कस्टोडियन करते हैं हेराफेरी  
चेक से लेन-देन दो तरह से किया जाता है।  एक व्यक्तिगत और दूसरा संस्थागत। व्यक्तिगत स्तर पर फ्रॉड की संभावना बहुत कम होती है। जबकि ऑफिसियल या संस्थागत ज्यादा। ऑफिसियल लेवल पर संस्थान के मालिक के साथ कई लोग काम करते हैं, इन्ही में से किसी एक को चेक का काम सौंपा जाता है। वहां हर दिन मल्टीपल चेक का कामकाज और चेक के कस्टोडियन का अदल-बदल होता है। ऐसी स्थिति में चेक बनाने वाला व्यक्ति ही इसमें कुछ होराफेरी करता है। नाम का गलत होना, अमाउंट को बदलना और बार कोड की डमी तैयार करना आदि के माध्यम से चेक में धांधली की जाती है. 
केस 1 :
मुम्बई के एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले राजीव गुहा ने एक पार्टी को पेमेंट करने के लिए चेक तो दे दिया लेकिन, जब बैंक से क्लीयरिंग हाउस चेक पहुंचा तो बैंक को शक हुआ कि चेक फर्जी है, इसके बाद पेमेंट को रोक दी गई। इसके साथ ही बैंक ने चेक जारी कर थाने में मामला दर्ज कराया। आमतौर पर एटीएम से पैसे के लेन-देन का मैसेज अलर्ट आ जाता है, लेकिन, चेक में ऐसा नहीं होता। सीए अभिजीत बैध का कहना है कि यदि चेक तैयार करने वालों  ने शातिर दिमाग लगाया तो उसका खुलासा तुरंत नहीं होता जबकि चेक अवैध तरीके से इनकैश हो गया होता है। इसलिए  जरूरी है कि चेक भरते समय कुछ सामान्य लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहली बात चेक का कस्टोडियन एक ही व्यक्ति हो। चेक भरते समय चेक का सिरियल नंबर मेंनेट करें। चेक में अमाउंट की जगह को खाली कतई न छोड़े, उसे क्रास कर दें.

केस 2 :
राजापुर निवासी संजय तिवारी (बदला हुआ नाम) एक कंपनी के मालिक थे और उन्हें प्राय: चेक परसाइन कर रखने की आदत थी। वे किसी टूर पर पटना से बाहर निकले। इससे पहले उन्होंने अपने भाई सतीश को कहा कि एक पार्टी को पेमेंट करना बाकी है, मुझे आने में देर होगी उसे पेमेंट कर देना, 40 हजार का पेमेंट होगा, चेक साइन किया हुआ है। सतीश ने भाई के जाने के बाद उसमें दोगुना अमाउंट डाल दिया। इससे पहले उसने चेक लेने वाले व्यक्ति के साथ साढ-गांठ बना ली। उसे कहा कि आपको ज्यादा पैसे मैं दिलवा दूंगा, बस आप मुझे कुल राशि का 90 फीसदी वापस कर देना। साल भर बाद जब चेक की डिटेल पर उसके भाई का ध्यान गया तो मामला उजागर हुआ.

केस : 3
बोरिंग रोड निवासी रमेश कुमार (बदला हुआ नाम) को एक प्राइवेट फॉर्म से चेक जारी किया गया। चेक तैयार करने वाले स्टाफ ने अपने बॉस से चेक तैयार होने के बाद साइन करा लिया। इसके बाद उसमें नाम के आगे खाली जगह पर 'सिंहÓ एड कर लिया। इस प्रकार जहां कंपनी ने चेक रमेश कुमार को जारी किया था वह रमेश कुमार के खाते में न जाकर रमेश कुमार सिंह के खाते में ट्रांसफर हो गया। ऐसे कारनामों के पीछे चेक जारी कराने वाले का लालच यह था कि रमेश कुमार सिंह उसका दोस्त था। उसने चेक देने से पहले ही शर्त रखा था कि चेक कैश होते ही आधा हिस्सा वह उसे भी देगा। बाद में, जिसे सचमुच में चेक मिलना था, उसने ऑफिस को चेक नहीं मिलने की सूचना दी। इसके बाद भेद खुला. 

ऐसे रहें अलर्ट
चेक साइन करके न रखें 
चेकबुक हमेशा अपने कस्टडी में ही रखें 
यदि ऑफिसियल एनयावरमेंट है तो चेक का कस्टोडियन एक ही होना चाहिए. 
एक ही बैंक के मल्टीपल चेक न यूज करें 
यदि कोई चेक कैंसिल हो गया हो तो भी उसका रिकॉर्ड मेंनटेन करते रहें
अमाउंट लिखने के बाद खाली जगह को मार्क कर भर लें, यूं ही खाली न छोडें

बैंकिंग चैनल से अधिक लोगों के जुडऩे के साथ ऐसे मामले भी बढ़े हैं। थोड़ी सी समय देने की जरूरत है सतर्कता के साथ। तभी फ्रॉड के केसेज कम हो सकते हैं. 
- अभिजीत बैद, सीए  

ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए इंटरनल कंट्रोल मैकेनिज्म को प्रयोग में लाने की जरूरत है। बैंक भी अपने ग्राहकों को अवेयर करें .
- राजेश कुमार खेतान, सीए

