पटना ब्यूरो। हिन्दी के काव्य-साहित्य में प्रपद्य-वाद के प्रवर्त्तक और आलोचना-साहित्य के मानदंड आचार्य नलिन विलोचन शर्मा की लौकिक काया की भांति ही प्रवताकार थी उनकी यशो काया। हिन्दी का दुर्भाग्य रहा कि नलिन जी की आयु उनकी काया के विपरीत क्षीण रही। यदि वे कुछ वर्ष भी और जीते तो आलोचना-साहित्य और साहित्य के इतिहास में बिहार का स्थान श्रेष्ठतम सिद्ध हुआ होता। यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में नलिन जी की 109वीं जयंती पर आयोजित समारोह और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, चमत्कृत करने वाली प्रतिभा और विद्वता के कवि और समालोचक थे नलिन जी। उन्होंने 45 वर्ष की अपनी अल्पायु में 145 वर्ष के कार्य संपादित किए। राष्ट्र-भाषा हिन्दी अपने इस महान पुत्र पर गर्व करती है। पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक और साहित्य-सम्मेलन के साहित्य मंत्री के रूप में उनके कार्यों को कभी भूला नहीं जा सकता। आरंभ में अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष डॉ। मधु वर्मा ने किया। इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में डॉ। पुष्पा जमुआर ने 'वेलेंटाइन डे' शीर्षक से, डॉ। पूनम आनंद ने 'माघ पूर्णिमा' , श्याम बिहारी प्रभाकर ने 'स्वार्थी', प्रभात कुमार धवन ने 'प्रेरणा-स्रोत' तथा ई अशोक कुमार ने 'बुढ़ापे का सच' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।