पारंपरिक खुर्रा व छिटकंवा विधि

शुरूआती बारिश न होने के कारण और मानसून की बेरूखी को देखते हुए सरगुजिहा किसानों ने धान बोवाई की तकनीक बदल दी है। पारंपरिक खुर्रा व छिटकंवा विधि का प्रयोग किसान करने लगे हैं और किसानों ने जमकर धान की बोवाई करनी शुरू कर दी है। जिले में अब तक लगभग 10 प्रतिशत धान की बोवाई छिटकवा विधि से की जा चुकी है। कृषि वैज्ञानिक और कृषि विभाग के जानकार भी अब किसानों को खुर्रा बोवाई करने की सलाह दे रहे हैं, ताकि उनकी धान की खेती न पिछड़ सके। गौरतलब है कि लगातार दूसरे वर्ष सरगुजा जिले में मानसून की बेरूखी नजर आ रही है। गतवर्ष पूरे सवा महीने मानसून में देरी हुई। इस बार भी कमोबेश यही स्थिति देखने को मिल रही है। 20 जून तक मानसून सक्रिय होने की भविष्यवाणी थी पर जुलाई का पहला सप्ताह सूखा बीत रहा है। बीच में हल्की बारिश हुई थी जो किसानों के सूखे खेतों की जुताई के लिए ही पर्याप्त थी। हल्की बारिश का निश्चित रूप से किसानों को खेत जुताई का लाभ मिला।

इस विधि से भी बेहतर पैदावार

किसानों ने जमकर अपने संसाधनों का प्रयोग कर खेतों की जुताई कर दी। जुताई के बाद किसानों को सिर्फ और सिर्फ बारिश का इंतजार था पर मानसून सक्रिय नहीं हुआ। ऐसे में किसानों को धान का थरहा कर पाना भी आसान नहीं रहा। जिले में काफी कम किसानों ने ही अब तक धान का थरहा किया है। उधर जुताई कर तैयार खेत में किसानों ने सीधे-सीधे सूखे धान की बोवाई करनी शुरू कर दी है। जिले में लगभग 10 प्रतिशत तक खुर्रा छिटकवा विधि से धान की बोवाई की जा चुकी है। माना जा रहा है कि इस विधि से भी बेहतर पैदावार लिया जा सकता है। किसान चाहें तो छिटकवा विधि से धान की बोवाई कर खेती को आगे कर सकता है। सरगुजिहा किसानों ने मानसून की बेरूखी को देख धान बोवाई की तकनीक बदल दी। पलेवा और रोपाई का इंतजार अब किसान करना नहीं चाह रहे हैं। जब तक बारिश होगी और थरहा के बाद रोपाई करेंगे तब तक देर हो चुकी होगी क्योंकि किसानों के पास जो बीच उपलब्ध है वह अर्ली वेराइटी की है यदि यह लेट-लतीफ लगाई गई तो पैदावार में भारी कमी आ सकती है।

मक्के की बोवाई की जा चुकी

सरगुजा में इसबार पिछले वर्ष की तुलना में धान बोवाई का रकबा भी बढ़ा दिया गया है। इस वर्ष खरीफ धान का लक्ष्य एक लाख 65 हजार 350 हेक्टेयर निर्धारित किया गया है। गतवर्ष एक लाख 62 हजार 753 हेक्टेयर लक्ष्य रखा गया था। मौसम को देखते हुए किसानों ने धान की छिटकवा विधि के साथ मक्के की बोवाई भी तेज कर दी है। जिले में अब तक 30 प्रतिशत से अधिक मक्के की बोवाई की जा चुकी है। सरगुजा जिले में बड़े पैमाने पर किसान धान की खेती करते हैं और नर्सरी तैयार करते हैं। अब तक जुलाई के प्रथम सप्ताह में मात्र 10 हेक्टेयर में ही धान की नर्सरी किसानों ने लगाई है। जहां सिंचाई के साधन हैं, वहीं किसानों ने धान की नर्सरी लगाई है। मानसून के भरोसे रहने वाले किसानों ने तो अभी धान की नर्सरी लगाने की कल्पना तक नहीं की है।

