साल बीता पर पूरे नहीं हो सके नगर निगम के विकास कार्य

जनता को नहीं मिल रही गड्ढामुक्त सड़कें, नालों की सफाई

डंपिंग ग्राउंड समेत अन्य समस्याओं का नहीं हो सका निस्तारण

Meerut । शहर के विकास के लिए नगर निगम ने 2019-20 में 557 करोड़ रुपये का मूल बजट पेश किया था। इस बजट के तहत में शहर में कूड़ा निस्तारण, डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन, गड्ढामुक्त सड़क, नाला सफाई, कूड़ा निस्तारण प्लांट, डेयरी अभियान, डंपिग ग्राउंड आदि की योजनाएं बनाई गई थीं। इसके बाद नवंबर में 634 करोड़ करीब का पुनरीक्षित बजट पेश किया गया था। इससे अलग 14वें वित्त आयोग से भी निगम को अच्छा खासा बजट मिला है, मगर विकास कार्य अटके हुए हैं।

कूड़ा कलेक्शन भी अधूरा

करीब 8 करोड़ 76 लाख रुपये के बजट से शुरू हुई कूड़ा कलेक्शन की व्यवस्था को सवा साल से अधिक का समय बीत चुका है। मगर आज भी निगम शत-प्रतिशत कूड़ा कलेक्शन नहीं कर पा रहा है। इसी कमी के कारण निगम अभी तक डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के शुल्क वसूली भी नहीं कर पा रहा है। हालत यह है कि आज भी शहर के अधिकतर वार्डो में कूड़ा खुले में फेंका जा रहा है।

गंदगी से भरपूर डंपिंग ग्राउंड

नगर निगम के दायरे में शहर में जगह-जगह 146 करीब अस्थाई खत्ते बने हुए हैं। निगम का प्रयास था कि स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत इन खत्तों को हटाया जाए और रोजाना सफाई करके कूड़ा उठाया जाए। मगर स्वच्छता सर्वेक्षण बीतने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। शहर में जगह-जगह मुख्य सड़कों और पार्को के आसपास गलियों में कूड़े का ढेर लगा हुआ है। डंपिंग ग्राउंड ओवर फ्लो हैं और कूड़ा जगह-जगह फैला रहता है।

गंदगी से अटे नाले

पिछले साल 14वें वित्त आयोग से करीब 31 करोड़ रुपये का बजट नालों की सफाई के लिए स्वीकृत किया गया था। इसके तहत शहर के छोटे-बडे करीब 21 नालों के निर्माण, मरम्मत के साथ-साथ सफाई अभियान भी शुरू हुआ था। सालभर यह अभियान चला और शहर के नालों को जेसीबी के माध्यम से सिल्ट निकाल कर साफ भी किया गया। मगर वास्तविकता देखी जाए तो एक बार सिल्ट निकालने के बाद देख-रेख न होंने के कारण आज भी शहर के नाले गंदगी और सिल्ट से अटे पड़े हैं।

नहीं मिला पशुओं को आश्रय

हाई कोर्ट की फटकार के बाद गत वर्ष नगर निगम ने शहर की सड़कों पर आवारा घूमने वाले निराश्रित पशुओं की धरपकड़ के लिए अभियान भी शुरू किया था लेकिन साल भर बाद भी निगम इसमें सफल नहीं हो पाया। हालत यह है कि सूरजकुंड में अस्थाई गौशाला और परतापुर में स्थाई आश्रय केंद्र बनने के बाद भी शहर की सड़कों पर आज भी निराश्रित पशुओं की भरमार है।

नालियों में बह रहा गोबर

कैटल कालोनी की मांग सालभर से अधर में हैं। एमडीए ने डेयरियों को शहर से बाहर कैटल कालोनी में जगह देने की योजना तो बना दी लेकिन आज तक कैटल कालोनी ही नहीं बन पाई है। ऐसे में शहर में 2 हजार से अधिक डेयरियों के खिलाफ निगम का अभियान तो जारी है लेकिन डेयरियों से नालियों में बहने वाले गोबर का सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है।

गड्ढे चिढ़ा रहे मुंह

नगर निगम ने करीब सवा करोड़ रुपये से निगम के दायरे में आने वाली 45 से अधिक सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने की कवायद शुरूकी थी। मगर आज भी इनमें से अधिकतर सड़कों पर गड्ढों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। बरसात के दिनों में सड़कों के यही गड्ढे हादसों का कारण बनते हैं।

इस साल निगम द्वारा कई नए काम कराए गए हैं। जिनमें बैलेस्टिक सैपरेट यूनिट, डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की व्यवस्था, गौ आश्रय केंद्र, नालों की मरम्मत, यूरिनल व शौचायल आदि का निर्माण। इन सभी विकास कार्यो लिए बजट के अनुसार ही योजना बनाई गई थी। मगर निगम की खुद की आय भी अभी कम है। इसलिए बजट की कमी से कुछ काम रुके हुए हैं।

ब्रजपाल सिंह, सहायक नगरायुक्त