नहीं बचेगें भ्रष्ट अधिकारी

कोर्ट के निर्देश और निगरानी में चल रही भ्रष्टाचार की जांच में भी नौकरशाहों को बचाने वाला सरकारी मंजूरी का कवच हट गया है. सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपी वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच में सीबीआइ को खुली छूट देते हुए कहा है कि कोर्ट के आदेश और निगरानी में हो रही जांच में सीबीआइ को संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच से पहले सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है.

सरकार के लिए बड़ा झटका

दिल्ली पुलिस एस्टेबलिशमेंट एक्ट की धारा 6ए कहती है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अधिकारी के खिलाफ जांच करने से पहले केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी होगी. आज के फैसले के बाद कोर्ट के आदेश और निगरानी में हो रही जांच के मामलों में सीबीआइ को सरकार से पूर्व मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी. दूरगामी प्रभाव वाला यह फैसला सरकार के लिए बड़ा झटका है. इससे पहले सरकार ने पूर्व मंजूरी लेने के नियम का समर्थन करते हुए कहा था कि अधिकारियों के निडरता से काम करने के लिए ये जरूरी है. दूसरी ओर, सीबीआइ निदेशक ने फैसले का स्वागत किया है. कहा है कि यह सीबीआइ की स्वायत्तता की दिशा में बड़ा कदम है. कोर्ट ने सीबीआइ की मांग मान ली है.

कोयला घोटाले में सुनाया फैसला

यह अहम फैसला न्यायमूर्ति आरएम लोधा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कोयला घोटाले के मामले में सुनाया है. यह फैसला उन सभी मामलों में लागू होगा जो कोर्ट के आदेश पर दर्ज किए गए हैं और जिनकी जांच की निगरानी कोर्ट कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन मामलों की जांच संवैधानिक अदालत (हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट) की निगरानी में हो रही हो उनमें अपने आप ही यह भरोसा और आश्वासन रहता है कि सीबीआइ जांच के नाम पर नौकरशाहों को बेवजह प्रताड़ित नहीं करेगी. जांच एजेंसी निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से बिना किसी प्रभाव या बाहरी दबाव के अपने कर्तव्य का पालन करेगी.

सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर लागू

कोर्ट ने कहा कि जस्टिस के. वीरास्वामी के मामले में दिया गया संविधान पीठ का फैसला सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के मामले में लागू होगा. वे लोग संवैधानिक पद धारण करते हैं और उनका काम सरकारी अधिकारियों के काम से भिन्न होता है. मालूम हो कि वीरास्वामी के फैसले में कहा गया है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ जांच से पहले मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लेनी होगी. सरकार की दलील थी कि यही सिद्धांत नौकरशाहों के मामले में भी लागू होगा.

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