Chaitra Navratri 2020 : इस बार की वसंत नवरात्रि अनेक वर्षों बाद एक बेहद शुभ संयोग लेकर आ रही हैं और इन दिनों में उपासना करने का फल अभूतपूर्व साबित होगा लेकिन शायद आपको न पता हो। इस बार मां दुर्गा 25 मार्च 2020 बुधवार के दिन नाव पर सवार होकर आ रही हैं। नाव वाहन पर आगमन होने से सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है। इस वर्ष नवरात्रि 9 दिन हो जाने के चलते पूरा संयोग ही बेहद शुभ साबित होने वाला है। जब भी 9 दिन नवरात्रि मनाई जाती है तो ये दिन शक्ति की उपासना के लिए बेहद शुभ होते हैं। देश में खुशहाली के संकेत हैं।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

इस साल बुधवार 25 मार्च को प्रात: 5:57 बजे सूर्योदय के बाद कलश स्थापना की जा सकती है। अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापन करने वाले लोंगो के लिए समय दिन 11:36 बजे से दिन 12:24 बजे तक कलश स्थापना होगी। सूर्योदय के बाद व अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना करना चाहिए।

महाष्टमी 1 अप्रैल को, हाथी पर सवार हो कर जाएंगी मां

महाष्टमी का व्रत- 1 अप्रैल को होगा। दुर्गा जी का प्रस्थान शुक्रवार 3 अप्रैल को दशमी तिथि को हाथी वाहन से होगा और यह अच्छी वृष्टि कारक होता है। 25 तारीख से शुरु हो रही चैत्र नवरात्रि में 9 दिन तक दुर्गा माता के अलग- अलग रुपों के लिए व्रत रखना फलदायी होगा। पहला दिन माता शैलपुत्रि को होता है।

नवरात्रि पूजा- विधि

यह नवरात्र व्रत स्त्री- पुरुष दोनों कर सकते हैं। यदि स्वयं न कर सके तो पति, पत्नी, पुत्र या ब्राह्मण को प्रतिनिधि बनाकर व्रत पूर्ण कराया जा सकता है। व्रत में उपवास, अयाचित ( बिना मांगे प्राप्त भोजन), रात में भोजन करना या एक बार भोजन करना जो बन सके यथासामर्थ्य वह करे। यदि नवरात्रों में घट स्थापन के बाद सूतक लग जाये तो कोई दोष नहीं लगता परंतु पहले हो जाये तो पूजन आदि स्वयं नहीं करनी चाहिए।

इस विधि करें कलश स्थापना

कलश स्थापन के लिए पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करें। फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर यथाशक्ति मिट्टी, तांबे या सोने का कलश स्थापित करें। यदि पूर्ण विधिवत करना हो तो गणेशाम्बिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृत मातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन तथा पुण्याहवाचन ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा स्वयं करें। इसके बाद कलश पर देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा उसका षोडशोपचार पूजन करे । तदनन्तर "श्रीदुर्गासप्तशती" का सम्पुट अथवा साधारण पाठ भी करने की विधि है। पाठ की पूर्णाहुति करें, दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए।

कुमारी पूजन

कुमारी पूजन नवरात्रि व्रत का अनिवार्य अंग है। कुमारिकाएं जगज्जननी जगदम्बा का प्रत्यक्ष विग्रह है। सामर्थ्य हो तो नौ दिन तक , अन्यथा सात, पांच, तीन, या एक कन्या को देवी मानकर पूजा करके भोजन कराना चाहिए। आसन बिछाकर गणेश, बटुक तथा कुमारियों को एक पंक्ति में बिठाकर पहले "ऊँ गं गणपतये नमः" से गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें, फिर "ऊँ बं बटुकाय नमः" से बटुक का तथा" ऊँ कुमार्यै नमः" से कुमारियों का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करें।

इन मंत्रों के जाप के साथ कराएं कन्या पूजन

कहीं- कहीं अष्टमी या नवमी के दिन कड़ाही -पूजा की परम्परा भी है। कड़ाही में हलवा बनाकर उसे देवी जी की प्रतिमा के सम्मुख रखा जाता है। तत्पश्चात चमचे और कड़ाही में मौली बांधकर "ऊँ अन्नपूर्णायै नमः" इस नाम से मन्त्र कर कड़ाही का पंचोपचार पूजन भी किया जाता है। तदनन्तर थोड़ा सा हलवा कड़ाही से निकालकर देवी मां को नैवेद्य लगाया जाता है। उसके बाद कुमारी बालिकाओं को भोजन कराकर उन्हे यथाशक्ति वस्त्र आभूषण दक्षिणा आदि देने का विधान है।

- ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र