जदयू गठबंधन की निकली हवा

बिहार में राजग-जदयू के प्रभाव की चर्चा बिहार विधानसभा उपचुनाव के समय से हो रही है। लेकिन अब विधान परिषद के मतदान के बाद आए नतीजों ने इस चर्चा को और बुलंद आवाज दे दी है। लालू-नीतीश के महागठबंधन का सिवान के लोगों को कई कारणों से रास नहीं आने के चर्चे आम रहे हैं। विधान परिषद चुनाव के नतीजों ने इन चर्चो को मजबूती ही दी है। महागठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद सिवान में विधान परिषद का यह दूसरा चुनाव था। यह कहने में गुरेज नहीं कि इन दोनों चुनावों ने महागठबंधन की उम्मीदों को जांचने का प्लेटफार्म दिया था लेकिन परिणामों ने इसकी बुनियाद ही हिला दी। महागठबंधन को मजबूत करने की कवायद में कोई कमी नहीं रही। लेकिन इसके बावजूद जनसंपर्क और प्रचार को लेकर महागठबंधन के वरीय नेताओं की निश्चिंतता इस बार अलग ही कहानी कहती रही। जदयू ने नहीं दिखाई ताकत

भाजपा की ओर से सिवान में सुशील कुमार मोदी तो आए लेकिन राजद या जदयू का कोई वरीय नेता यहां नहीं आया। एक बात और गौर करने लायक रही कि चुनाव की घोषणा से पहले या बाद में जो भी आया जेलगेट पर जाकर पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन से जरूर मिला। जदयू से टिकट झटककर राजद जब मैदान में उतरा था तो पार्टी का तर्क था कि भाजपा को टक्कर देना जदयू के बूते में नहीं है। इसी कारण जदयू ने यहां की उम्मीदवारी से दावा छोड़ा इसके बावजूद विनोद के नाम पर मुहर नहीं लग पाई। बताते है कि जदयू राजद के नेता परिषद चुनाव से ज्यादा विस चुनाव को लेकर फिक्रमंद रहे, ऐन प्रचार के वक्त जदयू का दस्तक कार्यक्रम चलता रहा और राजद प्रत्याशी अपने सिपहसालारों के भरोसे अलग-थलग पड़ गए।

नतीजों में दिखी महागठबंधन की बड़ी हार

सूत्र बता रहे हैं कि इस चुनाव परिणाम ने महागठबंधन के भविष्य को लेकर कई आशंकाओं को जन्म दे दिया है। साथ ही यह भी तय हो गया है कि बड़े नेताओं के एक हो जाने के बावजूद जमीनी स्तर के नेता व कार्यकर्ताओं का दिल शायद ही मिले। पिछले उपचुनाव के बाद जदयू के लोग राजद से समर्थन न मिलने का राग अलापते रहे। संभव है आगे राजद की ओर से यह आरोप जदयू पर लगे। जो भी हो, दिलों की खटास मिटने में भी अभी वक्त लगेगा। इस लिहाज से देखें तो यह राजग की जीत कम, महागठबंधन की हार ज्यादा है। यह अप्रत्याशित नहीं है। इसकी आशंका लोगों को पहले से थी। चर्चा रही कि मो.चांद के मैदान में आ जाने से मो.शहाबुद्दीन की अपील पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाई। जदयू के बड़े नेताओं की ओर से इस दूरी को ससमय पाटने की कोशिश की गई होती तो पार्टी के जिला सचिव मो.चांद शायद ही निर्दलीय मैदान में कूदते। पिछली बार अजय सिंह के समर्थन को लेकर राजद की उदासीनता के बरअक्स जदयू की ओर से इस बार चांद खां की उम्मीदवारी ने राजद को जो चुनौती दी वह निर्णायक रही। बहुतों के लिए सदमे से थे नतीजे

जदयू को शायद इसी में पुराना बदला चुकाने का मौका भी हाथ लग गया। दलीय प्रतिबद्धता पर व्यक्तिगत निष्ठा के भारी पड़ने से महागठबंधन का आधार ही खिसक गया। शायद यही इसकी नियति भी थी। जानकारों का कहना है कि इस परिणाम ने शहाबुद्दीन के जिले में राजद का 'सर्वमान्य' नेता होने का मिथक भी किसी हद तक तोड़ दिया है। शुक्रवार को आए परिणाम को भाजपा की जीत कम, शहाबुद्दीन की हार के रूप में परिभाषित करने वालों की तादाद ज्यादा होने के निहितार्थ भी कम नहीं। बहुतों के लिए यह सदमे जैसा है। राजग के लोग मानें न मानें, यह सच है कि जदयू-राजद के बीच की दरार ने भाजपा की जीत की राह आसान की। महागठबंधन के नेताओं ने परिणाम के बाद जागरण से बातचीत में माना कि धर्मनिरपेक्ष मतों का बंटवारा भाजपा के पक्ष में गया। जहां तक सिवान की बात है, इस बंटवारे की काट खोज पाना महागठबंधन के लिए उतना आसान भी न हो। आगाज ऐसा है, अंजाम खुदा जाने..।

Hindi News from India News Desk

National News inextlive from India News Desk