कलश स्थापना के साथ नवरात्र शुरू, आज होगा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

कोरोना सेफ्टी को लेकर श्रद्धालुओं ने घरों में ही की पूजा

PATNA :

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा शनिवार को शारदीय नवरात्र के पहले दिन कई मंदिरों और घरों में श्रद्धालुओं ने कलश स्थापना की। श्रद्धालुओं ने माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना के साथ के साथ महामारी से निजात की कामना की। शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस से दुर्गा सप्तशती का पाठ, रामचरित मानस का पाठ, देवी भागवत का पाठ आरंभ हो गया। इसका समापन आश्विन शुक्ल नवमी को हवन- पुष्पांजलि के साथ संपन्न होगा। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन माता के अलग-अलग रूपों की पूजा होगी ।

नवरात्र के पहले दिन नवदुर्गा का पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की गई। मान्यता है कि माता को लाल पुष्प पसंद है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। ज्योतिषाचार्य राकेश झा ने बताया कि शैलपुत्री माता का वाहन वृषभ है, इसीलिए ये वृषारूढ़ा तथा उमा नाम से भी जानी जाती है। पुराणों के अनुसार देवी सती अपने पुनर्जन्म में माता शैलपुत्री में रूप में अवतरित हुईं। इनकी उत्पति शैल से हुई। इन्होंने दाएं हस्त में त्रिशूल धारण किया है। धाíमक मान्यता है कि माता शैलपुत्री के पूजन से श्रद्धालु को संतान, धन-संपदा एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाली माता दुर्गा अपने भक्तों का दु:ख, दरिद्रता, भय, रोग का नाश तथा निर्भयता, सुख ऐश्वर्य, यश, कामना व सिद्धि प्रदान करती है। मान्यता है कि देवी माता अपने शरणागत का हमेशा रक्षा व कल्याण करती है।

घरों में ही लोग कर रहे पूजा

कोरोना महामारी काल में सार्वजनिक आयोजनों पर रोक के कारण इस बार शहर में बड़े पंडाल और आयोजन नहीं हो रहे हैं। श्रद्धालु अपने घरों में ही माता की आराधना कर रहे हैं और इस महामारी से निपटने के लिए इससे शांति के लिए वह प्रार्थना कर रहे हैं। भक्तों में माता की आराधना को लेकर के उत्साह चरम पर है। वे अपनी सुविधा के अनुसार माता को प्रसन्न करने में जुट गए हैं। मंदिरों में ब्राह्मण, पंडितों के द्वारा तमाम संयम और व्यवस्था के साथ पूजन, रामचरित मानस तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जा रहा है।

आज ब्रह्मचारिणी माता की पूजा

भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद् के सदस्य आचार्य राकेश झा ने बताया कि शनिवार से शुरू हुए शारदीय नवरात्र में माता नवदुर्गा में प्रथम शैलपुत्री की पूजा पूरे विधि विधान से की गई। वहीं रविवार को दूसरे दिवस में माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या तथा चारिणी का मतलब है आचरण करने वाली देवी। इस माता के हाथ में अक्ष माला और कमंडल होता है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से ज्ञान, सदाचार, लगन, एकाग्रता व संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है। श्रद्धालु अपने कर्म पथ से नहीं भटकता है तथा दीर्घायु होता है। माता की आराधना में कवच, अर्गला, कील के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा विशेष मंत्र के जाप से श्रद्धालुओं को मनोकामना पूर्ण होंगे। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भगवती की आराधना में कुछ ऐसे मंत्र एवं पाठ बताए गए हैं जिसको करने से श्रद्धालु कोरोना जैसी वैश्विक महामारी तथा अन्य रोग, शोक, दु:ख, संताप आदि से मुक्ति पा सकते हैं।