-रोड किनारे धूल फांक रही हैं करोड़ों की लागत से बनी लोहिया ग्रामीण बसें

-रोज हो रहा है 13 लाख का राजस्व नुकसान, प्राइवेट बसों को दिया जा रही तवज्जों

-अनुबंधित बसों को बढ़ावा देने के लिए विभाग के अधिकारी ले रहे मोटी रकम

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KANPUR : अधिकारियों को जब अपना फायदा दिखता है तो उनके लिए मुख्यमंत्री भी मायने नहीं रखते हैं। सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट को भी पलीता लगाने से पीछे नहीं हटते। करोड़ों की लागत से बनाई गई 130 लोहिया ग्रामीण बसें कई महीनों से सड़क किनारे धूल फांक रही हैं और बेचारी जनता आने-जाने के लिए धक्के खाने को मजबूर हैं। ये बसें अगर वक्त पर सड़कों पर दौड़ने लगती तो जनता का सफर आसान हो जाता, लेकिन विभाग के अधिकारियों का इससे कोई वास्ता नहीं है। परिवहन विभाग के ढीले रवैये के नई चमचमाती हुई बसें धीरे-धीरे कबाड़ होती जा रही हैं।

240 करोड़ का था प्रोजेक्ट

मुख्यमंत्री ने शहरी इलाकों को ग्रामीण इलाकों से जोड़ने के लिए लोहिया ग्रामीण बसों का प्रोजेक्ट उतारा था, जिसके लिए शासन स्तर से 240 करोड़ रुपए भी रिलीज कर दिए गए थे। लोहिया ग्रामीण की 810 चेचिस को निर्माण के लिए हरियाणा भेजा गया था, जिसमें 600 बसें बनकर आ चुकी हैं। वहीं एलेन फॉरेस्ट व केंद्रीय कार्यशाला से 710 बसें बन कर तैयार हुई हैं। हरियाणा से बनकर आईं बसों में लगभग 130 बसें कार्यशाला के बाहर रोड पर खड़ी होकर धूल फांक रही हैं। इन बसों का पुरसाहाल पूछने वाला कोई नहीं है। करोड़ों की लागत से बनीं ये बसें रोड किनारे कंडम हो रही हैं।

रोज 13 लाख का नुकसान

लोहिया ग्रामीण बस औसतन हर रोज 10 हजार रुपए का राजस्व जुटाती हैं। 130 बसों के खड़े होने से पर डे का 13 लाख रुपए का राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। सेंट्रल रीजनल कर्मचारी संघ के प्रांतीय अध्यक्ष त्रिलोकी व्यास ने बताया कि केंद्रीय कार्यशाला के सामने रोड पर, प्रशिक्षण केंद्र के मैदान में व कार्यशाला के कबाड़खाने में ये बसें खड़ी धूल फांक रही हैं। अगर ये रोड पर हों तो राजस्व में भी वृद्धि हो जाएगी।

हल्की बसों से बच रहे हैं रीजन

आखिर जब बड़ी संख्या में अनुबंधित बसें परिवहन विभाग से अटैच होकर चल रही हैं तो ये बसें खड़ी क्यों हैं। इस सवाल के जवाब में त्रिलोकी व्यास बताते हैं कि दरअसल हल्की चेचिस से बनीं बसें रीजन पसंद ही नहीं कर रहे हैं, जबकि दोनों कार्यशालाओं से बनी बसें काफी पसंद की जा रही हैं। जबकि दूसरी ओर अनुबंधित होकर चलने वाली बसों से मोटा पैसा ऊपर बैठे अधिकारियों को पहुंचता है। जिसके चलते अधिकारी भी अनुबंधित बसों को चलाने के लिए ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। नतीजा ये है कि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट का ये हाल हो गया है।

निर्माण में औसतन खर्च ज्यादा

व्यास ने बताया कि कार्यशाला में एक बस के निर्माण में औसतन 4 लाख 60 हजार का मैटीरियल व 1 लाख 60 हजार का लेबर चार्ज लगता है। इस हिसाब से औसतन 6 लाख 30 हजार रुपए का खर्च एक बस के निर्माण में आता है। वहीं हरियाणा से बनकर आने वाली बसों का खर्च औसतन 9 लाख रुपए है। इसके अलावा वैट चार्ज व डीजल चार्ज भी अलग से देना होता है। त्रिलोकी व्यास ने बताया कि हरियाणा से बसों को मार्च तक बनाकर भेज देना था, लेकिन दिसंबर माह आ गया। मगर हरियाणा से बनकर आने वाली 810 बसों में सिर्फ 600 बसें ही बनकर आई हैं।

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दूध व सब्जी वालों के लिए मुफीद

इन बसों की सबसे खास बात ये है कि ये बसें ग्रामीण इलाकों को शहरी इलाकों से जोड़ती है। शहरों के आसपास के ग्रामीण इलाकों के लिए ही ये बसें चलती हैं। 55 सीटर बसों का किराया भी काफी संतुलित है। इन बसों में दूध वालों के पीपे रखने के लिए भी बोर्ड बना है। वहीं सब्जी वालों के लिए भी सब्जी आदि रखने की जगह बनी हुई है।

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आंकड़ों के आइने से

कुल लोहिया बसें- 1520

हरियाणा गईं बसें- 810

कानपुर में बनीं बसें- 710

हरियाणा से अभी आने वाली बसें- 210

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रूटीन में बसें चलती हैं। जहां से डिमाण्ड होती है, वहां भेजी जाती है। जगह की कमी की वजह से रोड पर खड़ी हैं। जल्द ही व्यवस्था करा ली जाएगी।

-रवींद्र कुमार, जीएम, केंद्रीय कार्यशाला

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लोहिया ग्रामीण बसें खड़े-खड़े धूल फांक रही हैं। परिवहन अधिकारी बसों को चलाने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। हरियाणा से आईं बसों का निर्माण भी ठीक से नहीं हुआ है।

-त्रिलोकी व्यास, प्रांतीय अध्यक्ष,

सेंट्रल रीजनल वर्कशॉप कर्मचारी संघ

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हरियाणा से आई बसों का निर्माण ठीक से नहीं हुआ है। वहीं बसों के निर्माण की लागत भी ज्यादा है। विभाग अनुबंधित बसों को चलाने पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। बसें कंडम हो रही हैं।

-सुरेश यादव, प्रदेश संयुक्त मंत्री,

सेंट्रल रीजनल वर्कशॉप कर्मचारी संघ