कस्टोडियन करते हैं हेराफेरी  

चेक से लेन-देन दो तरह से किया जाता है।  एक व्यक्तिगत और दूसरा संस्थागत। व्यक्तिगत स्तर पर फ्रॉड की संभावना बहुत कम होती है। जबकि ऑफिसियल या संस्थागत ज्यादा। ऑफिसियल लेवल पर संस्थान के मालिक के साथ कई लोग काम करते हैं, इन्ही में से किसी एक को चेक का काम सौंपा जाता है। वहां हर दिन मल्टीपल चेक का कामकाज और चेक के कस्टोडियन का अदल-बदल होता है। ऐसी स्थिति में चेक बनाने वाला व्यक्ति ही इसमें कुछ होराफेरी करता है। नाम का गलत होना, अमाउंट को बदलना और बार कोड की डमी तैयार करना आदि के माध्यम से चेक में धांधली की जाती है. 

केस 1 :

मुम्बई के एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले राजीव गुहा ने एक पार्टी को पेमेंट करने के लिए चेक तो दे दिया लेकिन, जब बैंक से क्लीयरिंग हाउस चेक पहुंचा तो बैंक को शक हुआ कि चेक फर्जी है, इसके बाद पेमेंट को रोक दी गई। इसके साथ ही बैंक ने चेक जारी कर थाने में मामला दर्ज कराया। आमतौर पर एटीएम से पैसे के लेन-देन का मैसेज अलर्ट आ जाता है, लेकिन, चेक में ऐसा नहीं होता। सीए अभिजीत बैध का कहना है कि यदि चेक तैयार करने वालों  ने शातिर दिमाग लगाया तो उसका खुलासा तुरंत नहीं होता जबकि चेक अवैध तरीके से इनकैश हो गया होता है। इसलिए  जरूरी है कि चेक भरते समय कुछ सामान्य लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहली बात चेक का कस्टोडियन एक ही व्यक्ति हो। चेक भरते समय चेक का सिरियल नंबर मेंनेट करें। चेक में अमाउंट की जगह को खाली कतई न छोड़े, उसे क्रास कर दें।

 

केस 2 :

राजापुर निवासी संजय तिवारी (बदला हुआ नाम) एक कंपनी के मालिक थे और उन्हें प्राय: चेक परसाइन कर रखने की आदत थी। वे किसी टूर पर पटना से बाहर निकले। इससे पहले उन्होंने अपने भाई सतीश को कहा कि एक पार्टी को पेमेंट करना बाकी है, मुझे आने में देर होगी उसे पेमेंट कर देना, 40 हजार का पेमेंट होगा, चेक साइन किया हुआ है। सतीश ने भाई के जाने के बाद उसमें दोगुना अमाउंट डाल दिया। इससे पहले उसने चेक लेने वाले व्यक्ति के साथ साढ-गांठ बना ली। उसे कहा कि आपको ज्यादा पैसे मैं दिलवा दूंगा, बस आप मुझे कुल राशि का 90 फीसदी वापस कर देना। साल भर बाद जब चेक की डिटेल पर उसके भाई का ध्यान गया तो मामला उजागर हुआ।

 

केस : 3

बोरिंग रोड निवासी रमेश कुमार (बदला हुआ नाम) को एक प्राइवेट फॉर्म से चेक जारी किया गया। चेक तैयार करने वाले स्टाफ ने अपने बॉस से चेक तैयार होने के बाद साइन करा लिया। इसके बाद उसमें नाम के आगे खाली जगह पर 'सिंहÓ एड कर लिया। इस प्रकार जहां कंपनी ने चेक रमेश कुमार को जारी किया था वह रमेश कुमार के खाते में न जाकर रमेश कुमार सिंह के खाते में ट्रांसफर हो गया। ऐसे कारनामों के पीछे चेक जारी कराने वाले का लालच यह था कि रमेश कुमार सिंह उसका दोस्त था। उसने चेक देने से पहले ही शर्त रखा था कि चेक कैश होते ही आधा हिस्सा वह उसे भी देगा। बाद में, जिसे सचमुच में चेक मिलना था, उसने ऑफिस को चेक नहीं मिलने की सूचना दी। इसके बाद भेद खुला. 

 

ऐसे रहें अलर्ट

चेक साइन करके न रखें 

चेकबुक हमेशा अपने कस्टडी में ही रखें 

यदि ऑफिसियल एनयावरमेंट है तो चेक का कस्टोडियन एक ही होना चाहिए. 

एक ही बैंक के मल्टीपल चेक न यूज करें 

यदि कोई चेक कैंसिल हो गया हो तो भी उसका रिकॉर्ड मेंनटेन करते रहें

अमाउंट लिखने के बाद खाली जगह को मार्क कर भर लें, यूं ही खाली न छोडें

 

बैंकिंग चैनल से अधिक लोगों के जुडऩे के साथ ऐसे मामले भी बढ़े हैं। थोड़ी सी समय देने की जरूरत है सतर्कता के साथ। तभी फ्रॉड के केसेज कम हो सकते हैं. 

- अभिजीत बैद, सीए  

 

ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए इंटरनल कंट्रोल मैकेनिज्म को प्रयोग में लाने की जरूरत है। बैंक भी अपने ग्राहकों को अवेयर करें ।

- राजेश कुमार खेतान, सीए