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केस-1

30 जनवरी 2015 को शहर के पेट्रोल पंप मालिक की डेड बॉडी उसकी कार में मिली थी। कनपटी से गोली लगने पर हुई मौत के मामले में परिजनों ने हत्या की आशंका जताई। हाईप्रोफाइल मामला होने से पुलिस ने काफी तेजी दिखाई। काफी दौड़भाग के बाद जाकर बैलिस्टिक रिपोर्ट मिल सकी और तय हुआ कि पेट्रोल पंप ऑनर ने खुद को गोली मार ली थी। यदि यह रिपोर्ट न आती तो मौत की वजह कभी सामने नहीं आ पाती।

 

केस-2

29 नवंबर 2015 को पिपराइच के जंगल छत्रधारी में अवैध शराब पीने से 6 लोगों की मौत हो गई थी। काफी हंगामा मचा। शराब में जहर की मात्रा जांचने के लिए सैंपल लखनऊ भेजा गया था। दो साल हो गए अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं आ सकी। इस कारण न तो मौत की सही वजह अब तक सामने आ सकी है और न ही जांच ही पूरी हो पा रही है।

 

GORAKHPUR: शाहपुर एरिया में पांचवीं के स्टूडेंट नवनीत के जहर खाकर सुसाइड करने की जांच बिसरा रिपोर्ट के अभाव में अटक गई है। लखनऊ के फॉरेंसिक लैब से रिपोर्ट आने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि छात्र ने कौन सा जहर खाया और यह उसे कहां से मिला। तभी पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ सकेगी। इस तरह एक, दो नहीं बल्कि 10 हजार मामले हैं, जिनमें पुलिस को जांच रिपोर्ट का इंतजार है। इस वजह से 2006 से अब तक 10 हजार मौतें संदिग्ध बनी हुई हैं, जिनकी वजह ढूंढने में पुलिस नाकाम है।

 

यहां नहीं होती जांच

संदिग्ध हाल में होने वाली मौत की वजह जानने के लिए पोस्टमार्टम के दौरान बिसरा प्रिजर्व कर लिया जाता है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर हड्डियों, लीवर, किडनी, पैंक्रियाज, गाल ब्लैडर सहित शरीर के अन्य अंगों को जार में सुरक्षित रख लेते हैं। फिर यहां जांच की सुविधा नहीं होने के कारण, उनको संबंधित थानों की मदद से लखनऊ, वाराणसी और आगरा सहित अन्य जगहों पर फोरेंसिक लेबोरेट्री में भेज दिया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में लंबा वक्त लगने से पुलिस की विवेचना अटकी रह जाती है। मेडिकल कॉलेज स्थित पोस्टमार्टम हाउस में करीब 10 हजार लोगों का बिसरा रखा गया है जिनकी जांच रिपोर्ट नहीं मिल सकी है।


हाई प्रोफाइल मामले में दिखती है तेजी

संदिग्ध मौत के अलावा गनशॉट, बर्न, रेप सहित कई मामलों में लैब से सैंपल की जांच कराई जाती है। कुछ गिने-चुने, हाईप्रोफाइल मामलों में पुलिस तेजी दिखाती है तो उसकी रिपोर्ट आ जाती है लेकिन अधिकतर मामले पेंडिंग ही रह जाते हैं। यही कारण है कि अब तक 10 हजार अटके पड़े हैं।

 

 

गोरखपुर में ही जांच के लिए अभी करना होगा इंतजार

इसी साल जिला अस्पताल के सामने पुरानी जेल की भूमि पर चार मंजिला भवन वाले लैब का निर्माण शुरू हुआ। यूपी गवर्नमेंट ने इसके लिए 28.6 करोड़ रुपए का बजट पास किया है। निर्माण की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को सौंपी गई है। वर्ष 2018 तक निर्माण पूरा करना है। करीब आधी रकम का भुगतान कार्यदायी संस्था को चुका है लेकिन डेढ़ माह पूर्व ही सारा पैसा खत्म हो गया और बजट के अभाव में काम रुका पड़ा है। वहीं शुरुआत से ही लैब का निर्माण कार्य एक माह पीछे चल रहा है। ऐसे में शायद ही लैब 2018 तक बन सके। यदि यह लैब बन जाए तो बिसरा परीक्षण, लाई डिटेक्टर, ब्लड सैंपल, मादक पदार्थो के सैंपल की कम समय में जांच पूरी हो सकेगी और केस जल्दी सॉल्व होंगे।

 

लैब बना तो इन जांच की होगी सुविधा

- सीरोलॉजी

- टॉक्सिोलाजी

- केमिस्ट्री

- डॉक्यूमेंट्स

- बॉयोलाजी

- बैलिस्टिक

- फिजिक्स

- क्राइम सीन मैनेजमेंट

- मेडिकोलीगल

- कंप्यूटर फारेसिंक

- फोटो सेक्शन से जुड़ी जांच