पवन नौटियाल

- उत्तरकाशी से 42 किमी दूर स्थित भटवाड़ी से 6 किमी पैदल दूरी पर है दयारा बुग्याल

- भाद्रपद संक्रांति के मौके पर मनाया जाता है बटर फेस्टिवल, की जाती है कुदरत की पूजा

- बुग्याल से अपने मवेशी लेकर वापस लौटते हैं स्थानीय लोग, कुदरत को बोलते हैं शुक्रिया

देहरादून,

उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में भाद्रपद संक्रांति पर अनोखा सेलिब्रेशन होता है। इसे बटर फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है। 28 वर्ग किलोमीटर में फैले दयारा बुग्याल में प्रकृति की पूजा के साथ मखमली घास पर मक्खन की होली खेली जाती है। स्थानीय लोग इस दिन अपने मवेशियों को बुग्याल से वापस गांव की ओर ले जाते हैं और सकुशल वापसी के लिए कुदरत का शुक्रिया अदा करते हैं। सैटरडे को दयारा बुग्याल में यही बटर फेस्टिवल हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। फेस्टिवल में कई टूरिस्ट्स भी दयारा पहुंचे। इस मौके पर स्थानीय महिलाओं द्वारा पेश किया गया लोक नृत्य भी आकर्षण का केंद्र रहा।

भाद्रपद संक्रांति का अनोखा उत्सव

उत्तरकाशी से 42 किलोमीटर की सड़क दूरी पर स्थित रैथल गांव से 6 किलोमीटर दूरी तय कर पहुंचा जाता है दयारा बुग्याल। दयारा बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर दायरे में फैला है। यहां भाद्रपद संक्रांति जिसे स्थानीय लोगों द्वारा घी संक्रांति या अंढूड़ी मेले के नाम से भी जाना जाता है, को अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। मखमली घास पर लोग मक्खन की होली खेलते हैं और महिलाएं लोक नृत्य करती हैं।

मवेशियों की वापसी का सेलिब्रेशन

गर्मियां शुरू होते ही लोग दयारा बुग्याल में अपने मवेशियों को चुगान के लिए ले जाते हैं। गर्मी और बरसात को दौरान मवेशी यहां बुग्याली वनस्पतियों को खाते हैं और इसके बाद भाद्रपद की संक्रांति के साथ ही मवेशियों को लेकर लोग अपने गांवों को लौटने लगते हैं। मवेशियों के साथ सकुशल वापसी के लिए लोग कुदरत का शुक्रिया अदा करने के लिए भाद्रपद संक्रांति को त्योहार के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। इस दौरान प्रकृति पूजा की जाती है, महिलाएं लोक नृत्य के जरिये कुदरत का आभार जताती हैं और मक्खन की होली खेली जाती है।

बटर फेस्टिवल को मिली ग्लोबल पहचान

पशुधन को बढ़ावा देने और प्रकृति, पर्यावरण के प्रति समर्पण के प्रतीक बटर फेस्टिवल को ग्लोबल पहचान मिल रही है। ग्रामीणों का तर्क है कि बुग्याल में चुगान के कारण पशुधन में वृद्धि होती है, मवेशियों का दूध बढ़ता है और ग्रामीण संपन्न होते हैं। दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के अध्यक्ष मनोज राणा ने बताया कि पहले होली गाय के गोबर से भी खेलते थे, लेकिन अब अंढूड़ी उत्सव को पर्यटन से जोड़ने के लिए ग्रामीणों ने मक्खन की होली खेलना शुरू किया है। मक्खन की होली खेलने के चलते अंढूड़ी उत्सव को बटर फेस्टिवल के रूप में पहचान मिली।