पटना ब्यूरो।मानव सभ्यता के आरंभ से ही कथा सुनने-सुनाने पर बहुत जोर रहा है। इस देश में कथा सुनाने वालों की एक लंबी परम्परा रही है, जो घूम-घूम कर कथा बांच कर ही अपना जीवन चलाते रहे हैं। नाटक कथा ऐसे ही कथावाचकों की बातचीत से सम्भव हुई। कथा की व्यथा है, जिसमें काधिक लोचन व गुडिया की कहानी के माध्यम से प्रेम और पानी को बचाने की बात कहते हैं। काथिकों को लगता है कि संसार बचाने के लिये प्रेम व पानी को बचाने की जरूरत है। आज हर तरफ प्रेम और पानी दोनों का अकाल पड़ गया है। नाटक, सभ्यता की शुरुआत की किसी बड़ी घटना से रोजमर्रा की किसी साधारण घटना को एक सूत्र में जोड़ कर अपनी बात को रखने का प्रयास करता है। नाटक अपने कथा सूत्र में बार-बार इस बात को सामने लाती है कि जो कोमल है, जो भी नाजुक है, उसे समय की क्रूरता या तो मार देगी और अगर वह बचा रहा तो कम से कम अपनी ही तरह क्रूर अवश्य बना देगी.
मंच पर
प्रिया कुमारी, आयशा सिंह यादव, यैमय कुमार, चन्दन कुमार वत्स, अंकित शर्मा, देवानंद सिंह, कमलेश ओझा, चन्दन कुमार, मो। रहमान, जीतेन्द्र कुमार, दीपक कुमार.
नेपथ्य.
मंच परिकल्पना कुमार अभिजीत, प्रकाश परिकल्पना चिंटू कुमार, बस्त्र विन्यास पूजा कुमारी रिमझिम कुमारी, ध्वनि: खुशबू कुमारी, संगीत निर्देशन अमरेश कुमार दीपक कुमार, संगीत गायन, वाद्य यंत्र: दीपक कुमार, रावेकात कुमार, लाल बाबू कुमार, रूपसज्जा नंदन कुमार सिंह, मंच प्रबंधन प्रभात कुमार.