यहां पेशेंट की केयर करने वाला कोई नहीं

- स्थापना के सालों बाद भी नहीं सुधरी है आईजीआईएमएस की स्थिति

- मेन गेट पर ही गंदगी का अंबार, साफ-सफाई की प्रॉपर व्यवस्था नहीं

<यहां पेशेंट की केयर करने वाला कोई नहीं

- स्थापना के सालों बाद भी नहीं सुधरी है आईजीआईएमएस की स्थिति

- मेन गेट पर ही गंदगी का अंबार, साफ-सफाई की प्रॉपर व्यवस्था नहीं

PATNA: patna@inext.co.in

PATNA: आईजीआईएमएस को पटना के एक सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पीटल के रूप में स्थापित किया गया, पर स्थापना के 32 साल से अधिक समय बीतने के बाद भी यहां की स्थिति नहीं सुधरी। यहां ओपीडी में हर दिन दो हजार से अधिक पेशेंट आते हैं, पर यहां आलम ऐसा है कि शायद ही कोई इसे सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पीटल कहे। ओपीडी के सामने ही गंदगी का अंबार लगा रहता है। इतना ही नहीं, हॉस्पीटल में साफ-सफाई की भी प्रोपर व्यवस्था तक नहीं है और न ही कोई काम सुचारू रूप से होता है। पेशेंट घंटों लाइन लगाकर रजिस्ट्रेशन कराते हैं और जांच रिपोर्ट लेने के लिए भी घंटों खड़े रहते हैं। अररिया से आए रघुवीर सिंह ने आई नेक्स्ट को बताया कि मैं अपने बेटे के इलाज के लिए आया हूं। तीन दिन पहले ही ब्लड टेस्ट कराया था, पर रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। एक पेशेंट बहुत बेचैन दिखा, बातचीत में पता चला कि वह हेपेटाइटिस बी से पीडि़त है और उसे अभी तक जांच की रिपोर्ट नहीं मिली। डॉक्टर के कहने पर टेस्ट तीन दिन पहले ही कराया गया था, पर रिपोर्ट अभी तक नहीं आया है।

दवा की स्ट्रिप की ढेर

सीतामढ़ी से आए डायलिसिस के पेशेंट उदय प्रसाद भगत नेफ्रोलॉजी ब्लॉक में एडमिट हैं। वार्ड के पास गंदगी का अंबार लगा रहता है। सिरिंज और यूरिनल की थैली और दवा की स्ट्रिप की ढेर भी लगे रहते हैं। पेशेंट के साथ मौजूद उनके बेटे वसंत कुमार ने बताया कि पटना के टॉप हॉस्पीटल की ऐसी बदहाल स्थिति होगी, मैंने सोचा भी नहीं था।

सिर्फ सर्विस रूल से है ये हाल

1984 में जब इस इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई, तो इसका उद्ेश्य था कि इसे पटना में एम्स की तर्ज पर सुविधाएं मिले। कई स्पेशियलिटीजी भी होंगी। ऐसा दावा यहां का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स भी करता है, पर ऐसा नहीं हो पाया है। पूर्व डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार ने कहा कि यहां केवल सर्विस रूल लागू है, पर अब तक रूल रेग्युलेशन बना ही नहीं। पेशेंट हित को छोड़ सरकारी हस्तक्षेप हमेशा ही हावी रहा है। 2008 में आईजीआईएमएस एक्ट में संशोधन कर यहां मेडिकल कॉलेज और नर्सिग कॉलेज भी खोलने का प्रावधान किया गया। नर्सिग सर्विस के मैनेजमेंट के लिए मेट्रन तक नहीं हैं। पद हैं, लेकिन नियुक्तियां नहीं हो रहीं।

अधिक बजट की है जरूरत

एम्स का बजट कम से कम 900 करोड रुपए का है, पर आईजीआईएमएस का बजट 35 करोड़ का है, जिसे सरकार बढ़ा नहीं सकी है। यह कहना है पूर्व डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार का। यदि इसे बेहतर करना है तो इसके लिए सुनियोजित प्रयास और समुचित बजट की जरूरत होगी।

मैंने कई बार वार्डो में विजिट किया है। वास्तव में यहां गंदगी है। इसे ध्यान में रखते हुए अब नए सिरे से टेंडर निकाला जा रहा है। इससे क्लीनलाइनेस और सैनिटेशन की सुविधा बेहतर होगी।

