- मनेर के इलाके में पानी में मिल रहा आर्सेनिक

- स्किन की बीमारी से लेकर कैंसर के भी बन रहे रोगी

PATNA : पीने के पानी की समस्या का एक और डरावना रूप पानी में प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक के मिलने के कारण भी है। पटना के मनेर और आस-पास के हिस्सों और दीघा के कुछ हिस्सों में भी इसका प्रभाव दिखता है। इसकी वजह से यहां रहने वाले लोगों को स्किन की बीमारी होनी आम बात बात हो गई है। इसके गंभीर असर के तौर पर कैंसर से भी लोग ग्रस्त हो जाते हैं। पटना बिहार के उन 18 जिलों में से एक है जो आर्सेनिक के प्रभाव क्षेत्र में आता है। इसका एक पहलू यह भी है कि इन इलाकों में भूजल स्तर जैसे-जैसे नीचे जा रहा है इसका प्रभाव और सामने आ रहा है। यानी ग्राउंड वाटर के लेवल में कमी आर्सेनिक की समस्या को बढ़ा रही है। एक अनुमान के मुताबिक यहां करीब 70 हजार से अधिक आबादी सीधे इसके संपर्क में है और स्किन की बीमारी सहित अन्य बीमारियों से पीडि़त है। अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब 1 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे है।

अब तक पूरा अध्ययन भी नहीं

करीब आठ-दस साल पहले बिहार में आर्सेनिक के प्रभाव का अध्ययन किया गया जिसमें कई प्रभावित हिस्से छूट गए थे। इसके बावजूद जो नतीजे मिले उसके अनुसार बिहार के कई इलाकों में यह सामान्य से 20 गुना अधिक पाया गया। यदि इसकी संपूर्ण तरीके से जांच की गई होती तो इसके बारे में विस्तृत जानकारी मिलती। इस वजह से इससे कैंसर और स्किन डिजीज से पीडि़तों का भी सही आंकलन नहीं हो पाया है। डॉक्टरों का भी कहना है कि इस संबंध में विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। इसके प्रभवित सभी श्रोतों की जांच होनी चाहिए।

एक बड़ी आबादी कैंसर पीडि़त

महावीर कैंसर संस्थान में एक बड़ी संख्या उन कैंसर पीडि़तों की है जो कि कैंसर से पीडि़त है। जांच में यह पता चला है कि आर्सेनिक के निरंतर सेवन की वजह से यह असर हुआ है। महावीर कैंसर में वर्ष 2019 में करीब 22 हजार पेशेंट आए। इसमें एक बड़ी संख्या आर्सेनिक प्रभावित लोगों के कैंसर पीडि़त के तौर पर हुई है।

फिल्टर आसान नहीं

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पटना के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एनएस मौर्या ने कहा कि यह अशुद्धि को साफ करना सामान्य तरीके से संभव नहीं है। दरअसल, आर्सेनिक के दो प्रकार हैं। एक आर्सेनिक -3 और दूसरा आर्सेनिक -5. इसमें पहला वाला अधिक नुकसानदेह है। यह स्किन को खराब कर देता है और कैंसर का भी कारण है। संस्थान की ओर से पटना के प्रभावित इलाकों में अध्ययन जारी है। उधर, बिहार सरकार के पीएचईडी डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के अनुसार, पानी की नियमित जांच चल रही है। इसमें कई जगहों की रिपोर्ट मिली है।

पानी में आर्सेनिक की समस्या गंभीर है। इस पर अनुसंधान और अध्ययन कर समाधान निकाल सकते हैं। वाटर लेवल घटने से इसका असर तेज होता है। साथ ही ऐसे इलाकों में लगे फसल और पशुओं के ग्रहण करने के बाद मनुष्यों में भी इसका प्रभाव होता है।

- डॉ अशोक घोष , चेयरमैन बिहार स्टेट पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड