नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की हुई आराधना, कोरोना सेफ्टी के साथ माता की पूजा में जुटे श्रद्धालु

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कोरोना महामारी के कारण दुर्गा पूजा के दौरान सार्वजनिक पूजा-पंडाल पर मनाही है। हालांकि कई मुख्य मंदिरों में कोरोना सेफ्टी रूल्स को फॉलो करते हुए पूजा-पाठ में माता के भक्त लीन हैं। अधिकांश भक्त अपने घरों में ही यथासंभव विधि-विधान से माता की आराधना में लीन हैं। भक्त अपने प्रार्थना में माता से परिवार एवं देश को इस वैश्विक महामारी से मुक्ति का वरदान मांग रहे हैं।

सोमवार को शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना हुई। आचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि ये देवी अपने भक्तों पर प्रसन्न होने पर उनको आसुरी शक्तियों से रक्षा सौभाग्य, शांति, वैभव, स्वभाव में विनम्रता, मुख, नेत्र और संपूर्ण काया में कांति-गुण में वृद्धि,वीरता और निर्भयता, सौम्यता का विकास होता है। भगवती अपने दोनों हाथो से साधकों को चिरायु, सुख-संपदा और रोगों से मुक्त होने का वरदान भी देती हैं।

आज देवी कुष्मांडा की होगी पूजा

शारदीय नवरात्र के चतुर्थ दिवस में आज मंगलवार को माता के चौथे स्वरूप कूष्माण्डा देवी का पूजा होगी। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। मान्यता है कि माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधि-व्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है।

कूष्मांडा देवी का दिव्य स्वरूप

पंडित राकेश झा ने मार्कण्डेय पुराण के हवाले से बताया कि जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब माता कूष्माण्डा ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा कहा गया है। इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों एवं निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा जाता है। रवियोग एवं सिद्धयोग में आज देवी कूष्मांडा की पूजा होगी ।

सूर्यलोक में निवास करने वाली एक मात्र देवी है कूष्माण्डा

ज्योतिषी झा के मुताबिक इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति केवल मां कूष्मांडा में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।

कूष्माण्डा माता का मंत्र:

सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुत मेव च। दधाना हस्त पद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।