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LUCKNOW : यूपी में रेल हादसों का काला इतिहास है। चौंकाने वाली बात है कि बीते तीन सालों में हुए आधा दर्जन रेल हादसों में ही सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हर हादसे के बाद गहन जांच और आगे ऐसे हादसों पर रोक लगाने के दावे जरूर किये गए लेकिन, यह दावे हवा-हवाई ही साबित हुए। नतीजतन, हादसों और उनमें होने वाली मौतों के आंकड़े में इजाफा जारी है। देश में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना के बीच यह रेल हादसे पूरे सिस्टम को मुंह चिढ़ाते मालूम पड़ते हैं। बावजूद इसके रेल विभाग इस पर गंभीरता से सोचने को तैयार नहीं है। आइये हम आपको बताते हैं प्रदेश में हुए उन प्रमुख रेल हादसों के बारे में जिन्होंने सैकड़ों घरों के चिराग बुझा दिये-

वास्को डि गामा एक्सप्रेस हादसा

24 नवंबर 2017 में चित्रकूट के करीब मानिकपुर में ट्रेन वास्को डि गामा-पटना एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई। इस हादसे में ट्रेन के 13 डिब्बे पटरी से उतर गए थे और चार यात्रियों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था जबकि, तीन दर्जन से ज्यादा यात्री गंभीर रूप से घायल हो गये।

जांच का नतीजा : शुरुआती जांच के बाद बताया गया कि सर्दी की वजह से पटरियां चटक गई, जिससे ट्रैक में दरार आ गई और ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर गए। हालांकि, पटरियों के चटकने पर किसी रेलकर्मी की नजर इस पर क्यों नहीं पड़ी, इस पर अधिकारियों ने चुप्पी साध ली।

शक्तिपुंज एक्सप्रेस हादसा

7 सितंबर 2017 को सोनभद्र में शक्तिपुंज एक्सप्रेस के सात डिब्बे पटरी से उतर गए। ट्रेन की स्पीड बेहद कम होने की वजह से इस हादसे में किसी की जान तो नहीं गई लेकिन, 15 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

जांच का नतीजा :  जांच में पता चला कि पटरी टूटी होने की वजह से यह हादसा हुआ लेकिन, यह पटरी टूटी कैसे, इस पर सुरक्षा एजेंसियां व रेलवे विभाग किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका।

कलिंग उत्कल एक्सप्रेस हादसा

20 अगस्त 2017 को पुरी से हरिद्वार जा रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन मुजफ्फरनगर के खतौली रेलवे स्टेशन के पास पटरी से उतर गई। हादसे में 14 डिब्बे पटरी से उतरकर अगल-बगल के घरों व स्कूल में जा घुसे। इस हादसे में 23 लोगों की मौत हो गई जबकि, 75 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।

जांच का नतीजा :  हादसे की जांच में पता चला कि घटनास्थल पर मरम्मत का काम चल रहा था। जिसके चलते खतौली स्टेशन पर कॉशन देकर ट्रेनों को धीमी गति से निकाला जा रहा था। लेकिन, इस ट्रेन को कॉशन नहीं दिया गया, जिसके चलते ट्रेन रफ्तार से वहां आ पहुंची और पटरी से उतर गई।

महाकौशल एक्सप्रेस हादसा

30 मार्च 2017 को दिल्ली से जबलपुर जा रही महाकौशल एक्सप्रेस महोबा में हादसे का शिकार हो गई। हादसे में 8 डिब्बे पटरी से उतर गए। खुशकिस्मती से हादसे के वक्त ट्रेन की रफ्तार बेहद धीमी थी। नतीजतन, किसी यात्री की जान तो नहीं गई लेकिन, 50 से ज्यादा यात्री घायल हो गए।  जिन्हें महोबा जिला अस्पताल व कानपुर के हैलट अस्पताल में एडमिट कराया गया।

