पटना (ब्यूरो)। एक तरफ रणजी क्रिकेट में धनवर्षा होती है दूसरी ओर नेशलन खेलने के लिए किराया भी प्लेयर को खुद ही देना पड़ता है। राष्ट्रीय खेल हॉकी की वर्तमान स्थिति बिहार में किसी से छुपी हुई नहीं है। यही वजह है कि हॉकी के प्रति यंगस्टर्स में दिनोंदिन उदासीनता बढ़ती जा रही है। प्रतिभावान खिलाड़ी क्रिकेट की तरह अपने भविष्य को लेकर पलायन करने या फिर इस खेल से विमुख होने को मजबूर हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने कुछ पूर्व हॉकी खिलाडिय़ों व कोच से बातचीत की। आज आप भी पढि़ए जब प्रोत्साहन राशि ही नहीं मिलेगी तो हॉकी प्लेयर कैसे तैयार हो पाएंगे

खुद के पैसे से खेलने को मजबूर
बिहार में हॉकी खिलाडिय़ों के प्रैक्टिस के लिए एस्ट्रो टर्फ ग्राउंड भी नहीं है। नेशनल और इंटरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट केवल एस्ट्रो टर्फ ग्राउंड में ही कराया जा सकता है। बिहार में केंद्र प्रायोजित एक भी हॉकी ट्रेनिंग सेंटर नहीं है। इस मामले में बिहार से निकलकर अलग राज्य बने ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के लगभग हर गांव में हॉकी का मैदान है। जबकि बिहार के खिलाड़ी अपना हॉकी किट खरीदते हैं और खुद के भाड़े से प्रतियोगिता में भाग लेने जाते हैं।

सरकारी उदासीनता विकास में बाधा
राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी अरुणिमा राय कहती हैं कि क्या आप जानते हैं कि 1928 एम्सड्रेम ओलंपिक में जब भारत ने ओलंपिक में पहली बार गोल्ड मेडल जीता था उस समय भारतीय हॉकी टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा थे और वे बिहारी थे? छपरा के हरेन्द्र सिंह इंडियन हॉकी टीम के चीफ कोच रहे और अभी यूएस हॉकी टीम के चीफ कोच हैं? इंटरनेशनल खिलाड़ी अजितेश राय जो इंडियन हॉकी टीम के कप्तान रह चुके हैं। वे पटना के हैं।

जिले लेवल पर भी मैच नहीं
साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि क्या आप जानते हैं कि तीन दशक से बिहार से हॉकी की बागडोर संभाल रहे पटना के मुश्ताक अहमद एक दशक तक हॉकी इंडिया के ट्रेजरर, महासचिव और प्रेसीडेंट रहे हैं? सोचिए अब तक यह राष्ट्रीय खेल हॉकी और बिहार से जुड़ी बहुत सामान्य जानकारी भी आपके पास नहीं है। समझिए, यही अब तक सरकार ने हॉकी को प्रोत्साहित करने के लिए किया कदम है। बिहार वर्षों से नियमित रूप से स्टेट चैंपियनशिप क्या, हॉकी में जिला लेवल का आयोजन भी नहीं कर पा रहा। ऐसे में आप कब तक खिलाडिय़ों को इससे बांधे रख सकेंगे।