पटना ब्‍यूरो। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और व्यक्तियों में निजी-कौशल के साथ-साथ सामाजिक-कौशल के विकास हेतु आवश्यक है कि उन्हें मानसिक-बल प्रदान किया जाए.उनके साथ प्रेम और सम्मान पूर्वक व्यवहार हो.उन्हें निरन्तर प्रेरणा दी जाए तथा उनसे जुड़ा और जोड़ा जाए। किसी भी व्यक्ति का जीवन, भले वह दिव्यांग हो अथवा सामान्य, तभी सार्थक और मूल्यवान हो सकता है, जब उसमें सामाजिक-दृष्टि विकसित हो। मानसिक रूप से असक्षम दिव्यांगों के लिए यह अवश्य कठिन है, किंतु अन्य प्रकार की शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे दिव्यांग इस हेतु सक्षम बनाए जा सकते हैं.भारतीय पुनर्वास परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से, इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, बेउर में, विशेष बच्चों में निजी और सामाजिक कौशल विकास विषय पर आयोजित तीन दिवसीय वैज्ञानिक-कार्यशाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने रविवार को यह बातें कही।

-शिक्षाकों की भूमिका सबसे बड़ी है।
समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि विशेष बच्चों में, सामान्य जीवन जीने योग्य कौशल और उनके सामाजिक-सरोकार बढ़ाने के कौशल के विकास में विशेष शिक्षाकों की भूमिका सबसे बड़ी है। सबसे पहली आवश्यकता यह है कि विशेष-शिक्षकों को अधिकाधिक सक्षम बनाया जाए। ये शिक्षक ही बार-बार समझाकर विशेष बच्चों को अपना जीवन जीना और अन्य लोगों के साथ संबंध विकसित करना सिखा सकते हैं। अन्य बच्चों और समाज के अन्य लोगों के साथ वे कैसे घुल-मिल सकते हैं, इसके लिए उन्हें तैयार कर सकते हैं। न्यायमूर्ति प्रसाद ने प्रतिभागी पुनर्वासकर्मियों को प्रशिक्षण के प्रमाण-पत्र भी प्रदान किए।