ब्रिटेन ने ट्यूजडे को  हिस्ट्री क्रिएट की है. इस कंट्री में तीन लोगों के डीएनए से आइवीएफ बेबी के जन्म को लीगल एक्सेप्टेंस देने के प्रस्ताव पर ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कामंस ने अपनी मुहर लगा दी. ब्रिटेन के मौजूदा आइवीएफ रिलेटेड लॉ में बदलाव के प्रस्ताव पर संसद के लोअर हाउस में वोटिंग हुई. 90 मिनट की जोरदार बहस के बाद हुई वोटिंग में प्रस्ताव के पक्ष में 382 सांसदों ने वोट डाला जबकि 128 ने इसका विरोध किया.

अगले साल तक तीन लोगों के डीएनए से जन्म ले सकता है पहला आइवीएफ बच्चा

इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के बाद ब्रिटेन दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया, जहां माता, पिता और एक अन्य महिला डोनर के डीएनए से आइवीएफ बच्चे को जन्म देने की अनुमति होगी. एम-डीएनए टेक्नीक से आइवीएफ बेबी पैदा करने के प्रस्ताव के संसद से पारित होने के बाद इस तरह के पहले बच्चे के जन्म की अगले साल तक संभावना व्यक्त की जा रही है. हालांकि इसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं.  इससे हर साल 150 जोड़ों को लाभ मिलने की उम्मीद है.

क्या है एम-डीएनए टेक्नीक

माइटोकांड्रियल डीएनए (एम- डीएनए) डोनर टेक्नीक के इस्तेमाल से एक बेबी, तीन पेरेंट के आइडिया को अमली जामा पहनाया जाना संभव हो सकेगा. एम-डीएनए मदर के थ्रू बच्चे में जाता है. इसके अंडर प्रोवीजन किया गया है कि सामान्य रूप से मदर फादर से ‘न्यूक्लियर’ डीएनए हासिल करने वाले इंब्रो में अन्य फीमेल डोनर से हैल्दी एम डीएनए का कुछ पार्ट भी दिया जाएगा.

पक्ष विपक्ष

इस टेक्नीक के समर्थकों का कहना है कि इससे सीरियस हैरिडेटिकल डिसीज की मदर से बेबी में ट्रांसफर पर रोक लगेगी. ये हैरिडिटिकल डिसीज बच्चे के शरीर के कई इंर्पोटेंट पार्टस को इफेक्ट करती हैं. वीक आई साइट से लेकर डायबिटीज जैसी अनेक बीमारियों के सिंपटम्पस इन्हीं के कारण दिखाई देते हैं.  माइटोकांड्रिया में डिफेक्ट होने से उत्पन्न होने वाली कई हैरिडेटिकल डिसीज को शुरुआत में ही खत्म कर दिया जाएगा.

साइंटिस्ट का दावा है कि तीन पेरेंट के डीएनए के इस्तेमाल के चलते हैरिडेटिकल चेंजेस हो सकते हैं और फ्यूचर जैनेरेशन के लिए अननोन डेंजर्स उत्पन्न हो सकते हैं. केवल लैबोरेटरीज और एनिमल्स में ही इससे रिलेटेड टेस्ट किए गए हैं. हृयूमन में इसके इफेक्टट का अभी तक कोई इवॉल्यूशन नहीं किया गया है. बेबी के विकास के दौरान अथवा बाद के ईयर्स में कई डिफेक्टस या डिसीज उत्पन्न हो सकती हैं. कैंसर के बढऩे का खतरा उत्पन्न हो सकता है. रिलीजियस बेस पर विरोध के पीछे कहा जा रहा है कि यह मॉरेलिटी की लिमिट्स क्रास करता है और जीन्स में छेड़छाड़ कर फ्यूचर में डिजाइनर बेबी के डेंजर की आशंका है. विरोध में मतदान करने वाले सांसद जैकब रीस मॉग का कहना है कि इस तकनीक को कानूनी मान्यता दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है.

माइटोकांड्रियल डीएनए यानी एम-डीएनए

ये एक पर्सन के कुल डीएनए में केवल 0.1 परसेंट होता है. यह मेटाबोलिज्म को इफेक्ट  करता है लेकिन व्यक्ति के फिजिकल सिंप्ट्पस मसलन चेहरे की बनावट, आंखों के रंग और पर्सनैलिटी को डिसाइड नहीं करता. इसका डिटरमिनेशन न्यूक्लियर डीएनए से किया जाता है. इसलिए इससे मानव क्लोन के उत्पन्न होने का रिस्क नहीं है.  माइटोकांड्रिया कोशिका में छड़ के आकार का स्ट्रक्चर होता है. इसको कोशिका का बिजली घर (पावर हाउस) कहा जाता है. इससे पैदा ऊर्जा से ही शरीर काम करता है. एम डीएनए में हार्मफुल म्यूटेशन के चलते माइटोकांड्रिया प्रापर तरीके से काम नहीं करता. नतीजतन रोग उत्पन्न होते हैं.

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