- बिहार के दिव्यांग प्लेयर दूसरे राज्यों में प्रैक्टिस से कर रहे इम्प्रूव

-राज्य सरकार दिव्यांग प्लेयर को नहीं दे पा रही बेहतर प्रैक्टिस की सुविधा

PATNA: दिव्यांगता एक जंग है और ऐसे में पैरालंपिक में मेडल लाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। देश के कई दिव्यांग प्लेयर इस उपलब्धि से देश और अपने प्रदेश का नाम रौशन कर रहे हैं। लेकिन बिहार इस मामले में बेहद पिछड़ा है। यहां के प्लेयर पलायन के बाद ही अपनी पहचान बना पा रहे हैं। अब तक एक मेडल बिहार के प्लेयर ला पाए हैं, वह भी दूसरे प्रदेश में प्रैक्टिस करने पर। इंडिया टीम में बिहार का पार्टिसिपेशन भी कम है। बिहार देश के टॉप फाइव स्टेट में से एक है जहां दिव्यांगजन अधिक संख्या में रहते हैं। बिहार में अभी दो लाख से अधिक दिव्यांग नि:शक्तता कार्यालय में रजिस्टर्ड हैं। बिहार में दिव्यांगों के लिए खेल-कूद की बेहतर सुविधा नहीं मिलने के कारण वे अपने खर्चे पर दूसरे राज्यों में जाकर ट्रेनिंग आदि प्राप्त करने को मजबूर है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसके विभिन्न पहलुओं की पड़ताल की।

अपने खर्च पर जा रहे बाहर

कई दिव्यांग प्लेयर्स ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट को बताया कि वे बेहतर खेल की तैयारी के लिए बिहार से बाहर पलायन करने को मजबूर हैं। बांका जिला निवासी 28 वर्षीय पैराएथलीट सुमन कुमार ने बताया कि वे दिल्ली में रहकर तैयारी कर रहे हैं। यदि बिहार में ही सुविधा होती तो यहां रहकर पै्रक्टिस करते। इसी तरह नालंदा के बेन प्रखंड के एकसारा ग्राम निवासी कुंदन कुमार शार्ट पुट और डिस्कस थ्रो के खिलाड़ी हैं। वे वर्ष 2017 से अब तक लगातार स्टेट लेवल पर आयोजित होने वाले पैराएथलेटिक्स में गोल्ड ला रहे हैं। वे कोलकाता में रहकर प्रैक्टिस कर रहे हैं। वे साई के कैंप में प्रैक्टिस करते हैं और अपने खर्चे पर रहते हैं। इसी तरह दीपक कुमार व्हीलचेयर बास्केटबॉल के खिलाड़ी हैं। वे ओडिशा में रहकर प्रैक्टिस कर रहे हैं।

खिलाड़ी की मौत हो गई

पैराएथलेटिक के कोच और सीनियर खिलाड़ी संदीप कुमार ने बताया कि यह बात सरकार को समझना होगा कि आम खिलाडि़यों को मिलने वाली सुविधा की तुलना में दिव्यांगों के लिए अलग से व्यवस्था जरूरी है। यहां सही व्यवस्था नहीं होने से बीते वर्ष बिहार के एक पैरा स्वीमर की प्रैक्टिस करते हुए बेगूसराय में मौत हो गई। उसकी तमन्ना थी कि वर्ष 2020 में होने वाले नेशलन पैरालंपिक में पार्टिसिपेट करे। लेकिन नदी में डूबने से मौत हो गई।

पैरालंपिक है अलग

पैरालंपिक की खास विशेषता है जो इसे आम खेलों से अलग बनाता है। जहां आम खेलों में हर खेल का एक नेशनल फेडरेशन होता है। वहीं, पैरालंपिक में सिंगल कैनोपी के तहत सभी प्रकार के पैरा स्पो‌र्ट्स सिंगल आर्गनाइजेशन पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया के माध्यम से होता है। इसका मतलब है कि कोई चाहे व्हीचलेयर रग्बी का प्लेयर हो या पैराएथलीट, सभी एक कमेटी में आएंगे।

पैरालंपिक में ये खेल दिव्यांगजनों के लिए

- एथलेटिक

- स्वीमिंग

- बैडमिंटन

- व्हीलचेयर बास्केटबॉल

- व्हीलचेयर रग्बी

- फुटबॉल 7 एसाइड

- शूटिंग

- आर्चरी

- सिटिंग वॉलीबाल और

- बोचिया

जो सामान्य प्लेयर के लिए सुविधाएं हैं, उसी का यूज दिव्यांग प्लेयर भी कर सकते हैं। इसमें भेद-भाव नहीं है। इसके अलावा फिजिकल कॉलेज में भी प्रैक्टिस करायी जाती है। धीरे-धीरे प्लेयर के लिए और सुविधाएं भी विकसित की जाएगी।

- संजय सिन्हा, डायरेक्टर स्पो‌र्ट्स बिहार

पैरालंपिक खिलाडि़यों के लिए इस समय सबसे बड़ी समस्या प्रैक्टिस की है। आम खिलाडि़यों से अलग इसकी सुविधा मिलनी चाहिए। स्वीमिंग, व्हीलचेयर वाले गेम आदि में मोबिलिटी की समस्या है। राज्य में ही इसकी सुविधा मिलनी चाहिए।

- संदीप कुमार, कोच

मैं एशियन गेम्स में पार्टिसिपेट करने के लिए सलेक्ट हो गया था। लेकिन बेहतर प्रैक्टिस की कमी थी। सरकार से बेहतर प्रैक्टिस की व्यवस्था की गुहार लगाई। लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली। यहां तो बेहतर ग्राउंड ही नहीं है। इस वजह से मेरा एशियन गेम्स छूट गया।

-दीपक कुमार, व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर

मैं बांका का रहने वाला हूं और ग्राउंड की समस्या की वजह से ही दिल्ली अपने खर्चे पर जाना पड़ा। पिता किसान हैं और बड़ी मुश्किल से आगे की तैयारी कर रहा हूं। 35 मीटर का डिस्कस थ्रो मेरा बेस्ट है। यदि बेहतर प्रैक्टिस होती तो मैं भी टोक्यो पैरालंपिक में खेल पाता।

- सुमन कुमार, पारा एथलीट

मैं 2017 से अब तक स्टेट लेवल के सभी स्पो‌र्ट्स इवेंट और बिहार सरकार के पारा स्पो‌र्ट्स में गोल्ड मेडल जीतते रहा हूं। लेकिन बेहतर प्रैक्टिस के लिए सरकार से सहयोग नहीं मिली है। अपने खर्चे पर कोलकाता में साई की कोचिंग से प्रैक्टिस इम्प्रूव कर रहा हूं।

- कुंदन कुमार, पैरा एथलीट

क्या होता है पैरा स्पो‌र्ट्स में

डिग्री ऑफ डिसेबिलिटी के आधार पर क्लासिफिकेशन होता है। जो कि 11 से 68 तक होता है। इसके अलावा ब्लाइंड पैरा खिलाडि़यों की अलग कैटेगरी है।

ये है समस्याएं

- पैरा एथलीट के लिए प्रैक्टिस ग्राउंड नहीं है।

- व्हीलचेयर वाले खिलाडि़यों को बाहर जाकर प्रैक्टिस करना बेहद कठिन।

- मोबिलिटी की समस्या वाले खिलाडि़यों के लिए स्पो‌र्ट्स में अवसर नहीं के बराबर।