हर अणु में इन तीनों गुणों या तत्वों की ऊर्जा, स्पंदन व प्रकृति का कुछ न कुछ अंश पाया जाता है। अगर ये तीनों तत्व मौजूद नहीं होंगे, तो कोई भी चीज टिक नहीं सकती, वह बिखर जाएगी। अगर आपमें सिर्फ सतोगुण ही है, तो आप यहां एक पल के लिए भी टिक नहीं पाएंगे, तुरंत गायब हो जाएंगे। इसी तरह से अगर आपमें सिर्फ रजो गुण होगा तो भी यह काम नहीं करेगा और अगर आप में सिर्फ तमस ही होगा, तो आप हमेशा निष्क्रिय रहेंगे। इसलिए हर चीज में ये तीनों ही गुण मौजूद हैं।

तीनों को किस अनुपात में है मिलाना

अब सवाल यह है कि आप इन तीनों को किस अनुपात में मिलाते हैं। तमस का शाब्दिक अर्थ है, निष्क्रियता और ठहराव। रजस का आशय है, सक्रियता और जोश, जबकि एक तरह से सत्व का मतलब है, अपनी सीमाओं को तोडऩा, विसर्जन व एकाकार। तीन मुख्य आकाशीय पिण्डों, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा से हमारे शरीर की मूल संरचना का गहरा संबंध है। पृथ्वी को तमस का, सूर्य को रजस का और चंद्रमा को सत्व का प्रतीक मानते हैं, जो लोग अधिकार, सत्ता, अमरत्व व ताकत की कामना करते हैं, वे देवी के तमस रूप की आराधना करेंगे, जैसे मां काली व धरती माता, जो लोग धन-दौलत, ऐश्वर्य, जीवन व सांसारिकता से जुड़ी चीजों की कामना करते हैं, वे स्वाभाविक तौर पर देवी के रजस रूप की आराधना करेंगे, जिसमें देवी लक्ष्मी व सूर्य आते हैं, लेकिन जो लोग ज्ञान, चेतना, उत्कर्ष और नश्वर शरीर की सीमाओं से ऊपर उठने की कामना करते हैं, वे देवी के उस सत्व रूप की आराधना करेंगे, जिसका प्रतीक सरस्वती और चंद्रमा हैं।

जीवन की दशा व दिशा तय होती

नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस के माने जाते हैं, जिसकी देवी प्रचंड और उग्र हैं, जैसे दुर्गा या काली। इसके अगले तीन दिन रजस या लक्ष्मी से जुड़े माने जाते हैं, जो बहुत सौम्य हैं, लेकिन सांसारिकता से जुड़े हुए हैं, जबकि आखिरी तीन दिन सत्व से जुड़े माने जाते हैं, जिसकी देवी सरस्वती हैं, जो विद्या और ज्ञान से संबंधित हैं। इन तीनों गुणों में अपनी जिंदगी निवेश करने के तरीके से आपके जीवन की दशा व दिशा तय होती है। अगर आप तमस पर ज्यादा जोर देते हैं, तो आप जीवन में एक खास तरीके से ताकतवर होते हैं, इसी तरह से अगर आप रजस पर जोर देते हैं तो आप एक अलग तरीके से शक्तिशाली होते हैं, लेकिन अगर आप सत्व में निवेश करते हैं तो आप पूरी तरह से बिल्कुल एक अलग तरीके से समर्थ बन जाते हैं, लेकिन अगर आप इन तीनों ही तत्वों से ऊपर उठ जाते हैं तो फिर मामला शक्ति का नहीं, बल्कि मुक्ति से जुड़ जाता है, तो इस प्रकार ये तीन गुण आपको अलग-अलग तरीकों से सामथ्र्यवान और शक्तिशाली बनाते हैं।

नवरात्रि के उत्सव का अर्थ

नवरात्रि के उत्सव का एक अर्थ यह भी है कि आपने तमस, रजस और सत्व इन तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है, यानी इस दौरान आप इनमें से किसी में नहीं उलझे। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों से किसी भी तरह बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली। इस तरह से नवरात्रि के नौ दिनों का आशय जीवन के हर पहलू के साथ पूरे उत्सव के साथ जुडऩा है। अगर आप जीवन में हर चीज के प्रति उत्सव का नजरिया रखेंगे तो आप जीवन को लेकर कभी गंभीर नहीं होंगे और साथ ही आप हमेशा उसमें पूरी तरह से शरीक होंगे। दरअसल, आध्यात्मिकता का सार भी बस यही है।

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