द्दन्ङ्घन्/क्कन्ञ्जहृन्: तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा शुक्रवार को कालचक्र मैदान में प्रवचन सत्र की शुरुआत की। दलाई लामा ने प्रवचन के पहले दिन देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म को मानने वाले भी क्लेश और अविद्या उत्पन्न करते हैं। उसका परित्याग करना चाहिए। धर्म के नाम पर विभेद अनुचित है। सभी जीवों को सुख मिले। ऐसा हम सभी का प्रयास होना चाहिए। क्रोध, घमंड और प्रतिस्पर्धा के कारण आपके करीबी भी विरक्तहो जाते हैं। जानवरों के प्रति करूणा भाव रखेंगे तो वो भी आपके प्रति प्रेम भाव रखेगा। इसके लिए जरूरी है कि आप अंदर प्रेम, करूणा और मैत्री भाव रखें।

चार आर्य सत्य को बताया

दलाई लामा ने चार आर्य सत्य बताते हुए कहा कि इन्द्रिय सुख से परम सुख संभव नहीं है। परम सुख के लिए चित को नियंत्रित करना पड़ता है। चित संयम का अभ्यास करें। उन्होंने कहा कि दुख का कारण तृष्णा, लोभ और द्वेष है। कुशल और अकुशल कर्म को समझना होगा। आर्य सत्य से ज्ञान मिलता है। इसे समझे और आत्मसात करें। उन्होंने दूसरे दुख की व्याख्या करते हुए कहा कि तृष्णा दुख का कारण है। यह बार-बार जन्म लेने को विषयों को राग से जोड़ती है। तृष्णा तीन हैं- काम तृष्णा, भव तृष्णा और विभव तृष्णा।

धर्म के नाम पर विभेद अनुचित

धर्मगुरु ने कहा कि कुछ लोग यहां प्रवचन सुन रहे हैं और विश्व में कुछ लोग हत्या करने में जुटे हैं। सभी मनुष्य ही है। लेकिन कर्म अलग-अलग कर रहे हैं। केवल प्रार्थना से लाभ नहीं होता। लोगों के हित में काम करना होगा। क्योंकि कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। दलाई लामा ने कहा कि आधुनिक शिक्षा आज के समय में कारगर है या नहीं। इस पर चिंतन की आवश्यकता है। लेकिन हमारे हिसाब से आधुनिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है।