पटना ब्यूरो। गत शताब्दी के अंतिम दशक में बिहार को ही नहीं संपूर्ण भारत वर्ष को फि जियोथेरापी से प्रथम परिचय स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च पटना ने ही कराया था। तब आमजन तो क्या समाज के उच्च लोग भी नहीं जानते थे कि फि जियोथेरापी है क्या। यहां तक कि अस्थिरोग-विशेषज्ञों को छोड़कर अन्य चिकित्सक भी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान की इस विशेष पद्धति से परिचित नहीं थे। आज संसार में फि जियोथेरापी विभाग के बिना कोई अस्पताल चल ही नहीं सकता।
यह बातें सोमवार को, हेल्थ इंस्टिच्युट में आयोजित हुए विश्व फि जियोथेरापी दिवस समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान में फि जियोथेरापी की भूमिका बहुत तेज़ी से बढ़ी है। अब इसकी आवश्यकता अस्थि, नस, पेशी, जोड़, स्नायु आदि से संबंधित रोगों तक ही नहीं, बल्कि अब लगभग सभी प्रकार के रोगों में पडऩे लगी है। कई बीमारियों में इसके बिना कोई लाभ संभव हो ही नहीं सकता।
फि जियोथेरापी के बिना ऑर्थोपेडिक सर्जरी अधूरी
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि फि जियोथेरापी के महत्त्व को जनजन तक पहुंचाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। बिना दवा के अनेक शारीरिक समस्याओं और पीड़ा दूर करनेवाली यह एक अत्यंत महत्तवपूर्ण वैज्ञानिक चिकित्सा-पद्धति है। मुख्य अतिथि और सुप्रसिद्ध अस्थिरोग विशेषज्ञ डा शारजिल रशीद ने कहा कि फि जियोथेरापी के बिना ऑर्थोपेडिक सर्जरी अधूरी है। इसके बिना अस्थि-रोग का अंतिम उपचार संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि एक फि जियोथेरापीस्ट को वैज्ञानिक तरीक़े से रोगियों की पहचान करनी चाहिए तथा उसकी स्थिति के अनुसार थेरापी देनी चाहिए। इस अवसर पर डा नरेंद्र कुमार सिन्हा, डा उदय शंकर प्रसाद ,डा इनायत पालवी, डा आभास सिन्हा तथा डा मृत्युंजय कुमार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।