पटना (ब्यूरो)। सर, मैं भी आईएएस बनना चाहता हूं। अंग्रेजी पढऩा चाहता हूं। स्कूल में मास्टर साहब देर से आते हैं और गप्पे मारकर चले जाते हैैं। मास्टर साहब को अंग्रेजी तो आती ही नहीं है। मेरे पापा दही बेचते हैं, आमदनी खुद पर खर्च कर जाते हैं। मेरी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था करा दीजिए। सैटरडे को पत्नी मंजू सिन्हा की 15वीं पुण्यतिथि पर पैतृक गांव कल्याण बिगहा पहुंचे सीएम नीतीश कुमार के सामने 12 साल के सोनू ने जब यह बात कही तो सीएम देखते रह गए। बच्चे की ललक व हिम्मत देख पीठ थपथपाकर शाबाशी दी और प्रभारी डीएम सह डीडीसी वैभव श्रीवास्तव को निर्देश दिया कि बच्चे की समस्या दूर की जाए। डीडीसी ने सरथा पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि रवि शंकर कुमार को किसी भी कार्य दिवस पर सोनू को लेकर कार्यालय पहुंचने का न्योता दिया।

सोनू ने झट से अपनी बात कह डाली
पांचवीं कक्षा का छात्र सोनू हरनौत प्रखंड के नीमा कोल निवासी रणविजय यादव व लीला देवी का पुत्र है। कल्याण बिगहा की रामलखन वाटिका में पत्नी, पिता व मां की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि देकर मुख्यमंत्री मध्य विद्यालय परिसर में स्थानीय लोगों की समस्याएं सुन रहे थे। इसी दौरान भीड़ से निकलकर सोनू कुमार ने झट से अपनी बात कह डाली। बड़ी बात यह कि मुख्यमंत्री के आगमन की बात सुनकर सोनू अपने गांव से दो किमी साइकिल चलाकर अकेले कल्याण बिगहा पहुंच गया। यहां सीएम से मिलने में सुरक्षा कारणों से दिक्कत हो रही थी। इस बीच उसकी नजर पंचायत की मुखिया निर्मला देवी के पति रवि शंकर कुमार पर पड़ी। उनसे मदद ली और सीएम के सामने पहुंच गया। मुख्यमंत्री पत्नी को श्रद्धांजलि देने के बाद गांव के शोक संतप्त तीन परिवारों से भी मिले।

ट्यूशन से निकाल रहा खर्च
सोनू ने सीएम के सामने यह भी कहा कि पिता पढ़ाई का खर्च नहीं देते तो मैं खुद पढ़ाई का खर्च निकालने लगा हूं। इसके लिए अपने समकक्ष एवं छोटी कक्षाओं के बच्चों को ट््यूशन देता हूं। हर रोज तीन बजे से दो घंटे तक 5वीं तक के बच्चों को पढ़ाता हूं। जागरण से सोनू ने बताया कि मैैं नीमा कोल प्राइमरी स्कूल में पांचवीं का छात्र हूं। यहां के अंग्रेजी शिक्षक से संतुष्ट नहीं हूं। अब अंग्रेजी माध्यम के अच्छे निजी विद्यालय में छठी कक्षा में दाखिला लेना चाह रहा हूं। इस कारण पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए गांव में ही चौहरमल बाबा के मंदिर पर पांचवीं क्लास तक के 35 बच्चों को ट््यूशन पढ़ा रहा हूं। फीस सौ रुपये तय की है। हालांकि समय पर फीस नहीं मिलती, कई बच्चे नहीं भी देते हैैं। इन बच्चों के लिए मैैं सोनू सर हूं। फीस नहीं मिलने पर भी किसी को पढ़ाना बंद नहीं करता। छात्रों में अधिकतर ईंट भट्ठा मजदूरों के बच्चे हैं।