- लखनऊ में आज भी हैं कई साइकिल के दीवानें

LUCKNOW: वार्म अप का काम करती है साइकिल। प्रैक्टिस से पहले वार्मअप करना जरूरी होता है। इसलिए हम अपनी प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम तक साइकिल से आना ही पसंद करते हैं। बाबू स्टेडियम आने वाले तमाम खिलाडि़यों का यही मानना है। ग‌र्ल्स हो या ब्वायज तमाम खिलाड़ी बताते हैं कि साइकिलिंग हमारी प्रैक्टिस का हिस्सा बन चुकी है।

बाबू स्टेडियम आने वाले तमाम खिलाडि़यों ने बताया कि अब तो साइकिलिंग के बिना प्रैक्टिस अधूरी लगती है। हैंडबाल में प्रैक्टिस करने वाली श्रेया त्रिवेणी नगर से आती हैं। उन्होंने बताया कि स्कूटी से जब भी घर से निकलती हूं तो घर से दस बार फोन आता है, लेकिन साइकिल से निकलने पर ज्यादा इंक्वायरी नहीं होती। सभी ये मानते हैं कि स्कूटी से ज्यादा सुरक्षित साइकिल है। फिर इसके अलावा यहां आकर वार्म अप करना पड़ता है। साइकिल चलाने से आधा वार्म अप तो पहले ही हो जाता है। स्कूटी के चक्कर में कई बार जाम में फंस जाती है।

आलमबाग से हॉकी सीखने के लिए आने वाले विवेक यादव बताते हैं कि बाइक से यहां तक आने में ज्यादा झंझट है। फिर साइकिल चलाने में टेंशन नहीं रहती क्योंकि दुर्घटना के चांसेज कम होते हैं जबकि बाइक से अधिक। इसके अलावा बाइक को खड़ा करने के लिए जगह तलाशिये जबकि साइकिल कहीं भी लेकर चले जाइये। ऐसे में साइकिल हमारे लिए बेहतर साबित हो रही है।

राजाजीपुरम से बाबू स्टेडियम आने वाले विनोद सिंह ने बताया कि मैं यहां पर बॉक्सिंग की प्रैक्टिस के लिए आता हूं। लेकिन यहां आकर प्रैक्टिस से पहले वार्म अप करना पड़ता है। ऐसे में बाइक से आने वालों का उसमें ज्यादा समय देना पड़ता है जबकि साइकिल से आने के कारण मुझे वार्म अप में टाइम नहीं देना होता। आते ही प्रैक्टिस शुरू हो जाती है। बाबू स्टेडियम के तमाम कोचेस की माने तो साइकिल से आने का फायदा खिलाडि़यों को ही मिलता है।

फिटेनस के लिए साइकिलिंग से बेहतर कुछ नहीं है। सिर्फ खिलाडि़यों के लिए ही नहीं साइकिलिंग हर एज गु्रप के लिए बेहतर एक्ससाइज है। इसमें कोई खर्चा नहीं है।

रोहित त्रिवेदी

हैंडबाल प्लेयर