-छात्रसंघ के सुनहरे अतीत पर छात्रों की गलतियों ने लगा दिया ब्रेक

-पिछले 20 साल में छात्रसंघ को लेकर कई बार उठ चुके हैं सवाल

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PRAYAGRAJ: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का छात्रसंघ चुनाव अतीत में दर्ज होने जा रहा है। छात्र परिषद के गठन के साथ ही छात्रसंघ यूनिवर्सिटी के इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगा। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के पिछले 96 साल काफी गौरवशाली रहे हैं। कभी पूरब का ऑक्सफोर्ड कही जाने वाली यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ से ही पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, वीपी सिंह, नारायण दत्त तिवारी जैसे बड़े नेता निकले। हालांकि पिछले 20 साल से छात्रसंघ के स्तर को लेकर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं।

हत्या और दबंगई ने बदल दी तस्वीर

पिछले कुछ अरसे में छात्र राजनीति के स्तर में आई गिरावट ने छात्रसंघ के दामन को कई बार दागदार किया है। पिछले 20 साल में कई गैंगस्टर और अपराधी इमेज वाले छात्रसंघ का हिस्सा बनने लगे। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ वर्षो में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का छात्रसंघ जातिगत वर्चस्व, वसूली और हत्या का पर्याय बन गया था।

खूनी खेल से हुआ दागदार

1998 में छात्रनेता पुष्पेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

2004 में महामंत्री पद के प्रत्याशी रहे कमलेश यादव की छोटा बघाड़ा में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या।

2009 में छात्रनेता आनंद सिंह को विरोधियों ने हॉस्टल में घुसकर दिनदहाड़े गोली मारी।

2012 में छात्रनेता अभिषेक सिंह सोनू पर लल्लाचुंगी पर जानलेवा हमला हुआ। मामले में अभिषेक सिंह माइकल समेत चार लोग पुलिस द्वारा नामजद किए गए।

2017 में छात्रसंघ चुनाव के दौरान ही छात्रनेता रहे राजेश यादव की ताराचंद हॉस्टल के सामने गोली मारकर हत्या।

2018 में छात्र नेता रहे अच्युतानंद उफु सुमित शुक्ला की पीसीबी हॉस्टल में रात को एक बजे गोली मारकर हत्या। आरोप सीएमपी का छात्रसंघ अध्यक्ष आशुतोष त्रिपाठी पर है।

14 अप्रैल 2019 को रंगदारी और अवैध वसूली के लिए पीसीबी हॉस्टल में रोहित

पिछले 20 साल से छात्रसंघ चुनाव धनबल और बाहुबल के प्रदर्शन का केन्द्र बन गया। छात्र राजनीति में वर्चस्व की जंग में कई छात्रों की हत्या हुई। लिंगदोह कमेटी ने इस पर रोक लगाने के लिए छात्र परिषद का मॉडल सुझाया था। इसको इस वर्ष से लागू किया जा रहा है।

-डॉ चित्तरंजन कुमार

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