जांच का नतीजा : शुरुआती जांच में पटरी की वेल्डिंग में दरार दिखी। आशंका जताई गई कि यह नक्सली या आतंकी साजिश हो सकती है। जिसके बाद एटीएस ने जांच की लेकिन, किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।

पटना-इंदौर एक्सप्रेस हादसा

20 नवंबर 2016 को कानपुर के पास रूरा में पटना-इंदौर एक्सप्रेस ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए। हादसा इतना भयावह था कि इसमें 150 लोगों की मौत हो गई। जबकि, 200 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। वर्ष 1995 फिरोजाबाद में कालिंदी एक्सप्रेस हादसे के बाद यूपी में यह दूसरा सबसे बड़ा हादसा माना जाता है। उस हादसे में 400 यात्रियों की मौत हो गई थी।

जांच का नतीजा :  गहन जांच के बाद पता चला कि पटरियों के चटकने से यह हादसा हुआ। हालांकि, पटरी चटकने की वजह क्या थी, इस पर रेलवे व एटीएस की जांच टीमें किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।

जनता एक्सप्रेस हादसा

20 मार्च 2015 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस ट्रेन रायबरेली के बछरावां स्टेशन की लूप लाइन पर हादसे का शिकार हो गई। हादसा इतना भयावह था कि ट्रेन के चार डिब्बे पटरी से उतरकर एक-दूसरे के ऊपर चढ़ गए। इस हादसे में 32 यात्रियों की मौत हो गई जबकि, 58 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

जांच का नतीजा :  जांच में पता चला कि ड्राइवर ने स्टेशन मास्टर को पहले ही सूचना दी थी कि ट्रेन के ब्रेक फेल हो गए हैं। नतीजतन, स्टेशन मास्टर ने ट्रेन को लूप लाइन में डायवर्ट कर दिया गया। जहां यह हादसा हो गया। ट्रेन का ब्रेक फेल आखिर किन हालात में हुआ, इसका पता आज तक नहीं लग सका।

नहीं लिया सबक

यूपी में हुए इन हादसों व इसके अलावा देशभर में हुए अलग-अलग रेल हादसों के बाद भी भारतीय रेल ने इन्हें रोकने के लिये अब तक कोई कदम नहीं उठाए। विभाग को अपने मुसाफिरों की सुरक्षा की कितनी चिंता है, इसका पता इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1998 में बनी जस्टिस एचआर खन्ना कमेटी ने सेफ्टी को लेकर तमाम सिफारिशें की थीं। यह सिफारिशें रेलवे ने मान तो लीं लेकिन, यह अब तक सिर्फ कागजों पर ही सिमटी हैं और इन्हें जमीन पर उतरने के लिये लंबा इंतजार करना होगा। दरअसल, कमेटी ने तमाम सिफारिशों के साथ ही रेल कोच के बीच होने वाले घर्षण के सुधार के लिये अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों से तालमेल कर जरूरी उपाय किये जाने की सलाह दी थी। मोबाइल ट्रेन, रेडियो कम्युनिकेशन को प्राथमिकता पर रखने की सलाह दी गई थी। हालांकि, सबसे बड़ी जरूरत सिग्नल प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने की है।

इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड करना बेहद जरूरी

अब तक देश में हुए तमाम रेल हादसों में से 80 प्रतिशत मामलों में मानवीय भूल हादसे की वजह निकलकर सामने आई। लेकिन, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क होने के बावजूद भारतीय रेल ब्रिटिश काल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर संचालित की जा रही है। जिस हिसाब से रेलवे ट्रैफिक में इजाफा हो रहा है, उस हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है। एक ओर तो सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, वहीं दूसरी ओर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव न होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को हादसों से बचाने में भारतीय रेल नाकाम साबित हो रही है। सिग्नल सिस्टम में चूक और एंटी कॉलीजन डिवाइसेज की कमी से भी अक्सर हादसे होते हैं।

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