धान की कतार से बोवाई तत्काल

सरगुजा जिले में कलेक्टर श्रीमती ऋतु सैन की पहल पर इस वर्ष किसानों के घर तक खाद-बीज उपलब्ध कराया गया ताकि किसानों को खेती के समय किसी तरह की परेशानी न हो और खेतीबाड़ी का काम छोड़ उन्हें शहर में भटकना न पड़े। कलेक्टर की पहल पर इसबार जून माह में ही 50 प्रतिशत किसानों तक खाद-बीज पहुंच चुका था। ज्ञात हो सरगुजा में किए गए इस पहल को प्रदेश के मुखिया ने पूरे राज्य में लागू करा दिया। खाद-बीज किसानों तक पहुंच गया पर मानसून ने किसानों को मुसीबत में डाल दिया। ऐसे में इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र अजिरमा के समन्वयक व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरके मिश्रा ने बताया कि किसान यदि छिटकवा विधि से धान की खुर्रा बोनी कर रहे हैं तो वे धान के बीज को खेतों में छिटने के बजाय कतार विधि से लगाएं तो और बेहतर लाभ मिलेगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसान चाहें तो नई तकनीक का भी इस्तेमाल करें इसमें यदि किसान एक एकड़ में धान की खेती करना चाहता है तो आधे एकड़ में धान की कतार से बोवाई तत्काल कर दे और बारिश होने के बाद शेष बचे आधे एकड़ में कतार में की गई सघन बोवाई से पौधे निकाल कर फैला सकता है।

रासायनिक निंदानाशक का प्रयोग

यह पद्घति काफी अच्छी मानी जा रही है। डा. मिश्रा ने बताया कि अभी धान की बोवाई लेट नहीं हुई है पर किसान कोशिश करे कि 20 दिन जल्दी पकने वाली धान की किस्में लगाए। चंवर, गादर चंवर वाले खेत में जल्दी पकने वाली किस्में लगाए और बहरा खेत में जिसमें पानी भरा होता है उसमें लेट वेराइटी को लगाए। डा. मिश्रा ने बताया कि जो किसान धान की बोवाई अभी कर रहे हैं वे रासायनिक निंदानाशक का प्रयोग जरूर करें। कृषि वैज्ञानिक डा.मिश्रा ने बताया कि किसान दलहन, तिलहन के साथ मक्के की बोनी भी तेज कर दें। कम बारिश के कारण यह सीजन दलहन, तिलहन और मक्के के लिए काफी बेहतर है। उन्होंने बताया कि किसान जिस भूमि पर अरहर लगा रहे हैं उसमें अरहर की कतार बोनी करें और उसी के बीच एक कतार में मूंगफली भी लगाएं। इससे उन्हें अरहर के साथ मूंगफली लगाने से दोगुना लाभ मिलेगा। यह पद्घति किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी।

खरपतवार से भी राहत मिलेगी

वहीं इस संबंध में सरगुजा के उपसंचालक कृषि एसपी बीरा का कहना है कि अभी खेती में उतनी देर नहीं हुई है। पखवाड़े भर के भीतर भी बारिश शुरू हो जाती है तो किसानों की समस्या दूर हो जाएगी यदि किसान खुर्रा बोनी कर रहे हैं तो यह अच्छी बात है। खेतों में धान की बोवाई हो जाने के बाद निंदानाशक रसायन का प्रयोग किसान करें तो खरपतवार से भी राहत मिलेगी। तेज बारिश होने पर धान की बियासी कर दिया जाए तो खुर्रा छिटकवा पद्घति रोपाई पद्घति से काई कम नहीं मानी जाएगी। सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसान की धान की खेती पिछड़ेगी नहीं। वैसे किसानों को अभी ज्यादा हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है। कृषि विभाग मौसम को देखते हुए लगातार किसानों के संपर्क में है और समसामयिक सलाह भी दे रहा है।

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साभार: नई दुनिया

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