CAG की रिपोर्ट में खुलासा, पुराने ढर्रे पर चल रही है यूपी पुलिस

बढ़ गई अपराधों की दर, नहीं बढ़े पुलिसकर्मी, हथियार भी पुराने जमाने के

ALLAHABAD: समय के साथ यूपी पुलिस खुद को नही बदल सकी है। बीस साल बाद भी न तो पुलिस के जवानों की संख्या बढ़ी है और नही उसके हथियार माडर्न हुए हैं। हुई है तो केवल पुलिस मार्डनाइजेशन की बात। 1995 में होम मिनिस्ट्री ने मार्डनाइजेशन के प्रपोजल को हरी झंडी दी थी, लेकिन इसे हकीकत में नही बदला जा सका। इस बात का खुलासा सीएजी के ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। शुक्रवार को प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने पुलिस मार्डनाइजेशन पर पिछले पांच सालों (वर्ष 2011 से 2015-16म्) का लेखा जोखा प्रस्तुत किया।

जारी नही हुआ पूरा बजट

रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारों ने पुलिस मार्डनाइजेशन के नाम पर पूरा बजट तक नही दिया है। भारत सरकार ने जहां देय अंश का केवल 70 फीसदी (496.86 करोड़) तो राज्य सरकार ने महज 38 फीसदी (162.60 करोड़) धन ही अवमुक्त किया। यह राशि पांच सालों में दी गई थी। इसकी वजह से पुलिस मार्डनाइजेशन का कार्य प्रभावित हुआ। हालांकि, जो राशि जारी की गई, उससे भी पुलिस विभाग का खास भला नही हो पाया। इसके चलते राज्य में 44 फीसदी थानों की कमी पाई गई है। वर्तमान में केवल 1460 थाने हैं और 1115 थाने बनने शेष हैं। जनसंख्या बढ़ने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में 41 फीसदी और नगरीय क्षेत्रों में 51 फीसदी थानों की कमी है, जो क्राइम से लड़ने की शासन की मंशा की पोल खोल रही है।

थके हथियारों से अपराधियों का सामना

आपको जानकर हैरानी होगी कि जहां अपराधियों के पास अति आधुनिक हथियार मौजूद हैं वही हमारी 48 फीसदी यूपी पुलिस ट्रेंड से बाहर हो चुकी प्वाइंटर 303 बोर की राइफल के भरोसे पब्लिक की सुरक्षा कर रही है। इस राइफल को बीस साल पहले नकारा जा चुका है। इन्हें इन्सास राइफल से बदलने में पांच साल लग जाएंगे। इसी तरह पुलिस विभाग में पिस्टल-रिवाल्वर श्रेणी में 176110 हथियारों की कमी पाई गई्र। उप्र पुलिस कम्युनिकेशन के मामले में भी फैल्योर साबित हुई है। सीएजी के आडिट में पता चला कि केवल 48 फीसदी पुलिस वालों को वाकी टाकी प्रदान किया गया है। बता दें कि 50216 के सापेक्ष 33860 सेटों की निर्धारित समाप्त होने के बावजूद पुलिस उनका उपयोग कर रही है।

मार्डनाइजेशन का सच

जिलों में निगरानी के लिए लगाए गए 691 सीसीटीवी कैमरे में से 39 फीसदी का क्रियाशील नहीं मिले

पुलिस को स्मार्ट बनाने वाला सीसीटीएनएस सिस्टम पूरी तरह परिचालित नही हो पाया है

केवल इसका एफआईआर माड्यूल ही कार्य कर रहा है।

सिविल पुलिस गश्त वाहनों 68 फीसदी और पीएससी में 75 फीसदी वाहनों की कमी पाई गई है।

2009 में प्रदेश सरकार ने एटीएस के तहत दो हजार कमांडो के कमांड यूनिटों और एनएसजी की तरह चार कमांड यूनिट की स्थापना का फैसला किया था

इस पर अभी तक अमल नही हो पाया

ऐसे कैसे निपटेंगे महत्वपूर्ण मुकदमे

मानदंडों के मुताबिक फोरेसिंक नमूनो (बिसरा) का परीक्षण सात दिन में कर 14 दिन के भीतर न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है। जबकि लखनऊ, आगरा और वाराणसी की लैब में इसके उलट 2011 से 2015 के बीच लंबित नमूनों की संख्या 6617 से बढ़कर 15052 हो चुकी है। बिसरा की जांच नही होने से जरूरी मुकदमों का फैसला आज तक नही हो सका है। यह भी पुलिस मार्डनाइजेशन का बड़ा फेल्योर है। बता दें कि इन प्रयोगशालाओं में भारी संख्या में टेक्निकल स्टाफ की कमी है।

अपराध बढ़े, पुलिस कर्मी घटे

24

फीसदी मुकदमो की संख्या 2011 से 15 तक प्रदेश में बढ़ी

57

फीसदी अपराध महिलाओं के खिलाफ बढ़े

108

फीसदी अपराध बच्चों के विरुद्ध दर्ज किए गए

34

फीसदी एवरेज आपराधिक मामलों में हुई वृद्धि

377474

पद एक अप्रैल 2015 तक यूपी पुलिस के लिए स्वीकृत थे

180649

पुलिस कर्मियों की तैनाती स्वीकृत संख्या के सापेक्ष यूपी में थी

52

फीसदी उपनिरीक्षकों के पद रिक्त

55

फीसदी पद सिपाहियों के रिक्त हैं यूपी में

58

फीसदी पुलिस कर्मियों की कमी सूबे की जनसंख्या की दृष्टि से सूबे के सबसे बड़े जिले इलाहाबाद में