजों में मई के आखिरी वीक से ही शुरू है। कॉलेजों में स्टूडेंट्स के आने का सिलसिला जारी है। लेकिन जब माक्र्स शीट पर स्कोर कम हों और आगे मनपसंद कोर्स में पढऩे की इच्छा हो तो डिस्टेंस एजुकेशन एक बेटर ऑप्शन हो सकता है। स्टूडेंट्स के लिए डिस्टेंस एजूकेशन का दरवाजा अभी भी खुला है। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी में एडमिशन प्रोसीजर तो शुरू हो चुका है। 30 जुलाई तक फॉर्म सबमिशन की लास्ट डेट है। जबकि नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी में अभी एडमिशन प्रोसीजर की शुरुआत नहीं हो सकी है।

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