पटना ब्यूरो।गीता ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन, स्वामीजी ने एक विशेष विषय पर चर्चा की, जिस पर अनगिनत संत महापुरुषों ने इसी मार्ग को चलकर भगवान की प्राप्ति की है.उनके व्याख्यानों में प्रथम विचार था कि प्रत्येक जीव इस संसार में सुख की खोज में लगा है। वास्तव में, वह आनंद का स्रोत अपने ही हृदय में धुंध रहा है, पर माया के वश में रहकर वह भगवान की ओर नहीं आ सकता.इस अगाध नित्य शुद्ध आनंद को प्राप्त करने के लिए, जीव को भगवान और महापुरुषों की शरण में जाना होगा.स्वामीजी ने इस भागवद्गीता के मार्ग को ही अपने पांच दिवसीय प्रवचनों में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, गीता के पहले भी अर्जुन एक योद्धा था, लेकिन गीता सुनने के बाद भी वह एक योद्धा ही रहा, लेकिन उसकी सोच में बड़ा बदलाव आया। उनका अंतर्निहित संदेश था कि पहले वह अपने कर्मों को भोगने के लिए था, परंतु उसका संग्राम अब भगवान के लिए हो रहा था।