-मानकों के विपरीत पड़ रही गगन चुंबी इमारतों की बुनियाद

-निगरानी कमेटी एमडीए की लापरवाही शहर को डाल रही खतरे में

mohit.sharma@inext.co.in

Meerut : मेरठ भूकंप के जोन चार में आता है। जाहिर है कि भूकंप के लिहाज से यह काफी संवेदनशील क्षेत्र है। ऐसे में आकलन इस बात का है कि हम भूकंप के झटके झेलने के लिए पहले से कितने अधिक तैयार हैं। कितनी मजबूत और टिकाऊ हमारे भवनों की बुनियाद है, लेकिन माथे पर चिंता की लकीरें तब और अधिक मोटी हो जाती हैं, जब परिणाम सामने यह आता है कि भवन तो दूर अभी तक हम उसकी बुनियाद को भी भूकंपरोधी बनाने में औंधे मुंह गिर रहे हैं।

कमजोर नींव पर मौत का घर

विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी बिल्डिंग को पांच हिस्सों में बांटा जा सकता है। इनमें से प्रत्येक हिस्से की उतनी ही महत्ता है, जितनी की मानव शरीर में अलग-अलग अंगों की। इनमें से एक भी हिस्सा यदि पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया तो असर पूरे संरचना पर होगा। ऐसे में भवन निर्माण के निर्माण के समय प्रत्येक हिस्से का महत्व के हिसाब से क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

ये हैं हिस्से

-फाउंडेशन

-डीपीसी

-सुपर स्ट्रक्चर

-लिंटर, स्लैब

-रूप यानी स्लैब

क्या कहता है बिल्डिंग कोड

बिल्डिंग कोड के अनुसार किसी भी जमीन पर फाउंडेशन डालते समय उस जमीन की बीयरिंग कैपेसिटी का आंकलन किया जाता है। जमीन की बीयरिंग कैपेसिटी ही बिल्डिंग की स्ट्रक्चर को तय करती है। यदि यहां आप जमीन की बीयरिंग कैपेसिटी के विपरीत भवन निर्माण करते हैं तो उसके परिणाम विध्वंसक हो सकते हैं। जमीन की बीयरिंग कैपेसिटी मापते समय डेड लोड, लाइव लोड और मूविंग लोड का विशेष ध्यान रखा जाता है।

लोड का रखें विशेष ध्यान

यहां डेड लोड का मतलब बनने वाली बिल्डिंग के भार से है यानी उस बिल्डिंग का भार कितना होगा। इसके अलावा लीव रोड का आशय बिल्डिंग में निवास करने वाले लोगों के भार से हैं, वहीं मूविंग लोड का मतलब उस भवन में लगी मशीनों के आधार पर मापा जाता है। इन तीनों की कैल्कुलेशन से ही जमीन की बियरिंग कैपेसिटी मापी जाती है, जिसके आधार पर किसी भी बिल्डिंग का लेआउट बनाया जाता है।

प्रॉपर फाउंडेशन स्ट्रक्चर

इस तकनीक में बिल्डिंग को भूकंपरोधी बनाने के लिए एक स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है। अक्सर देखते में आता है कि बिल्डिंग निर्माण के समय हम केवल लिंटर या स्लैब ही विशेष ध्यान देते हैं, जबकि सबसे अधिक ध्यान देने के जरूरत फाउंडेशन और पिलर्स पर होती है। आम कहावत है कि जब तक पैर खड़े रहेंगे, तब सिर भी खड़ा रहेगा। फाउंडेशन जितनी मजबूत होगी बिल्डिंग भी उतनी मजबूत होगी।

सॉयल टेस्ट

मानकों के अनुसार बिल्डिंग बनाने से पूर्व जमीन की जांच अति आवश्यक है। जांच में परखा जाता है कि मिट्टी में सल्फेट कितनी मात्रा में है, उसमें मॉइश्चर कितना है। मिट्टी बालू, हार्ड अथवा सॉफ्ट है आदि बातों की बारीकी से जांच की जाती है।

कॉस्ट कटिंग का खेल

चौंकाने वाली बात यह है कि यहां किसी भी भवन, इमारत या कालोनी के निर्माण के समय न केवल बुनियाद बल्कि पूरे भवन की क्वालिटी पर ही ध्यान नहीं दिया जाता है। बिल्डर अपनी कंस्ट्रक्शन कॉस्ट बचाने के फेर में जमीन में एक से दो फिट गहराई से ही बुनियाद खड़ी कर देते हैं, इसका परिणाम यह होता है कि बिल्डिंग न केवल मियाद से पूर्व ही दम तोड़ देती है, बल्कि भूकंप का एक झटका भी बर्दाश्त नहीं कर पाती।

