पटना (ब्यूरो)।काहे ले आइल डोलिया कहार बलमू, अबही बारी उमिरिया हमार बलमू जैसे कई गीतों को लिखने और गाने वाले गायक व गीतकार ब्रजकिशोर दुबे के निधन से बिहार के कलाकारों में शोक की लहर है। 24 जनवरी 1954 को रोहतास के मंगरवलिया, रोहतास में जन्मे दुबे का पटना शहर से गहरा लगाव रहा। वे वर्षों से राजीव नगर थाना क्षेत्र के घुड़दौड़ रोड में रहते हुए बच्चों को लोक गीत का प्रशिक्षण देते थे। ब्रजकिशोर दुबे से खास संबंध रखने वाले शहर के लोक गायक मनोरंजन ओझा ने बताया कि वे हमारे लिए अभिभावक की तरह थे। वे कई मंचों में आकर शोभा बढ़ाते थे। दुबे ने भोजपुरी फिल्म बिहारी बाबू, माई समेत अन्य फिल्मों के लिए खूब गीत लिखे। शैलेंद्र की शैली में लिखने वाले वे आखिरी गीतकार थे। गीतकार ब्रजकिशोर दुबे अपनी परेशानियों को भुलाकर लोगों को अपनी बातों से खूब हंसाते थे। महेंद्र मिसिर की रचना अंगुरी में डसले बिया नगिनिया वे हमेशा गुनगुनाते रहते थे।

वर्षों तक अकादमी की करते रहे सेवा

वहीं, वरिष्ठ लोक गायिका नीतू कुमारी नूतन ने बताया कि वे काफी सहज और मिलनसार थे। वे एक अभिभावक की तरह हमेशा दिशा-निर्देश देते थे। उन्होंने मेरे लिए तोहरी दुअरिया मैया अइनी भीखइनिया हो, बाबा हरिहर नाथ के महिमा अपार ये सुन हे सखिया, बेरी-बेरी पइयां परीं करी हथजोरिया ये पियउ, काहे ले आइल डोलिया कहार बलमू, अबही बारी उमिरिया हमार बलमू जैसे कई गीत गाए। वे कई वर्षों तक भोजपुरी भाषा अकादमी की सेवा करते रहे।

आकाशवाणी से रहा गहरा जुड़ाव

ब्रजकिशोर दुबे को संगीत नाटक अकादमी की ओर से 2017 में पुरस्कार मिलने पर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने बधाई दी थी। वहीं, बिहार सरकार की ओर से 2013 में वरिष्ठ लोक गायक का भी उन्हें पुरस्कार मिला था। पटना आकाशवाणी के वरिष्ठ लोक गायक शिवचरण प्रसाद ने बताया कि ब्रजकिशोर दुबे 1977 के आसपास आकशवाणी से जुड़े थे। वे आकाशवाणी के वरिष्ठ कलाकार थे। आकाशवाणी से 40 वर्षों से जुड़ाव रहा। वे चौपाल कार्यक्रम में बुझावन भाई से लोकप्रिय रहे। वे काफी प्रसन्न रहने वाले इंसान थे। उनका इस तरह दुनिया से जाना कलाकारों के लिए अपार क्षति है।