कानपुर (इंटरनेट-डेस्क)। कार्तिक महीने में छठ पूजा का महापर्व मनाया जाता है। खासकर पूर्वी भारत में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस बार यह छठ पर्व 20 नवंबर को पड़ रहा है। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी से शुरू हो जाता है। इसमें उपवास रखने की भी परंपरा है। इसमें पहले दिन चतुर्थी को 'नहाए-खा', दूसरे दिन पंचमी को खरना मनाया जाता है। इसके बाद तीसरे दिन षष्ठी पर डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। वहीं चौथे दिन सप्तमी काे उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसे में इस साल 18 नवंबर चतुर्थी को नहाए-खा, 19 नवंबर पंचमी को खरना, 20 नवंबर छठ को संध्या अर्घ्य और 21 नवंबर सप्तमी को उषा अर्घ्य दिया जाएगा।

छठ मैया को संतान होने का आशीर्वाद भी देती

छठ मैया संतानों की हरपल रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु बनाती हैं। दृक पचांग के मुताबिक छठ मैया नि:संतानों को संतान होने का आशीर्वाद भी देती हैं। वहीं भगवान सूर्य को इस संसार में रौशनी और जीवन का प्रमुख स्रोत माना जाता है। सूर्य देव की उपासना से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान प्राप्‍त होने के साथ ही बल, विद्या, वैभव, बुद्धि, तेज, पराक्रम आदि की प्राप्‍ति होती है। छठ पूजा पर डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देने के पीछे भी एक खास वजह है क्योंकि यही एक मात्र पूजा है जिसमें डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देने का रिवाज है।

सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में होते हैं ये बदलाव

तीनों पहर में सूर्य देव की पूजा करने से उसका प्रभाव अलग-अलग तरीके से होता है। सुबह के समय सूर्य की आराधना व अर्घ्य देने से इंसान निरोग और सेहतमंद रहता है। दोपहर के समय सूर्य की पूजा करने से इंसान का नाम और यश सूर्य के तेज की तरह प्रकाशमान होता है। वहीं शाम के समय सूरज की उपासना करने से जीवन सूर्य के प्रभाव के समान संपन्‍नता व शांतिपूर्ण तरीके से बीतता है। डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन में आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक रूप से होने वाली हर प्रकार की मुसीबतें हमेशा दूर रहती हैं।