आई-एनालेसिस।

पीके संग कांग्रेस की जुगलबंदी से सबके कान खडे़

प्वाइंटर--

-बीजेपी तलाश रही है तोड़, वर्करों पर है भरोसा

-कांग्रेस संगठन और पीके के बीच तालमेल पर जोर

DEHRADUN: चुनावी संग्राम के लिए रणभूमि सजने लगी है। दलों की कोशिश नए-नए अस्त्र आजमाकर संग्राम फतह करने की है। पहली बार उत्तराखंड के चुनावी रोमांच में इवेंट का ऐसा तड़का लग रहा है, जिसने सभी के काम खडे़ कर दिए हैं। मशहूर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके के कदम उत्तराखंड में पड़ चुके हैं। बेचैनी का आलम हर तरफ है। उस कांग्रेस में भी, जिसने पीके को हायर किया है और उस बीजेपी में भी, जो कि मान कर बैठी है कि सत्ता की चाबी उसके हाथ में बस आने वाली है।

पहली बार इस तरह का होगा प्रयोग

विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल प्राइवेट कंपनियों को पब्लिसिटी कैंपेन के लिए हायर करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव ख्0क्ब् में एक कंपनी को बीजेपी ने इस काम के लिए हायर किया था और उसे लाभ भी मिला था, लेकिन पूरे चुनाव के संबंध में पीके को जिस तरह से काम दिए जाने की बातें सामने आई हैं, वह उत्तराखंड की चुनावी सियासत में इवेंट कंपनी की दखलंदाजी का अब तक का सबसे बड़ा उदाहरण बनने जा रहा है।

कांग्रेस के सामने तालमेल की चुनौती

कांग्रेस संगठन ने पीके एंड पार्टी के साथ हाथ तो मिला लिए हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तालमेल बनाकर चलना होगा। पीके के सक्रिय होने से कहीं न कहीं पार्टी संगठन के पीछे छूट जाने का भी कुछ लोगों को खतरा महसूस हो रहा है। पीके और पार्टी संगठन के बीच समन्वय बनाने के लिए जोत सिंह बिष्ट को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

बीजेपी करेगी अपने नेताओं पर भरोसा

बीजेपी के भीतर पीके को लेकर चर्चा हो चुकी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, पार्टी अपने नेताओं पर भरोसा करके ही आगे बढे़गी। हालांकि बीजेपी के कुछ लोगों का मानना है कि इवेंट कंपनी को पार्टी को भी हायर करना चाहिए, जबकि ज्यादातर का ये ही मानना है कि पार्टी संगठन अपनी रणनीति के हिसाब से ही जीत की राह पर आगे बढ़ सकता है।

- प्रशांत किशोर के साथ मेरी मीटिंग हुई है। वह हमारे लिए उत्पे्ररक का काम करेंगे। हमने अपने नेताओं को भी तालमेल बैठाने के लिए नियुक्त कर दिया है।

-किशोर उपाध्याय, पीसीसी चीफ।

-कांग्रेस की ढोल की पोल खुल चुकी है। पीके ने बीजेपी के साथ भी काम किया था, लेकिन हमारी जीत के दूसरे कई कारण भी थे।

-विनय गोयल, प्रदेश प्रवक्ता, बीजेपी।