क्या है असली तस्वीर

किसी भी बिल्डिंग की बुनियाद की असलियत देखी जाए तो आंखे खुली रह जाती हैं। बुनियाद में पीली ईट और बालू रेत को दबाया जाता है। इसके अलावा रेत और सीमेंट का मिश्रण बनाकर बुनियाद में डाल दिया जाता है। इसके बाद डीपीसी डाल दी जाती है, जिस पर बाद में पूरी बिल्डिंग खड़ी कर दी जाती है। वास्तव में बिल्डिंग को लाल ईटों व प्लास्टर के साथ तैयार करना चाहिए।

अवैध कालोनियां अधिक प्रभावित

सबसे बुरा हाल तो शहर में बड़े पैमाने पर विकसित की जा रही कच्ची कालोनियों का है। एक तो ये कालोनाइजर मेरठ विकास प्राधिकरण से कालोनी का नक्शा पास नहीं कराते है, ऊपर से किसी निगरानी समिति से बेखौफ बिल्डर खुले तौर पर कंस्ट्रक्शन मानकों की धज्जियां उड़ाते हैं। एमडीए के आंकड़ों की ही मानें तो शहर में भ्ब्म् से अधिक कच्ची कालोनियां विकसित की जा चुकी हैं, जबकि आठ सौ अधिक कालोनियां विकसित की जा रही हैं।

हर तीसरी बिल्डिंग खतरनाक

शहर की हर बिल्डिंग को मानकों की कसौटी पर कसा जाए तो परिणाम के बारे में सोच कर होश उड़ जाएं। शहर में हर तीसरी बिल्डिंग खतरे के मुहाने पर खड़ी है। शहर की कुल जनसंख्या बीस लाख से ऊपर है, जिसमें से आधी आबादी इन्हीं अवैध कालोनियों में निवास करती हैं। भविष्य में यदि शहर को भूकंप के झटके लगे तो नुकसान कितना बड़ा होगा इसका खयाल भी जहन के फ्यूज उड़ा देता है।

कटघरे में एमडीए

किसी भी इमारत का मानचित्र स्वीकृत करते समय एमडीए केवल उसके कागजों पर सर्टीफिकेट की जांच करता है, जबकि निर्माणाधीन बिल्डिंग की जांच करने एमडीए का कोई कर्मचारी से लेकर अफसर तक मौके पर नहीं पहुंचता। इस बात का फायदा उठाकर बिल्डर सीमेंट की जगह रेत और पत्थर के स्थान पर पीली ईटों का इस्तेमाल करता है। इसे एमडीए अफसरों की लापरवाही कहिए या सेटलमेंट कि बिल्डिंग पूर्ण होने के बाद नियमानुसार उसको पूर्णता प्रमाण पत्र तक जारी नहीं किया जाता।

बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन की जांच के लिए प्रवर्तन विंग होता है। इस विंग के लोग मौके पर जाकर मानकों के अनुसार बिल्डिंग निर्माण की जांच करते हैं। यदि बिल्डिंग मानकों के अनुरूप नहीं है तो उसको सील कर दिया जाता है।

-एपी पांडेय, एटीपी एमडीए

मानकों के विपरीत बिल्डिंग का निर्माण अवैध माना जाता है। ऐसी बिल्डिंग को सील कर दिया जाता है। सील आदि तोड़ने पर बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर बिल्डिंग को ध्वस्त कर दिया जाता है।

-सौम्य श्रीवास्तव, सचिव एमडीए

किसी भी फाउंडेशन का उतना ही महत्व है, जितना की मानव शरीर में पैरों का। फाउंडेशन की क्वालिटी से खिलवाड़ आने वाले संकट का दावत देना है। फाउंडेशन जिनता टिकाऊ होगी, बिल्डिंग की मियाद उतनी ही बढ़ जाएगी।

-रिफत जमाली, आर्किटेक्ट रिफकम बिल्डटेक एसोसिएट

इस तरह होनी चाहिए मकान की नींव

उदाहरण के तौर पर यदि देखें तो सौ वर्ग मीटर में मकान बनाने के लिए भ्-म् फिट गहरी नींव होना लाजमी है। इसके साथ उसकी चौड़ाई की शुरुआत फ्म् इंच होकर फिर फ्0 इंच, ख्ब् इंच और फिर घटते-घटते नौ इंच पर रह जाती है। नौ इंच पर आते ही नींव पर डीपीसी डाल दी जाती है, जिसके ऊपर दीवारों का निर्माण कार्य शुरू किया जाता है।