- ओबीएचएस एंप्लाइज को बायो टॉयलेट साफ करने के प्रैक्टिकल नुस्खे बता रहा है रेलवे

- लाइव ट्रेनिंग के जरिए सिखाया जा रहा है कम स्टॉपेज वाली ट्रेंस में भी सफाई करने का फंडा

GORAKHPUR: टॉयलेट की सफाई रेलवे के लिए हमेशा से बड़ा चैलेंज रहा है। आने वाली कंप्लेन में सबसे ज्यादा तादाद साफ-सफाई से जुड़ी ही होती है। ट्रेंस का स्टॉपेज कम होता है, लेकिन इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी ज्यादा, इसकी वजह से कई बार टॉयलेट बेहतर तरीके से साफ नहीं हो पाते और पैसेंजर्स को प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है। इस प्रॉब्लम का सॉल्युशन निकालने के लिए अब रेलवे ने एक नई पहल की है। इसके तहत अब ऑन बोर्ड हाउस कीपिंग स्टाफ की स्पेशल ट्रेनिंग कराई जा रही है, जिसके जरिए कम समय में कैसे वह बेहतर सफाई कर सकते हैं, इसके बारे में जानकारी दी जा रही है। इतना ही नहीं, इसके लिए एनई रेलवे ने बाकायदा टॉयलेट का मॉडल तैयार किया है, जिसके जरिए प्रैक्टिल ट्रेनिंग दी जा रही है और इस दौरान होने वाली गलतियों और कमियों में तत्काल सुधार किया जा रहा है।

बायो टॉयलेट साफ करने का फंडा

एनई रेलवे की खास निगाह इन दिनों बायो टॉयलेट साफ कराने को लेकर है। ऐसा इसलिए कि रेलवे ने अब ज्यादातर ट्रेंस में बायो टॉयेलट इंस्टॉल कर दिया है। इसमें सबसे बड़ा चैलेंज जो सामने आ रहा है, वह है इसकी बदबू। एसी क्लास में तो किसी तरह दरवाजा बंद होने की वजह मैनेज हो जा रहा है, लेकिन स्लीपर क्लास के मुसाफिरों की मुश्किलें कम नहीं हो पा रही है। इसको ध्यान में रखते हुए एनई रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन ने स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है। इसमें ओबीएचएस स्टाफ को यह बताया जा रहा है कि वह बायो टॉयलेट की किस तरह से सफाई करें कि उसकी बदबू खत्म हो जाएगा। ह्यूमन वेस्ट तो डेस्टिनेशन के बाद ही क्लीयर होगा, लेकिन इस बीच सफाई के दौरान दूसरे क्या ऑप्शन अप्लाई किए जाएं, जिससे पैसेंजर्स को बदबू और गंदगी से निजात मिल जाएगी। इसके लिए बाकायदा ट्रेनिंग कराई जानी शुरू भी हो चुकी है।

वॉश बेसिन और पूरे टॉयलेट की भी सफाई

रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन का सारा फोकस सिर्फ बदबू नहीं, बल्कि पूरा टॉयलेट किस तरह से साफ रहे और नेक्स्ट स्टेशन पर पहुंचने तक पैसेंजर्स को कोई मुसीबत न हो, इसका ध्यान भी रखा जा रहा है। यही वजह है कि ट्रेनिंग के दौरान सिर्फ टॉयलेट सीट नहीं, बल्कि वॉश बेसिन और टॉयलेट फ्लोर की सफाई के तरीके भी शेयर किए जा रहे हैं, जिससे कि पैसेंजर्स को बेहतर सहूलियत मिल सके। वहीं मिरर और टॉयलेट की दीवारों पर गंदगी न हो, इसपर भी ध्यान रखने के लिए ओबीएचएस स्टाफ को सलाह दी गई है।

ट्रेंस में लग चुके हैं 9311 बायो टॉयलेट

नए साल में अब पटरियों पर टॉयलेट की गंदगी नहीं गिरेगी। स्टेशन भी साफ-सुथरे नजर आएंगे। एनई रेलवे ने 2920 ट्रेडिशनल कोचेज में 9311 बायोटॉयलेट लगा दिया है। हाइब्रिड कोचेज में भी बायोटॉयलेट लगाने का काम आखिरी फेज में पहुंच चुका है और दिसंबर में यह भी पूरा हो जाएगा। गोरखपुर स्थित यांत्रिक कारखाना में एनई रेलवे सहित दूसरे जोन के 627 कोचेज में भी 1989 बायोटॉयलेट लगाए गए हैं। इससे ट्रैक पर गंदगी नहीं गिरेगी और वह साफ-सुथरे नजर आएंगे। छपरा-थावे, टनकपुर-पीलीभीत और भोजीपुरा-पीलीभीत रेल खंड पर रेलवे ने ग्रीन कॉरिडोर बनाया है। इन मार्गो पर बायोटॉयलेट कोच वाली ट्रेनें ही चल रही हैं। इससे ट्रैक गंदा नहीं हो रहा है।

कहां कितने कोच में इंस्टॉलेशन

नार्थ सेंट्रल रेलवे - 210 कोचेज में 574 बायोटॉयलेट

नार्दन रेलवे - नौ कोचेज में 27 बायोटॉयलेट

ईस्ट सेंट्रल रेलवे - 399 कोच में 1352 बायोटॉयलेट

साउथ ईस्ट रेलवे - एक कोच में चार बायोटॉयलेट

साउदर्न रेलवे - एक कोच में चार बायोटॉयलेट

साउथ सेंट्रल रेलवे - दो कोच में आठ बायोटॉयलेट

सेंट्रल रेलवे - दो कोच में आठ बायोटॉयलेट

ईस्टर्न रेलवे - तीन कोच में 12 बायोटॉयलेट

रेलवे का सफाई पर खास ध्यान हैं। ट्रैक भी साफ सुथरे रहें, इसके लिए बायो टॉयलेट लगाए गए हैं। वहीं इन टॉयलेट से पैसेंजर्स को परेशानी न हो, इसके लिए ओबीएचएस स्टाफ को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जा रही है, जिससे कि रास्ते में उन्हें परेशानी न फेस करनी पड़े।

- पंकज कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनई रेलवे