पटना ब्यूरो पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन सोमवार को कालिदास रंगालय में नाट्य भूमि अगरतला की ओर से संजॉय कॉर लिखित और निर्देशित नाटक रंगीन रूमाल का मंचन किया गया। दूसरे सत्र में काईट एक्टिंग स्टूडियो मुंबई की ओर से साहेब नितीश लिखित और निर्देशित नाटक कपास के फूल का मंचन किया गया। दोनों नाटकों को दर्शकों ने खूब सराहा।

-मंच पर दिखी बंगाल और त्रिपुरा की कहानी
रंगीन रूमाल नाटक शेक्सपीयर के ऑथेलो से ली गई कहानी पर आधारित यह नाटक जाति-प्रथा की विडंबनाओं और उसके द्वंद्वों पर तो चोट करता ही है, नाटक के पुनर्लेखन के दौरान बंगाल और त्रिपुरा के आपसी सियासी-जातीय खींचतान और पारम्परिक द्वेषों की पृष्ठभूमि में इसे समसामयिक बनाने का प्रयत्न किया गया है.इसमें परस्पर सार्वभौम प्रेम के केन्द्रीय तत्व के इर्द-गिर्द घृणा, ईष्या, निर्ममता और छुआछूत के बदलते आयामों के साथ नए विकल्प की तरफ बढऩे के प्रयास के तौर पर भी देखा जा सकता है.
मंच पर-
-बूढ़ी औरत देबलीना की दोस्त: आयुष्मिता चक्रबर्ती
-मछुआरा,गार्ड,सैनिक: नृपेन्द्र सरकार
- कोर्ट कर्मी चंद्रसंता कार
- कोर्ट कर्मी, सैनिक: जॉयशंकर भट्टाचार्य, रुद्रनारायण
-सैनिक चन्दन वर्मन, रूपेंद्र कुमार । तुहिन शुभ्र भट्टाचार्जी बिष्णुपद चक्रवर्ती
- और रातो रात आती है मुल्क बंटवारे की खबर
नाटक कपास के फूल में 1947 में हुए भारत पकिस्तान के बंटवारे पर आधारित है। माई ताजो अपने पति रहीम के साथ हिन्दुस्तान के किसी जगह में रह रही है। वह गांव की सबसे बूढ़ी औरत है। हर व्यक्ति माई का सम्मान करता है, सिवाय उसके 3 बेटों के, जो उसे छोड़ कर बाहर आजीविका के लिए जा बसे हैं और उसके बाद फिर कभी उसकी तरफ मुड़ कर नहीं देखते हैं.चंदर की बेटी राधा माई के बेहद करीब है और रोज़ उसे खाना और लस्सी लाकर देती है। सारे लोग आपस में हिल-मिलकर खुशी-खुशी रह रहे थे, किसी को किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं थी। तभी मुल्क के बंटवारे की खबर आती है और एकाएक सारे लोग आपस में बंट जाते हैं। देखते ही देखते आपस का प्यार नफरत में बदल जाता है और सब एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं। कुछ मौका परस्त लोग इस परिस्थिति का पूरा फायदा उठाने के लिए लोगों को धर्म-जाति के नाम पर उकसाने का प्रयास करते हैं। चंदर, अपने भाई महावीर, पिता रघुबर और दोस्त तनवीर के साथ मिलकर बलवे को टालने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन अंतत: विफल हो जाता है। नाटक में प्रेम, अमन, भाईचारे एवं एकता के महत्व को दिखाने का प्रयास किया गया है। यह नाटक पूर्णत: काल्पनिक है एवं किसी व्यक्ति, धर्म, जाति, संप्रदाय या समाज से किसी भी प्रकार की समानता केवल संयोग मात्र है.
मंच पर
माई ताजो अंकिता दुबे
चंदर साहेब नितीश
राधा करिश्मा शर्मा
रहीम चाचा करण ठाकुर
महावीर आर्यन मिश्रा अभिराज बडऩे
बनवारी तनुज उपाध्याय
तनवीर शुभम विश्वास
बलराम सिंह अभिषेक पाठक
अनवर पठान: अनिल जनक सिंह