पटना ब्‍यूरो। अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान करने वाले युग-प्रवत्र्तक साहित्यकार थे महावीर प्रसाद द्विवेदी। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायकों में उन्हें आदर के साथ स्मरण किया जाता है। उनके विपुल साहित्यिक अवदान के कारण ही, उनके साधना-काल को, हिन्दी साहित्य के इतिहास में द्विवेदी-युग के रूप में जाना जाता है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य द्विवेदी की 160वीं जयन्ती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह बातें कहीं। डा सुलभ ने कहा कि, आधुनिक हिन्दी को, यदि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया तो यह कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी के काल में वह जवान हुई। आधुनिक हिन्दी, जिसे खड़ी बोली भी कहा गया, को गढऩे में असंदिग्ध रूप से आचार्य द्विवेदी का अद्वितीय अवदान है।

याद किए गए काशीनाथ पांडेय
सम्मेलन में महाकवि काशीनाथ पांडेय और डा रवीन्द्र राजहंस को भी स्मृति-दिवस पर श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। समारोह के उद्घाटन कर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने महाकवि को बिहार की साहित्यिक धरोहर बताते हुए कहा कि पाण्डेय जी ने हिन्दी काव्य में अनेकानेक भाषाओं के शब्दों से समृद्ध किया।

हिन्दी के सेवक थे रवीन्द्र
डा राजहंस को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि रवीन्द्र अंग्रेज़ी के प्राध्यापक किंतु हिन्दी के सेवक थे। उन्होंने अपनी काव्य-रचनाओं से वयंग्य-साहित्य को समृद्ध किया। मौके पर भारत सरकार ने उन्हें पद्म-सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, प्रो सुशील कुमार झा, दीपक ठाकुर, अविनय काशीनाथ पांडेय समेत अन्य लोग उपस्थित रहे।