पटना (ब्यूरो)। हिन्दी के प्रति अपनी अनन्य निष्ठा और भक्ति के कारण साहित्य-समाज में अपनी विशिष्ट-छाप छोड़ानेवाले स्मृति-शेष साहित्यकार नृपेंद्रनाथ गुप्त अपने साहित्य और स्मृतियों में, राष्ट्रभाषा- प्रहरी के रूप में सदैव जीवित रहेंगे। गुप्त जी हिन्दी भाषा को संपूर्ण भारतवर्ष में लोकप्रिय बनाने में अपने महान योगदान के लिए भी जाने जाएंगे। अपने सुदीर्घ जीवन में उन्होंने राष्ट्र और राष्ट्रभाषा को सर्वोच्च स्थान दिया। दशकों तक हिन्दी समाज उनकी कमी की अनुभूति करता रहेगा। उनके निधन से हिन्दी ने अपना वलिदानी-पुत्र खो दिया है।

यह बातें स्वर्गीय गुप्त के श्राद्धोत्सव के अवसर पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि-सभा की अध्यक्षता करते हुए,समेलन अध्यक्ष डॉ। अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि गुप्त जी साहित्य सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष ही नहीं डॉ। बी भट्टाचार्या के बाद सबसे वरीय जीवित संरक्षक सदस्य थे।

साहित्यिक जीवन दीर्घायु रहा

वरिष्ठ साहित्यकार और सम्मेलन के प्रधानमंत्री डॉ। शिववंश पाण्डेय ने कहा कि गुप्त जी का साहित्यिक जीवन बहुत ही दीर्घायु रहा। साहित्यिक पत्रिका नया भाषा भारती संवाद के दो दशकों से अधिक तक निरंतर प्रकाशन में उनका त्याग और वलिदान अद्भुत है।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ। शंकर प्रसाद, डॉ। शांति ओझा, डॉ। मेहता नगेंद्र सिंह, रमेश कंवल, डॉ। पुष्पा जमुआर, डॉ। सुधा सिन्हा, कृष्ण रंजन सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, सागरिका राय, डॉ। विनय कुमार विष्णुपुरी, चितरंजन भारती, आचार्य विजय गुंजन, सुभद्रा शुभम, डॉ। आर प्रवेश ने भी अपने श्रद्धा-उद्गार व्यक्त किए।