- कुमाऊं के पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले हिस्सों में पाया जाता है च्यूरा बटर ट्री

- ढकरानी कृषि विज्ञान केंद्र में साइंटिस्ट तैयार कर रहे हैं 500 पौधे, फॉर्मर्स को होंगे डिस्ट्रीब्यूट

>DEHRADUN: गाय, भैंस के अलावा अब पेड़ से भी शुद्ध खाने का घी मिल सकेगा। यकीनन खबर चौंकाने वाली लग रही होगी, लेकिन यह खबर सौ आने सच है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकारानी के साइंटिस्टों का दावा है कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले व नेपाल के सटे बार्डर एरियाज में बटर ट्री, जिसको स्थानीय भाषा में 'च्यूरा' कहा जाता है, उससे खाने का घी तैयार किया जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी में बाकायदा इसके 500 पौधे तैयार किए जा रहे हैं। जिनको साइंटिस्ट किसानों तक पहुंचाएंगे।

साइंटिस्ट कर रहे रिसर्च

कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के साइंटिस्ट डॉ। आरपी सिंह कहते हैं कि ट्रॉपिकल ट्री के नाम से पहचान रखने वाले बटर ट्री, जिसको महुवा स्पेशीज का ट्री कहा जाता है। इस पर रिसर्च कर रहे हैं। डॉ। सिंह का कहना है कि 1985 में ढकरानी कृषि विज्ञान केंद्र में इटली के साथ किए गए टाइअप में जैतून पर प्रोजेक्ट शुरू किया गया। जिसको इटली फॉर्म हाउस नाम दिया गया था, लेकिन कुछ वर्षो बाद यह बदहाल हो गया। उसके कुछ वर्षो बाद यह फॉर्म हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट के पास गया और आखिरी में पंतनगर विवि के पास। अब वर्ष 2004 से यह केंद्र कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए संचालित हो रहा है। इसी केंद्र पर अब करीब 500 च्यूरा की पौध तैयार की जा रही हैं। डॉ। आरपी सिंह बताते हैं कि महुआ स्पेशीज का पौधा च्यूरा पछुवादून के क्लाइमेट को शूट कर रहा है। जिस कारण पौधे अच्छी ग्रोथ कर रहे हैं। साइंटिस्ट का दावा है कि च्यूरा से प्योर ऑर्गनिक व प्राकृतिक घी व तेल निकाला जा सकता है। इससे न केवल फॉर्मर्स अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए घी का उत्पादन कर पाएंगे, बल्कि बाजार में सबसे ज्यादा घी में पाई जाने वाली मिलावट से भी छुटकारा मिल पाएगा। डॉ। सिंह कहते हैं कि महुवा के घी में हल्की महक महसूस होती थी, लेकिन च्यूरा में ऐसा नहीं है। इसका बॉटनिकल नाम मधुका लॉन्गिफोलिया है।

एक पेड़ से एक क्विंटल तक सीड्स

इंडियन बटर ट्री के नाम से पहचान रखने वाला यह च्यूरा प्लांट्स करीब तीन हजार फिट की ऊंचाई तक पाया जाता है। छायादार पेड़ से करीब एक क्विंटल तक सीड्स आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इसके फ्लावरिंग का वक्त जनवरी से अक्टूबर तक और फल के पकने का समय जुलाई से अगस्त तक है। इसके सीड्स कलेक्ट कर ब्वॉयल करते हैं, ठंडा करने के बाद पानी की ऊपरी सरफेस पर घी तैरने लगता है। साइंटिस्ट का कहना है कि इसका घी मोमबत्ती का भी काम करता है। जबकि इसके फ्लावर में इतनी मिठास होती है कि मधुमक्खी भी खूब पसंद करती हैं। गठिया की शिकायत पर इसका लेप करने से लाभ मिलता है।

एंटी कैंसर चेरी टुमैटो पर भी जोर

डॉ। आरपी सिंह कहते हैं कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के साइंटिस्ट चेरी टुमैटो को बढ़ावा देने का भी प्रयास कर रहे हैं। हालांकि त्यूणी और हिमाचल से चेरी टुमैटो की सप्लाई सहसपुर, हर्बटपुर व विकासनगर तक हो रही है। जिसका छिक्कल पतला व फल रसीला होता है। इस टमाटर में एंटी कैंसर तत्व मौजूद हैं। यूरोप में इसकी सबसे ज्यादा डिमांड है। फलों की नर्सरी के जरिए फॉर्मर्स तक चेरी टुमैटो पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।