हर जगह लडऩा पड़ता है

शाहिना आज मुंबई रवाना हो गई हैं। क्रिमिनलाइजेशन ऑफ पॉलिटिक्स एपिसोड की शूटिंग के लिए तीन दिनों तक वह मुंबई में रहेंगी। इस शो में क्या होगा खास और आमिर खान से क्या शेयर करना चाहती हैं शाहिना जाना आई नेक्स्ट ने। शाहिना कहती हैं कि आप कहीं भी रहें, बहादुरी और हौसला से ही मुकाबला करना होता है। शहर हो या गांव जब वीमेन प्रोग्रेस करती है तो उसे घर से दफ्तर तक लड़ाई लडऩी ही पड़ती है। झारखंड दुमका घर है, पर अब तो पटना की ही हो गई हूं। 1995 में पटना आई थी, तब से यहीं हूं। बस छुट्टियों में घर आना-जाना होता है। 2006 के इलेक्शन में पंचायती राज पर जोरदार ढंग से काम करने का मौका मिला। पंचायतों में 50 परसेंट वीमेन रिजर्वेशन के साइड इफेक्ट में महिला हिंसा खूब हुई। पहले भी आपसी लड़ाइयों में महिलाएं निशाना बनती रही हैं। पर पॉलिटिक्स में महिलाओं के खुलकर सामने आने से वह हिंसा के केंद्र में भी आ गईं। ऐसे में बड़ा चैलेंज है कि योग्य महिलाएं राजनीति के मोर्चे पर मजबूती से डटे रहें।

आज भी हिल जाती हूं

जमुई के इस्लामपुर ब्लॉक में एक महिला के तीन बच्चों को बेरहमी से मार डाला गया था। एक मां को इतनी बड़ी सजा सिर्फ चुनाव लडऩे के कारण मिली। हालांकि बाद में वह महिला इलेक्शन जीतीं भी। 2006 के इलेक्शन में मैंने खुद 42 हिंसा के मामले को ट्रैक भी किया। कई मामलों में सजा भी हुई और कुछ मामलों में दोषी बरी भी हुए। सहयोगी संगठनों के माध्यम से काम करती हूं। कभी-कभी एसपी या डीएम से भी बात करनी होती है। 2006 में हुए वीमेन वायलेंस की रिपोर्ट को होम सेक्रेटरी और डीजीपी को भी मैंने सौंपा था। हंगर प्रोजक्ट की ओर हिंसा की लपटों से गुजरता स्त्री नेतृत्व के सफर में हमलोगों ने कई केस को विस्तार से बताया है। कहीं वीमेन कैंडिडेट तो कहीं उसके पति, देवर या बेटे की हत्या कर दी गई।

व्यू शेयर करने का ज्यादा क्रेज

आमिर खान फेवरेट नहीं हैं, पर उनकी फिल्में अच्छी होती हैं। 'धूम-3Ó पसंद नहीं आई, पर दूसरे एक्टर्स की तुलना में आमिर कहीं ज्यादा सेंसिबल मालूम पड़ते हैं। 'रंग दे बसंतीÓ और 'लगानÓ जैसी मूवी उनको महान बनाती है। मैंने भी कई बार देखा है। एक्साइटमेंट तो नेचुरल है। लास्ट इयर हम लोगों ने वाउ कैंपेन यानी वायलेंस अगेंस्ट वीमेन में 'सत्यमेव जयतेÓ के कुछ एपिसोड की क्लीपिंग का यूज भी किया था। क्या पता था कि कभी खुद भी इस शो का हिस्सा बनूंगी।

बात रखने को बड़ा प्लेटफार्म

ग्रासरूट पॉलिटिक्स में वीमेन वायलेंस की स्थिति पर चर्चा होगी। तमाम कोशिशों के बाद भी धनबल-बाहुबल यहां हावी रहता है। घर से बाहर तक महिला हिंसा के नए-नए तरीकों का इजाद हो रहा है। कैरेक्टर पर अंगुली उठाना सबसे आसान है। कई जगह तो घरवाले ही विरोध में खड़े हो जाते हैं। सुसाइड और मर्डर के केसेज की कमी नहीं है। रिजर्वेशन के बाद भी राजनीति में महिलाओं का टिकना बहुत टफ है। वीमेन के पॉलिटिकल राइट पर बात करने के लिए निश्चित तौर पर एक बड़ा मंच होगा। पंचायत में पचास फीसदी रिजर्वेशन के बावजूद आज भी बिहार में कोई भी पॉलिटिकल पार्टी कहां महिलाओं को सामने लाती है। असेंबली या पार्लियामेंट में आज 10 परसेंट भी बिहारी महिला नहीं है।

पुरुषवादी संस्कृति ने स्त्रियों को हमेशा पर-निर्भरता का शिकार बनाया है। इसलिए आत्मनिर्भर होकर बाहर से सहयोग लेकर उन्हें अपनी नेतृत्व क्षमता को बढ़ाना होगा.शाहिना परवीन, सोशल एक्टीविस्ट।

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