- डॉ एनआर विश्वास, डायरेक्टर, आईजीआईएमएस

<आईजीआईएमएस को पटना के एक सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पीटल के रूप में स्थापित किया गया, पर स्थापना के फ्ख् साल से अधिक समय बीतने के बाद भी यहां की स्थिति नहीं सुधरी। यहां ओपीडी में हर दिन दो हजार से अधिक पेशेंट आते हैं, पर यहां आलम ऐसा है कि शायद ही कोई इसे सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पीटल कहे। ओपीडी के सामने ही गंदगी का अंबार लगा रहता है। इतना ही नहीं, हॉस्पीटल में साफ-सफाई की भी प्रोपर व्यवस्था तक नहीं है और न ही कोई काम सुचारू रूप से होता है। पेशेंट घंटों लाइन लगाकर रजिस्ट्रेशन कराते हैं और जांच रिपोर्ट लेने के लिए भी घंटों खड़े रहते हैं। अररिया से आए रघुवीर सिंह ने आई नेक्स्ट को बताया कि मैं अपने बेटे के इलाज के लिए आया हूं। तीन दिन पहले ही ब्लड टेस्ट कराया था, पर रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। एक पेशेंट बहुत बेचैन दिखा, बातचीत में पता चला कि वह हेपेटाइटिस बी से पीडि़त है और उसे अभी तक जांच की रिपोर्ट नहीं मिली। डॉक्टर के कहने पर टेस्ट तीन दिन पहले ही कराया गया था, पर रिपोर्ट अभी तक नहीं आया है।

दवा की स्ट्रिप की ढेर

सीतामढ़ी से आए डायलिसिस के पेशेंट उदय प्रसाद भगत नेफ्रोलॉजी ब्लॉक में एडमिट हैं। वार्ड के पास गंदगी का अंबार लगा रहता है। सिरिंज और यूरिनल की थैली और दवा की स्ट्रिप की ढेर भी लगे रहते हैं। पेशेंट के साथ मौजूद उनके बेटे वसंत कुमार ने बताया कि पटना के टॉप हॉस्पीटल की ऐसी बदहाल स्थिति होगी, मैंने सोचा भी नहीं था।

सिर्फ सर्विस रूल से है ये हाल

क्98ब् में जब इस इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई, तो इसका उद्ेश्य था कि इसे पटना में एम्स की तर्ज पर सुविधाएं मिले। कई स्पेशियलिटीजी भी होंगी। ऐसा दावा यहां का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स भी करता है, पर ऐसा नहीं हो पाया है। पूर्व डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार ने कहा कि यहां केवल सर्विस रूल लागू है, पर अब तक रूल रेग्युलेशन बना ही नहीं। पेशेंट हित को छोड़ सरकारी हस्तक्षेप हमेशा ही हावी रहा है। ख्008 में आईजीआईएमएस एक्ट में संशोधन कर यहां मेडिकल कॉलेज और नर्सिग कॉलेज भी खोलने का प्रावधान किया गया। नर्सिग सर्विस के मैनेजमेंट के लिए मेट्रन तक नहीं हैं। पद हैं, लेकिन नियुक्तियां नहीं हो रहीं।

अधिक बजट की है जरूरत

एम्स का बजट कम से कम 900 करोड रुपए का है, पर आईजीआईएमएस का बजट फ्भ् करोड़ का है, जिसे सरकार बढ़ा नहीं सकी है। यह कहना है पूर्व डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार का। यदि इसे बेहतर करना है तो इसके लिए सुनियोजित प्रयास और समुचित बजट की जरूरत होगी।

मैंने कई बार वार्डो में विजिट किया है। वास्तव में यहां गंदगी है। इसे ध्यान में रखते हुए अब नए सिरे से टेंडर निकाला जा रहा है। इससे क्लीनलाइनेस और सैनिटेशन की सुविधा बेहतर होगी।

- डॉ एनआर विश्वास, डायरेक्टर, आईजीआईएमएस

Public says

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मुझे पेट में काफी दर्द रहता है। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड कराने को कहा है, पर टेस्ट की डेट भ्0 दिन बाद की मिली है। अब आप ही बताइए मैं कैसे भ्0 दिनों तक इस दर्द को झेलूंगा।

- श्रवण ठाकुर, पेशेंट समस्तीपुर

यहां न तो पीने के पानी की समुचित व्यवस्था है और न ही बेड पर चादर। टेस्ट के बारे में भी समय पर जानकारी नहीं मिलती। पेशेंट आखिर क्या करे?

- अब्दुल हकीम, पेशेंट के रिलेटिव, पूर्णिया

मेरी तबीयत बिगड़ गई है। हेपेटाइटिस की बीमारी है, पर डॉक्टर इसे सामान्य जैसा ही देख रहे हैं। मैं यहां पिछले तीन दिनों से रिपोर्ट के लिए परेशान हूं।

- वीरेंद्र यादव, हेपेटाइटिस पेशेंट