पटना (ब्यूरो)। महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारतीय महिला मुक्केबाज घरेलू रिंग पर स्वर्णिम प्रदर्शन कर दूसरी महिला बॉक्सरों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। इस प्रदर्शन से उन्होंने 17 साल के सूखे को भी खत्म किया। अपने राज्य बिहार में भी कई ऐसी बॉक्सर हैं जिनके मुक्के के बड़े-बड़े ढेर हो जाते हैं। इनकी प्रतिभा सिर चढ़ कर बोलती है। ऐसी कई बेटियों ने कई मेडल जीत कर सरकारी नौकरी पाई है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने बिहार में महिला बॉक्सिंग की स्थिति का लिया जायजा। पढि़ए रिपोर्ट


लाईं मेडल, पाई नौकरी

पटना की काजल ने सीनियर नेशनल बॉक्सिंग चैैंपियनशिप में मेडल लाकर बिहार पुलिस में नौकरी पाई। उसके बाद उन्होंने एसएसबी की परीक्षा पास कर नौकरी पाई। पटना की ही अनामिका ने नेशनल चैैंपियनशिप में तीन बार भाग लिया था। इसके बाद उन्हें केंद्रीय विद्यालय में स्पोर्ट्स टीचर की नौकरी मिली। यहीं की अदिति अपने प्रदर्शन की बदौलत सीआरपीएफ में नौकरी कर रही हैैं।


मेडल के लिए मेहनत कर रहीं बेटियां

राजधानी पटना के पाटलिपुत्र स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स स्थित बॉक्सिंग रिंग में शाम के समय करीब 9 की संख्या में लड़कियां प्रैक्टिस कर रही हैं। लड़कियों की संख्या कम होने के सवाल पर पता चला कि ज्यादातर सीनियर प्लेयरों की नौकरी हो गई। कुछ साथी खिलाड़ी छठ पूजा की वजह से नहीं आईं। वहीं इनको प्रशिक्षण दे रहे राहुल का कहना है कि बिहार की बेटियों के मुक्के में भी दम है। यह अपनी प्रतिभा से मेडल ला रही हैैं।

25 जिलों में चल रही एकेडमी

राहुल ने बताया कि पूरे बिहार के 25 जिलों में बॉक्सिंग में लड़कियां अपना दम दिखा रही हैैं। इनमें दरभंगा, भागलपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, सारण, रोहतास, सासाराम व मोतिहारी की खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ दे रही हंै। इनमें रातरानी की चर्चा तो आज सबकी जुबान पर है। इन्होंने खेलो इंडिया में बेहतरीन प्रदर्शन किया। हालांकि मेडल से चूक गईं। किसान पिता की बेटी रातरानी अपनी मां की मदद से रातरानी मेडल के लिए मेहनत कर रही हैैं। वह साई में प्रैक्टिस के लिए जाना चाहती हैैं।

एसोसिएशन का सपोर्ट

बिहार में खासकर पटना में बॉक्सिंग को आगे बढ़ाने में बिहार खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रविंद्रन शंकरण व निदेशक सह सचिव पंकज राज के दिशा निर्देश में इस खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है। एसोसिएशन के तरफ से रिंग, बॉक्सिंग बैग, इक्यूवमेंट, गार्ड व गलब्स आदि उपलब्ध कराया जाता है।

कई लड़कियां बनीं नजीर

बॉक्सिंग चोटिल करने वाला खेल है। इस खेल से लड़कियां ज्यादा दूर रही है। लेकिन मैरीकॉम को अपना आदर्श मानकर इस खेल में आई लड़कियां अपने खेल की बदौलत नजीर बन गई है। आज वे विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी कर रही है। आज पटना के रिंग से निकल कर कोई बीएसएफ, सीआरपीएफ व बिहार पुलिस में अपनी सेवा दे रही हैं।

नानी बना रही बॉक्सर

पटना के डॉक्टर्स कॉलोनी की रहने वाली मुस्कान मैरीकॉम को अपना आदर्श मानती है। उनके जैसा ही बनना चाहती है। पिछले 6 साल से बाक्सिंग को अपनाने वाली सुहानी ने बताया कि उसकी नानी को यह खेल पसंद था। उन्होंने ही बॉक्सिंग में दाखिला दिलाया। यूथ नेशनल व सबजूनियर नेशनल में प्रतिभाग कर चुकी मुस्कान का सपना भी अंतरराष्ट्रीय पटल पर बिहार का नाम रोशन करे। उसके लिए वह ज्यादा से ज्यादा समय बॉक्सिंग को दे रही है।

किराये के पैसे से मां बना रही बॉक्सर

डॉक्टर्स कॉलोनी की रहने वाली इशानी का कहना है कि विश्व चैंपियनशिप में भारत को मिले स्वर्ण पदक ने महिला बॉक्सिंग में स्फूर्ति ला दिया है। हर लड़कियां अब जोश से इस खेल को अपनाएंगी। इशानी ने बताया कि उसके पिता का निधन बहुत पहले हो गया था। मां उसे किराये से मिलने वाले पैसे से बॉक्सर बना रही है। मां के लिए वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतना चाहती है।

दूध बेचकर कर रही बॉक्सिंग

भूतनाथ रोड की रहने वाली साक्षी की कहानी भी इशानी व मुस्कान की तरह है। साक्षी के पिता नहीं हैं। मां दूध बेचकर घर चलाती हैं। लेकिन बॉक्सिंग में उसकी दादी ने डाला। दादी चाहती है कि वह इतनी मजबूत बने की किसी प्रकार के मुश्किलों को आसानी से सामना कर सके। छह साल पहले बॉक्सिंग में कॅरियर बनाने आई साक्षी ने महाराष्ट्र में हुए सबजूनियर, दिल्ली में हुए एसजीएफआई में प्रतिभाग किया है।