- इंसिनेरेटर बंद, दावा खलीलाबाद की एजेंसी भेजा जा रहा संक्रमित वेस्ट

- नहीं है वेस्ट कलेक्शन शेड, इंसिनेरेटर परिसर में डंप किया जा रहा वेस्ट

GORAKHPUR: एनजीटी की सख्ती के बाद मेडिकल कॉलेज प्रशासन निस्तारण के बजाए परिसर में ही बायोवेस्ट डंप करने लगा है. जिससे मरीजों सहित बीआरडी कर्मचारियों की सेहत पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में रोज बड़े पैमाने पर बायोवेस्ट निकलता है जिसके निस्तारण के जिम्मेदार दावे तो खूब करते हैं लेकिन यहां नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. मेडिकल कॉलेज परिसर स्थित इंसिनेरेटर में खामियां मिलने पर एनजीटी ने इसे बंद करा दिया था. जिसके बाद यहां वेस्ट कलेक्शन शेड न होने की वजह से इंसिनेरेटर परिसर में ही बायो मेडिकल वेस्ट का डंप कर दिया जा रहा है. हद तो ये कि मेडिकल कचरे को खुले में ही जला दिया जा रहा है जिससे संक्रमण फैलने का खतरा मंडराने लगा है. वहीं, मेडिकल कॉलेज प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हैं कि पूरे मामले से अंजान बने हुए हैं.

लगा था पांच करोड़ का जुर्माना

बीआरडी मेडिकल कॉलेज 1050 बेड वाला अस्पताल है. यहां से भारी मात्रा में बायोवेस्ट निकलता है. जिसके निस्तारण के लिए लाखों रुपए खर्च कर मेडिकल कॉलेज परिसर में इंसिनेरेटर स्थापित किया गया. इसकी जिम्मेदारी लखनऊ की कार्यदायी संस्था लैप्को स्टूमेंट को दी गई थी. लेकिन एक साल पूर्व कंपनी का टेंडर समाप्त हो गया तो उधर नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने यहां के इंसिनेरेटर और बायोवेस्ट निस्तारण में खामियां मिलने पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना ठोंक दिया. हालांकि मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने आनन-फानन में बायोवेस्ट निस्तारण की जिम्मेदारी एक प्राइवेट एजेंसी को दी. लेकिन सूत्रों की मानें तो प्राइवेट एजेंसी द्वारा मुकम्मल तरीके से बायोवेस्ट का निस्तारण नहीं किया जा रहा है. मेडिकल कॉलेज परिसर में ही खुले में बायोवेस्ट रखा जा रहा है. इतना ही नहीं ज्यादा मात्रा में वेस्ट को इंसिनेरेटर परिसर के पास एक कमरे में वेस्ट का डंप कर दिया जा रहा है. इससे मेडिकल कॉलेज प्रशासन अंजान है. एनजीटी की कार्रवाई का असर भी नहीं दिख रहा.

डेली आते दो हजार मरीज

मेडिकल कॉलेज में रोज करीब दो हजार मरीज भर्ती होते हैं. यहां प्रतिदिन विभिन्न विभागों में 40 से 50 ऑपरेशन होते हैं. इनसे बायोवेस्ट बड़ी मात्रा में निकलता है. यहां की स्थिति परिसर में खाली स्थान व दीवारों के पीछे पड़े इस वेस्टेज से साफ जाहिर होती है.

एक कंपनी के पास जिम्मेदारी

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए उचित इंतजाम करना होता है. इंसिनेरेटर में ही इसे नष्ट करना होता है. बायो वेस्ट उठाने के लिए एक कंपनी को कार्य सौंपा गया है. कंपनी द्वारा कूड़ा उठाने के साथ ही अस्पताल को वेस्टेज बैग, प्रोटेक्शन यूनिट, मास्क, केमिकल आदि की सप्लाई करने की भी जिम्मेदारी है. मेडिकल कॉलेज में बायोवेस्ट उठाने का काम एक प्राइवेट एजेंसी कर रही है. एमपीसीसी कंपनी को बायोवेस्ट रोजाना अलग-अलग रंग वाले डिब्बों में भरकर निस्तारण करने को ले जाना होता है लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है.

बायोवेस्ट निस्तारण के नियम

- अस्पताल से निकलने वाला वेस्ट तीन हिस्सों में बांटना होता है.

- ब्लड, मानव अंग जैसी चीजों को रेड डिब्बे में डालना होता है.

- कॉटन, सिरिंज, दवाइयों को पीले डिब्बे में डाला जाता है.

- मरीजों के खाने की बची चीजों को ग्रीन डिब्बे में डाला जाता है.

- इन डिब्बों में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद इसे पैक करके अलग रख दिया जाता है, जहां इंनफेक्शन के चांस न हों.

तीन चरणों में होता है डिस्पोजल

बायोवेस्ट उठाने वाली कंपनी ने अस्पताल में तीन रंग वाले बिन (डब्बे) रखे हैं. लाल रंग वाले बिन में मेडिकल के प्लास्टिक वेस्ट रखे जाते हैं. पीले रंग के बिन में इंसिनेरेटर (जलाने वाले) वेस्ट को रखा जाता है. ब्लड बैग, मांस के हिस्से, सर्जरी के दौरान निकलने वाले वेस्ट को इनमें रखा जाता है. कांच आदि वेस्ट को नीले रंग के बिन में रखा जाता है. प्लास्टिक वेस्ट को ऑटो क्लेव कर छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर री-साइक्लिंग के लिए भेजा जाता है. पीले रंग वाले सर्जरी वेस्ट को इंसिनेरेटर (बगैर हवा के जलाना) किया जाता है.

नहीं है वेस्ट कलेक्शन शेड

मेडिकल कॉलेज से निकलने वाले बायोवेस्ट को खुले में ही फेंक दिया जा रहा है. अस्पताल प्रशासन के पास बायो वेस्ट रखने के लिए वेस्ट कलेक्शन शेड नहीं है. इसी का नतीजा है कि प्लास्टिक, सिरिंज और कांच को वेस्टेज बैग में भर इंसिनेरेटर परिसर में ही छोड़ दिया जा रहा है. सूत्रों की मानें तो पॉलीथिन उठाने वाले लोग भी इस वेस्ट को कबाडि़यों के पास बेच देते हैं.

वर्जन

एक प्राइवेट एजेंसी बायोवेस्ट निस्तारण का काम कर रही है. अभी वही बायोवेस्ट उठाती है. अगर बायोवेस्ट परिसर में ही डंप हो रहा है तो गलत है. इसकी जांच कराई जाएगी.

- डॉ. गिरिश चंद श्रीवास्तव, एसआईसी नेहरू चिकित्सालय

बायोवेस्ट परिसर में डंप किया जा रहा है या जलाया जा रहा है इसकी सूचना नहीं है. फिलहाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कार्रवाई की जा रही है.

टीएन सिंह, सहायक वैज्ञानिक अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड