नाटक मंडली में पर्दा उठाने से शुरू किया काम
बचपन से ही इनका रुझान फिल्मों की ओर था। अपने इस रुझान को शुरुआत देने का मौका इन्हें नहीं मिला, तो इन्होंने गंधर्व नाटक मंडली में पर्दा उठाने के साथ काम शुरू कर दिया। इतने छोटे स्तर से काम शुरू करने के बावजूद इनके मन से इनका रुझान खत्म नहीं हुआ। फिल्मों की दुनिया तक पहुंचने की ये शायद उनके लिए सबसे पहली सीढ़ी थी।

अभिनेता के तौर पर की एंट्री
काफी मेहनत के बाद इंडस्ट्री ने इनका स्वागत अभिनेता के तौर पर किया था। 1921 में आई मूक फिल्म 'सुरेख हरण' से हुई इसकी शुरुआत। इसके बाद इन्होंने साल 1929 में खुद प्रभात कंपनी फिल्म्स की स्थापना की। अपनी इस कंपनी के बैनर तले इन्होंने 'खूनी खंजर', 'रानी साहिबा' और 'उदयकाल' सरीखी फिल्में बनाईं।

ये थीं इनकी बड़ी हिट फिल्में
कई फिल्में बनाने के बाद 1942 में शांताराम ने 'प्रभात कंपनी' को अलविदा बोल दिया और फिर मुंबई में राजकमल फिल्म्स और स्टूडियो की स्थापना की। इसके बैनर तले इन्होंने 1943 में फिल्म 'शकुंतला' बनाई। फिल्म ने एक सिनेमा घर में लगातार 104 हफ्ते चलकर टिकट खिड़की पर सफलता के रिकॉर्ड तोड़ दिए। 1946 में आई इनकी फिल्म 'डा. कोटनीस की अमर कहानी' शांताराम निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्मों में गिनी जाती है। इसमें मुख्य भूमिका इन्होंने खुद निभाई। 1955 में आई फिल्म 'झनक झनक पायल बाजे' इनकी निर्देशित पहली रंगीन फिल्म थी। 1958 में आई फिल्म 'दो आंखे बारह हाथ' इनकी सबसे हिट फिल्म साबित हुई।

टूट गया मन फिल्मी दुनिया से
सत्तर के दशक में इन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया। 1986 में आई इनकी फिल्म 'झांझर' अंतिम फिल्म थी। फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से फ्लॉप हो गई। इससे शांताराम को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने इंडस्ट्री को हमेशा के लिए छोड़ दिया।

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