पटना ब्‍यूरो। हिन्दी के अनन्य सेवी और मनीषी विद्वान रामधारी प्रसाद विशारद के सदप्रयास और सक्रियता से ही बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई थी। वे इसके मुख्य सूत्रधार थे। सबसे पहले इनके ही मन में प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का विचार आया और उन्होंने देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद की स्वीकृति प्राप्त कर हिन्दी सेवियों का आह्वान किया। फलत: 19 अक्टूबर, 1919 को मुजफ़्फ़ऱपुर के हिंदू भवन में विद्वानों और हिन्दी-प्रेमियों की बैठक हुई, जिसमें साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय लिया गया। विशारद हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार और उन्नयन में अपने तपो प्रसूत संकल्प के लिए सदा स्मरण किए जाते रहेंगे। यह बातें, साहित्य सम्मेलन में, विशारद की 124वीं जयंती पर आयोजित समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।

19वें अधिवेशन के थे सभापति
डा अनिल सुलभ ने कहा कि विशारद, भागलपुर के बौंसी में आहूत हुए, सम्मेलन के 19वें अधिवेशन के सभापति चुने गए थे। इसके पूर्व वे वर्षों तक सम्मेलन के प्रधानमंत्री और उपसभापति भी रह चुके थे। हिन्दी के उन्नयन के लिए की गयी उनकी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्हीं के कारण यह संस्था हिन्दी की अमूल्य सेवाएं कर सकी है।

इंटरनेशनल लेवल पर पहचान
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने कहा कि आज से 105 वर्ष पहले रामधारी बाबू ने जिस संस्था की नींब डाली आज वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आदर से देखी जा रही है। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, विभा रानी श्रीवास्तव, अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, बांके बिहारी साव, डा चंद्रशेखर आज़ाद, विजय कुमार शर्मा, नंदन कुमार मीत, रवींद्र कुमार सिंह, सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।