पटना ब्‍यूरो। अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं 6 जून गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या से युक्त रोहिणी नक्षत्र व धृति योग में वट सावित्री का व्रत करेंगी। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। मान्यता के अनुसार यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्य वर्धक, पाप हारक, दु:ख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना गया है। इसमें ब्रह्मा, शिव, विष्णु व स्वयं सावित्री भी विराजमान रहती हैं।

अनिष्ट ग्रहों से मिलेगी मुक्ति
ज्योतिष आचार्य राकेश झा ने बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या 6 जून गुरुवार को वट सावित्री का व्रत पुण्यफल देने वाला संयोग बना है। इस दिन सूर्यपुत्र शनि की जयंती, रोहिणी नक्षत्र एवं धृति योग विद्यमान रहेगा। वहीं इस बार वट सावित्री व्रत पर ग्रहों की स्थिति भी बेहद शुभकारी बन रही है। वट सावित्री व्रत के दिन बरगद व पीपल की पूजा करने से शनि, मंगल और राहू के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। इस दिन शनि ग्रह की शांति के लिए इसका बड़ा महत्व है।

सर्वकामना प्रदायक है वट की पूजा
अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं इस व्रत को करती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है। इसलिए इस वृक्ष के कई जड़ में पूजा करने से सर्व मनोकामना की पूर्ति एवं बच्चों की निरोग काया व विकास का वरदान मिलता है। वट वृक्ष को अक्षत, पुष्प, चंदन, ऋ तुफल, पान, सुपारी, वस्त्र व धूप-दीप आदि से पूजा कर पंखा भी झलेंगी। इसके बाद पौराणिक कथा का श्रवण कर पति से आशीर्वाद पाएंगी।

मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान
पंडित झा ने ब्रह्मवैवर्त्तपुराण व स्कन्द पुराण के हवाले से बताया कि वट सावित्री का व्रत एवं इसकी पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पूजा के बाद भक्ति पूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए। इससे परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। उन्होंने कहा कि इस दिन गंगा या तीर्थ में स्नान करने से सहस्त्र गौदान, कोटि सुवर्ण दान के बराबर फल मिलता हैं। वट की पूजा और परिक्रमा के बाद अन्न, तिल, ऋ तुफल आदि का दान करने से समृद्धि तथा गृहस्थ आश्रम में शांति बनी रहती है।

नवविवाहिता करेंगी विस्तृत पूजन
पंडित राकेश झा ने कहा कि वट सावित्री की पूजा में मिथिलांचल की नवविवाहिता पुरे विस्तार से वट की पूजा-अर्चना करेंगी। शादी के बाद पहली बरसाइत में पुरे दिन उपवास कर सोलह श्रृंगार कर आंगन को अरिपन से लेप कर पति-पत्नी संग में वट की पूजा नियम-निष्ठा से करने के बाद चौदह बांस से निर्मित लाल-पीला रंग में रंगा हुआ हाथ पंखा से वट वृक्ष को हवा देंगी। इस पूजा में आम और लीची की प्रधानता रहती है। गुड्डा-गुडिय़ा को सिंदूर दान भी होगा। अहिबातक पातिल यानि रंगा हुआ घड़ा में पूजन की दीपक प्रज्ज्वलित रहेगी। वर पूजा के बाद नव दंपति को बड़े-बुजर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनाएंगी। उसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋ तुफल का प्रसाद ग्रहण करेंगी। आगंतुक महिला श्रद्धालु एवं कथावाचिका को अंकुरित चना, मुंग, फल, बांस का पंखा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करेंगी।

यम के भय को दूर करता वट वृक्ष
वैदिक गंथों, उपनिषद व पौराणिक ग्रंथों में मृत्यु को भी चुनौती देने वाले वट प्रजाति के वृक्षों में बरगद को अमूल्य बताया गया है। इसकी जड़, छाल, पत्ता, दूध, छाया तथा हवा न सिर्फ मनुष्यों बल्कि पृथ्वी, प्रकृति एवं समस्त जीव-जंतुओं के लिए जीवन रक्षक माना गया है। मनुष्य के शरीर में बीमारियों के रूप में यदि यमदूत प्रवेश कर गया हो और वह इस वृक्ष की शरण में चला जाए, तो जैसे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के हाथ से जीवित लौटने में सफलता हासिल की थी। उसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यमदूतो से मुक्ति पा सकता है। इसकी हवा से मन की शक्ति बढ़ती है। मन मजबूत हो तो काल को भी परास्त किया जा सकता है।

अंकुरित चने का आध्यात्मिक महत्व
पंडितों ने भविष्य पुराण के हवाले से बताया कि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को वापस दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया, इससे सत्यवान पुन: जीवित हो गए थे। चना के प्राणदायक महत्व होने के कारण इसे वट सावित्री की पूजा में अंकुरित चना अर्पण किया जाता है।

वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि- शाम 05.35 बजे तक
गुली काल मुहूर्त सुबह 08.24 बजे से 10.06 बजे तक
अभिजित मुहूर्त दोपहर 11.21 बजे से 12.16 बजे तक
चर-लाभ-अमृत मुहूर्त सुबह 10.06 बजे से शाम 03.13 बजे तक