पटना ब्यूरो। सितार की धुन व तबले की संगत के साथ रूहानी गजलों से महफिल सजी थी। गजलों व बंदिशों को सुन श्रोता मंत्रमुग्ध होते हुए रुक-रुक कर तालियां बजाते हुए कलाकारों का उत्साह बढ़ाने में लगे थे। रविवार को कला संस्कृति एवं युवा विभाग व पटना लिटरेरी फेस्टिवल के संयुक्त तत्वावधान में राजवंशी नगर स्थित ऊर्जा आडिटोरियम में जश्न-ए-बिहार कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सितार वादक व गजल गायक उस्ताद शुजात हुसैन खान को सुनने के लिए श्रोताओं की भीड़ खूब उमड़ी। हुसैन खान ने दर्शकों को शांत रहते हुए गीतों को आनंद उठाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि सितार मेरे लिए मंदिर है। दूसरी बार पटना आने का मौका मिलना मेरे लिए गर्व की बात है। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने राग कल्याण में अलाप, बंदिश से की। वहीं, इसके बाद शुजात हुसैन ने सितार पर धुन छेड़ सुरीले अंदाज में कृष्ण बिहार नूर की गजल ङ्क्षजदगी से बड़ी सजा ही नहीं और जुर्म क्या है पता ही नहीं पेश कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि एक जमाने में इस शहर में देश के कई नामचीन हस्तियों ने प्रस्तुति दी है। इसे सुनने के लिए शहर पूरी रात जागता था। शायद ही कोई ऐसा फनकार हो जो पाटलिपुत्र की धरती पर अपनी प्रस्तुति न दी हो। यहां के श्रोता गंभीर होने के साथ कलाकारों का कद्र करना जानते हैं। वहीं, इसके बाद शुजात हुसैन ने कहां के रुकने थे रास्ते कहां मोड़ था उसे भूल जाए, ओ जो मिल गया उसे याद रख, जो नहीं मिला उसे भूल जा पेश कर सभी का मन मोहा। इसके बाद चुनरी में लग गए दाग पिया सुना कर तालियां बटोरीं। वहीं, इसके बाद सुननी नहीं है मुझको किसी और की जुबानी, तेरी सुबह कह रही है तेरी रात की कहानी और फिर ठुमरी मोहे मारे नजरिया, सांवरिया रे पेश कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। कार्यक्रम के दौरान संगत कलाकारों में तबले पर अमजद खान, शारीक मुस्तफा ने दमदार प्रस्तुति दी। सभी कलाकारों का स्वागत करते हुए कला संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर मुख्य सचिव हरजोत कौर व पटना लिटरेरी फेस्टिवल के सचिव खुर्शीद अहमद ने कलाकारों का स्वागत किया। हरजोत कौर ने कहा कि आने वाले दिनों में इस प्रकार के आयोजन होते रहेंगे। गायन, वादन और साहित्य जैसी विधाओं को एक मंच पर लाने का प्रयास विभाग की ओर से जारी रहेगा।