पटना ब्यूरो।किचन का बचा खाना सीधे पॉलीथिन में पैक होकर निगम की गाडिय़ों में चला जाता है। पहले बड़े बुजुर्ग जो खुद और अपने परिवार के सदस्यों को भी छत पर पक्षियों के लिए दाना-पानी रखने के लिए प्रेरित करते थे, वैसी आदत रखने वाले भी दुर्लभ ही मिलते हैं। ये बातें देश के जाने-माने पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा ने कहीं। वे पटना के होटल मौर्या में आयोजित बर्ड कंजर्वेशन इन इनिशिएटिव इन इंडिया पर इंटरनेशनल वर्कशॉप में ये बातें कहï रहïे थे। उन्होंने बताया कि पटना में जहां कभी गौरैया का झुंड दिखती थी, उनकी चहचहाहïट अब सुनाई नहीं देती है। कई जगहों पर संरक्षण के नाम पर बने कृत्रिम घोसलें भी उन्हें रास नहीं आ रहे। झाडिय़ां, झुरमुट सिमते गए और उनका आवास छिनता गया। अब यहां पर कंक्रीट के जंगल रह गए हैं।
राज्य पक्षी गौरैया का बुरा हाल
गौरैया बिहार का राज्य पक्षी है और इसके सरवाइवल के बारे में आगे अरविंद मिश्रा ने बताया कि मैंने पहले ही कहा है कि गाय, गोबर और गौरैया का आपस में गहरा संबंध है। जहां गाय नहीं हेागा, वहां गोबर नहीं और जब गोबर नहीं तो उसमें गौरैया के लिए भोजन के लिए कीड़े नहीं मिलेंगे। ऐसी स्थिति में उनका अस्तित्व तो खतरे में आएगा ही। पटना में बेतरतीब तरीके से अर्बनाइजेशन हो चुका है। जहां-जहां मकान बन रहे हैं। कोई नियम नहीं है कि कम से कम एक खास घेरे में पक्षियों के लिए डेडिकेटेड एरिया हो। लेकिन ऐसा नहीं है। जबकि पक्षियां एक खास इको सिस्टम का अभिन्न हिस्सा हैं। यह शहर की वजह से खोता जा रहा है। गैरैया की भांति मैना पक्षी का भी कमोबेश यही हाल है, वे अब घर के आंगन और छतों पर बहुत कम ही दिखते हैं।
कोर्ट के आदेश भी नाकाफी
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि जहां पर पक्षियों का सघन क्षेत्र है वहां पर इनके बचाव के लिए संबंधित क्षेत्र में हाई टेंशन लाइन को अंडरग्राउंड करना है। लेकिन अफसोस इस आदेश का पालन नहीं हो रहा है और इस वजह से बस्टर्ड प्रजाति की पक्षियों जिसे हुकना भी कहा जाता है, यह अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की दृष्टि से संकटग्रस्त पक्षी की श्रेणी में है। ये बातें इंटरनेशनल वर्कशॉप में किशोर राठे ने कही। वे 'इनफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंटल एंड बर्ड कंजर्वेशनÓ टॉपिक पर बोल रहे थे। वन एवं पर्यावरण विभाग, बिहार सरकार और बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी की ओर से यह वर्कशॉप सात फरवरी तक आयोजित है। वे वर्कशॉप में बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी बात रख रहे थे।
पटना में पहली बार
यह पहला अवसर रहा जब बर्ड कंजर्वेशन को लेकर इंटरनेशनल वर्कशॉप का आयोजन पटना में किया गया। इससे पहले विदेशों में या राजधानी दिल्ली में भी ऐसे कार्यक्रम होते रहे हैं। इस मायने में यह बेहद खास माना जा रहा है। इस मौके पर जुलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के प्रभारी अधिकारी डॉ। गोपाल शर्मा ने इसे पूरे बिहार के बर्ड कंजर्वेशन के लिए बड़ा अवसर बताया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे आयोजन से बर्ड कंजर्वेशन जैसे गंभीर पर्यावरणीय विषय पर समझ बढ़ाने और पहल करने में आसानी होगी।
इन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई
इंटरनेशनल वर्कशॉप के दौरान साउथ इस्ट एशिया के पक्षियों के अवैध शिकार, व्यापार से उत्पन्न चुनौतियां, एशियाई क्षेत्र और पक्षी संरक्षण की पहल पर चर्चा करना उदेश्य है। साथ ही इन समस्याओं से संरक्षण की पहल और उपायों को सुझाया गया। इसी दौरान भारत जंगली पक्षियों के अवैध शिकार आदि विषय पर भी चर्चा किया गया। इस मौके पर बिहार के वन एवं पर्यावरण विभाग के कई अधिकारी, पक्षी वैज्ञानिक, बर्ड कंजर्वेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और देश के अन्य राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
पक्षी पर्यटन की संभावनाएं
वंदना प्रेयसी ने बताया कि बिहार में पांच पक्षी अभयारण्य है। एक सामुदायिक रिजर्व भी है। यहां 400 वर्ग किलोमीटर में वेटलैंड फैली हुई हैं, जो प्रवासी पक्षियों के लिए सर्वोत्तम आवास है। वन एवं पर्यावरण विभाग सक्रिय रूप से पक्षियों के संरक्षण में जुटा है। पक्षी संरक्षण विभाग की प्राथमिकता है। उन्होंने बताया कि बिहार में पक्षी पर्यटन की अ'छी संभावना है जिससे रोजगार के भी कई अवसर मिलेंगे। इस अवसर पर 'विंग्स ऑफ सुंदरवनÓ और बर्ड एटलस ऑफ भागलपुर का पोस्टर वंदना प्रेयसी ने जारी किया। जानकारी हो कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, मुंबई की मदद से हर साल वार्षिक जलपक्षी जनगणना आयोजित की जाती है.