- मायावती और अखिलेश संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करके करेंगे ऐलान

- यूपी में विपक्षी गठबंधन की तस्वीर से आज उठेगा पर्दा

- पांच सीटें मांग रही आरएलडी के शामिल होने के संकेत नहीं

- 26 साल बाद सपा और बसपा साथ मिलकर लड़ेंगे चुनाव

ये हो सकती है तस्वीर

- दोनों दलों के बीच 37-37 सीटों के बंटवारे की चर्चा

- रायबरेली और अमेठी सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी जा सकती हैं

- वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद समेत बड़े शहरों में हो सकता है संयुक्त प्रत्याशी

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LUCKNOW: लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में विपक्ष के गठबंधन के तस्वीर कैसी होगी, शनिवार को इससे पर्दा उठ जाएगा। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहली बार संयुक्त रूप से प्रेस कांफ्रेंस करके गठबंधन और चुनावी रणनीति का खुलासा करेंगे। खास बात यह है कि फिलहाल इससे कांग्रेस समेत बाकी दलों को दूर रखा गया है। राष्ट्रीय लोकदल के इसमें शामिल होने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन सीटों को लेकर सहमति नहीं बनने से वह इसमें शामिल नहीं होगी। ध्यान रहे कि यूपी में करीब 26 साल बाद सपा और बसपा का गठबंधन होने जा रहा है। उस दौरान तो यह सफल रहा था पर इस बार हालात इतर हैं।

सीटों का हुआ बंटवारा
चर्चा यह भी है कि दोनों दलों ने लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने के लिए सीटों के बंटवारे को भी अंतिम रूप दे दिया है जिसकी औपचारिक घोषणा शनिवार को होने वाली प्रेस कांफ्रेंस में हो सकती है। फिलहाल दोनों दलों के बीच 37-37 सीटों के बंटवारे की चर्चा है। यूपी की सियासत में शनिवार का दिन इसलिए भी अहम हो चुका है कि क्योंकि स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद कहा जाता था कि अब सपा और बसपा का कभी मेल नहीं हो सकता। हालांकि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में संयुक्त प्रत्याशी उतारने की मायावती और अखिलेश की रणनीति को मिली सफलता ने दोनों दलों के बीच की दूरियों को कम कर दिया। यही वजह है कि दोनों दल अब साथ मिलकर लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने जा रहे है। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में बसपा को मिली सफलता से उसके हौसले बुलंद है तो अखिलेश भी इस बार अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है।

पर्दे के पीछे रहेगी कांगे्रस
सियासी जानकारों की मानें तो भले ही कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने जा रही है पर वह पर्दे के पीछे से दोनों दलों को अपना समर्थन देगी। इसके एवज में रायबरेली में सोनिया गांधी और अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ गठबंधन का प्रत्याशी नहीं उतारने की रणनीति बनाए जाने की चर्चा है। इसके अलावा वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद समेत तमाम बड़े शहरों में भाजपा के वर्चस्व को खत्म करने के लिए गठबंधन का संयुक्त प्रत्याशी उतारा जा सकता है। वहीं रालोद पश्चिमी उप्र में पांच सीटों की मांग कर रहा है। शुक्रवार को रालोद मुखिया चौधरी अजीत सिंह ने गठबंधन का हिस्सा होने का दावा करते हुए कहा कि अभी तक उनकी सीटों के बंटवारे को लेकर निर्णायक बातचीत नहीं हो सकी है।

विधानसभा चुनाव में हुई थी दोस्ती
इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी सपा ने कांग्रेस के साथ दोस्ती करके चुनाव लड़ा था। उस वक्त कभी न टूटने वाली दोस्ती के दावे भी दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा किए गये थे। खास बात यह है कि जिस होटल में अखिलेश और मायावती संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करने जा रहे हैं, वह दो साल पहले अखिलेश और राहुल गांधी की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस का गवाह है। यह बात दीगर है कि चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद यह दोस्ती छह महीने भी नहीं टिक सकी और दोनों दलों ने अलग होना ही बेहतर समझा।

बढ़ेंगी सियासी सरगर्मियां
मायावती और अखिलेश की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंकने से सूबे में सियासी सरगर्मियां बढ़ना तय है। सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव भी आगामी 15 जनवरी तक अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान करने की तैयारी में है। इससे विपक्ष की चुनावी रणनीति की तस्वीर साफ हो जाएगी। अब देखना यह है कि कांग्रेस इसे लेकर क्या रणनीति बनाती है।